आधुनिकता की होड़ में उपजे गंभीर सवालों के जवाब समाज को तलाशने होंगे..! 

By विजय दर्डा | Published: October 1, 2018 07:51 AM2018-10-01T07:51:42+5:302018-10-01T07:51:42+5:30

स्त्री को निश्चय ही उसकी निजता का अधिकार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को लेकर अपने फैसले में बिल्कुल सही कहा है कि महिला अपने पति की संपत्ति नहीं है।

women empowerment section 497 supreme court modern world | आधुनिकता की होड़ में उपजे गंभीर सवालों के जवाब समाज को तलाशने होंगे..! 

आधुनिकता की होड़ में उपजे गंभीर सवालों के जवाब समाज को तलाशने होंगे..! 

(विजय दर्डा)
मैं हमेशा से इस बात का प्रबल समर्थक रहा हूं कि हर भारतीय महिला इतनी सशक्त बने कि वह पुरुषों के समकक्ष खड़ी हो सके। महिलाओं पर अत्याचार रोकने और संसदीय प्रणाली में उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग का मैंने संसद के भीतर भी और संसद से बाहर भी हमेशा ही समर्थन किया। कन्या भ्रूण हत्या को लेकर मैंने हमेशा आवाज उठाई है। आखिर जब तक महिलाएं सशक्त नहीं होंगी तब तक हम देश के संपूर्ण विकास की कल्पना कैसे कर सकते हैं? 

स्त्री को निश्चय ही उसकी निजता का अधिकार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को लेकर अपने फैसले में बिल्कुल सही कहा है कि महिला अपने पति की संपत्ति नहीं है। महिला अपने फैसले खुद करने के लिए स्वतंत्र है। न्यायालय ने व्यभिचार को दंड के दायरे में लाने वाले 1860 में बने कानून को निरस्त कर दिया। न्यायालय ने कहा कि 158 साल पुराने इस कानून से महिला की निजता को ठेस पहुंचती है। 

इस फैसले के संदर्भ में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है उसमें व्यभिचार के लिए महिला को दोषी मानने का प्रावधान था ही नहीं। केवल पुरुष दोषी माना जाता था। याचिकाकर्ता जोसेफ शाइन ने तो यह आग्रह किया था कि केवल पुरुष ही दोषी क्यों? महिला को भी दोषी माना जाए। न्यायालय ने दंड का प्रावधान ही हटा दिया। हां, यह प्रावधान जरूर रखा कि व्यभिचार तलाक का आधार बना रहेगा। कोई पत्नी जीवनसाथी के व्यभिचार से तंग आकर आत्महत्या करती है तो व्यभिचार अपराध की श्रेणी में आएगा।  

इसके साथ ही न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि व्यभिचार को सामाजिक बुराई के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि हम सामाजिक संदर्भो में देखें तो हमारी संस्कृति इतनी विकसित इसलिए हुई क्योंकि हमारे यहां परिवार नाम की संस्था को सबसे महत्वपूर्ण स्थान हासिल रहा है। पुरुषवादी सत्ता के कारण निश्चय ही महिलाओं पर बहुत अत्याचार हुए हैं और किसी सभ्य समाज में इसके लिए कोई जगह नहीं हो सकती। लेकिन, इसके बावजूद परिवार कायम रहे हैं। इस परिवार को कायम रखने में सबसे बड़ी भूमिका महिलाओं की ही रही है। 

एक सर्वमान्य सत्य यह है कि एक महिला अकेले पूरे परिवार को दिशा दे सकती है लेकिन एक पुरुष में ऐसी क्षमता नहीं होती है। यहां तक कि संस्कृति की वाहक भी महिलाएं ही होती हैं। एक बच्चे को उसकी मां ज्यादा संस्कारित करती है, पिता ऐसा कम ही कर पाते हैं। यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि एक पुरुष मकान तो बना सकता है लेकिन उसे घर के रूप में महिला ही परिवर्तित करती है। महिलाएं संस्कृति की वाहक हैं। 

महिलाओं को वे सारे अधिकार मिलने ही चाहिए जो अधिकार पुरुष खुद के लिए चाहता है। लेकिन यह भी सत्य है कि हम अपनी संस्कृति को छोड़कर यदि पश्चिमी देशों की नकल करने की होड़ में शामिल रहे तो एक दिन हमारी संस्कृति नष्ट हो जाएगी जिसने हजारों वर्षो में आकार लिया है। विदेश में कोई अपनी बेटी या बेटे से पूछ नहीं सकता कि चार दिनों से तुम घर क्यों नहीं आए? यदि बाप ने जरा सी भी सख्ती की तो बात पुलिस तक पहुंच सकती है। बाप जेल में बंद हो जाएगा! क्या हम ऐसी कल्पना अपने देश में कर सकते हैं? और करनी भी क्यों चाहिए? हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमारे पास अब भी परिवार है। विदेशों में तो मां कहां रह रही है, पिता किसके साथ रह रहा है, बच्चे कहां हैं, कुछ पता नहीं होता। बच्चे कभी-कभार मां या पिता से मिलने चले जाते हैं। 

हमारे यहां संस्कृति यह सिखाती है कि अपने से बड़ों का सम्मान करो। विदेश में तो बच्चे स्कूल में सिगरेट पीते हैं औ बंदूूक लेकर स्कूल आते हैं तो क्या हमारे यहां भी मास्टर साहब के सामने सिगरेट पीने लगें? दुर्भाग्य से हमारे यहां भी एक फ्री सोसायटी पैदा हो गई है। क्या हम विदेशी रास्ते पर जा रहे हैं? बाप-बेटी बैठकर दारू पी रहे हैं। लिव इन रिलेशन, कुमारी माताएं, गे, लेस्बियन जैसे प्रसंग हम भी सुनने लगे हैं। उन्हें फ्रीडम लगता है। यह तबका शादी को एक एग्रीमेंट से ज्यादा कुछ नहीं समझता इसलिए इनके बीच तलाक भी होते हैं। सौभाग्य की बात है कि समाज का बड़ा तबका अभी भी इन सब चीजों से बचा हुआ है। उम्मीद करें कि बचा रहे। 

मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मुझे पिज्जा और बर्गर से नफरत नहीं है लेकिन जब पिज्जा और बर्गर संस्कार बदलने लगे तो चिंता होना स्वाभाविक है। पहले घर से टिफिन देते थे ताकि घर का स्वाद बना रहे। मैं कहता हूं कि अंग्रेजी पढ़ो लेकिन मातृभाषा बोलने में शर्म क्यों? यह समझना जरूरी है कि मां में जो भाव है वह मम्मी में है ही नहीं। ध्यान रखिए कि हमारी संस्कृति ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है। इसे खो दिया तो कुछ नहीं बचेगा! आधुनिकता की होड़ में उपजे सवालों के जवाब समाज को ही तलाशने होंगे। 

Web Title: women empowerment section 497 supreme court modern world

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