तबाह होते पर्यावरण पर लॉकडाउन ने लगाया मरहम, राजेश कुमार यादव का ब्लॉग
By राजेश कुमार यादव | Published: June 5, 2021 03:08 PM2021-06-05T15:08:19+5:302021-06-05T15:11:43+5:30
लॉकडाउन ने खराब होते पर्यावरण पर मरहम लगाने का काम किया है. यानी कि लॉकडाउन में प्रकृति को अपना खोया हुआ रूप मिल गया है.
इस बार विश्व पर्यावरण दिवस ऐसे समय में आया है, जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण से जूझ रही है.
कोरोना ने भले ही पूरी दुनिया को परेशान करके रख दिया हो लेकिन सबसे बड़ा परिवर्तन प्रकृति में देखने को मिला है. इसकी तस्दीक खुद प्रकृति कर रही है. इस लॉकडाउन ने खराब होते पर्यावरण पर मरहम लगाने का काम किया है. यानी कि लॉकडाउन में प्रकृति को अपना खोया हुआ रूप मिल गया है.
इस साल लॉकडाउन में सड़कों पर वाहनों की आवाजाही कम रही, इससे कई बड़े शहरों का भी प्रदूषण काफी कम हो गया है. लॉकडाउन होने से प्रकृति ने ये बता दिया की उसको नुकसान पहुंचाने में लोगों का ही बड़ा हाथ है. पर्यावरणविद भी मानते हैं कि कोरोना वायरस से अब सभी को ये समझ लेना चाहिए कि बिना प्रकृति के इंसान अपने जीवन को नहीं चला सकता.
कोरोना काल में ऑक्सीजन का भारी संकट सामने आया, उसके लिए सरकार के स्तर पर तमाम प्रयास किए गए और उसमें सफलता भी मिली. आज देश में कोरोना के केस लगातार कम होते जा रहे हैं लेकिन ऑक्सीजन के स्थायी समाधान की तरफ बढ़ने के लिए एक ही रास्ता है कि बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाए.
देश ने जैसे कोरोना चुनौती के सम्मुख प्रभावी एकजुटता दिखाई है और वर्तमान संकट से सहयोग का सबक सीखा है तथा हम इस आपदा में और मजबूत होकर उभरे हैं, उसी तरह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्न में भी एकजुटता दिखाने की जरूरत है. पारिस्थितिकी तंत्न को कई तरह से बहाल किया जा सकता है. पेड़ लगाना पर्यावरण की देखभाल के सबसे आसान और सर्वोत्तम तरीकों में से एक है.
भारत में जैव विविधता व पर्यावरण के संरक्षण की पुरानी परंपरा रही है. भारत के ऋ षि-मुनियों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व पर्यावरण के प्रति अपने दायित्व का अनुभव करते हुए कहा था कि प्रकृति हमारी माता है, जो अपना सर्वस्व अपने बच्चों को अर्पण कर देती है. प्रकृति की गोद में खेलकर, लोट-पोट कर हम बड़े होते हैं. वह हमारी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती है.
धरती, नदी, पहाड़, मैदान, वन, पशु-पक्षी, आकाश, जल, वायु आदि सब हमें जीवनयापन में सहायता प्रदान करते हैं. ये सब हमारे पर्यावरण के अंग हैं. अपने जीवन के सर्वस्व पर्यावरण की रक्षा करना, उसको बनाए रखना हम मानवों का कर्तव्य होना चाहिए. हकीकत तो यह है कि स्वच्छ पर्यावरण जीवन का आधार है. पर्यावरण जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ है.
इसीलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे और इस प्रकार पर्यावरण का स्थान जीवन की प्राथमिकताओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यो में होना चाहिए. आधुनिक युग में वायु प्रदूषण, जल का प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, विकिरणीय प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, समुद्रीय प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, नगरीय प्रदूषण, प्रदूषित नदियां और जलवायु बदलाव तथा ग्लोबल वार्मिग के खतरे लगातार दस्तक दे रहे हैं. ऐसी हालत में इतिहास की चेतावनी ही पर्यावरण दिवस का संदेश लगती है.
पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरणीय चेतना बढ़ी है. विकल्पों पर गंभीर चिंतन हुआ है तथा कहा जाने लगा है कि पर्यावरण को बिना हानि पहुंचाए या न्यूनतम हानि पहुंचाए टिकाऊ विकास संभव है. पर्यावरण के दृष्टिकोण से भारत के सामने अपनी वन संपदा का संरक्षण करना एक बड़ी चुनौती है. भारत में विगत 50-60 वर्षो से वनों को लगातार काटा जा रहा है.
वर्तमान में भारत के कुल क्षेत्नफल का मात्न 19.39 प्रतिशत क्षेत्न वनाच्छादित है. जबकि भारत की वन नीति 1988 के अनुसार कुल वन भूमि लक्ष्य कुल क्षेत्नफल का एक तिहाई क्षेत्न रखा गया है. भारत के कुल वन क्षेत्न का 50 प्रतिशत आरक्षित वनों की श्रेणी में रखा गया है. विश्व पर्यावरण दिवस एक मौका है कि देश के करोड़ों लोग मिलकर पर्यावरण की चुनौतियों जैसे कि ग्लोबल वार्मिग, प्रदूषण कम करने और जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रयास करें, पर्यावरण संरक्षण के प्रति और जागरूक हों, इसमें तेजी लाएं.