संसद का शीत सत्र होना चाहिए था, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग

By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 18, 2020 03:20 PM2020-12-18T15:20:09+5:302020-12-18T15:21:49+5:30

सरकार ने विपक्ष को बताया है कि कोविड-19 महामारी के कारण इस साल संसद का शीतकालीन सत्र नहीं होगा और इसके मद्देनजर अगले साल जनवरी में बजट सत्र की बैठक आहूत करना उपयुक्त रहेगा.

Winter session of Parliament adjourned pm narendra modi bjp congress Ved Prakash Vaidik blog | संसद का शीत सत्र होना चाहिए था, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग

अगला सत्र, बजट सत्र होगा, जो जनवरी 2021 यानी कुछ ही दिन में शुरू  होने वाला है. (file photo)

Highlightsकांग्रेस ने आलोचना करते हुए इसे संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने का कार्य करार दिया.संसद का शीतकालीन सत्र सामान्यत: नवंबर के आखिरी या दिसंबर के पहले सप्ताह में आरंभ होता है.बिहार-बंगाल में चुनावी रैलियां संभव हैं तो संसद का शीतकालीन सत्र क्यों नहीं?

संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित हो गया. अब बजट सत्र ही होगा. वैसे सरकार ने यह फैसला लगभग सभी विरोधी दलों के नेताओं की सहमति के बाद किया है.

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद पटेल का यह तर्क कुछ वजनदार जरूर है कि संसद के पिछले सत्र में सांसदों की उपस्थिति काफी कम रही और कुछ सांसद और मंत्री कोरोना के कारण स्वर्गवासी भी हो गए. अब अगला सत्र, बजट सत्र होगा, जो जनवरी 2021 यानी कुछ ही दिन में शुरू  होने वाला है.

पटेल ने कुछ कांग्रेसी और तृणमूल सांसदों की आपत्ति पर यह भी कहा है कि भाजपा पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना का आरोप लगाने वाले नेता जरा अपनी पार्टियों में से पारिवारिक तानाशाही को तो कम करके दिखाएं. इन तर्को के बावजूद यदि सरकार चाहती तो वह सभी दलीय नेताओं को शीतकालीन सत्र के लिए राजी कर सकती थी.

यदि विपक्ष उस सत्र का बहिष्कार करता तो उसकी विश्वसनीयता घट जाती. यदि संसद का यह सत्र आहूत होता तो सरकार और सारे देश को झंकृत करने वाले कुछ मुद्दों पर जमकर बहस होती. यह ठीक है कि उस बहस में विपक्षी सांसद, सही या गलत, सरकार की टांग खींचे बिना नहीं रहते लेकिन उस बहस में से कुछ रचनात्मक सुझाव, प्रामाणिक शिकायतें और उपयोगी रास्ते भी निकलते.

इस समय कोरोना के टीके का देशव्यापी वितरण, आर्थिक शैथिल्य, बेरोजगारी, किसान आंदोलन, भारत-चीन विवाद आदि ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जिन पर खुलकर संवाद होता. यह संवाद इसलिए भी जरूरी है कि देश किसान आंदोलन और कोविड-19 महामारी जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है.

संवाद की कमी किसी भी सरकार के लिए बहुत भारी पड़ सकती है. संवाद की इसी कमी के कारण हिटलर, मुसोलिनी और स्टालिन जैसे बड़े नेता मिट्टी के पुतलों की तरह धराशायी हो गए. इसमें तो विपक्षियों को जितना लाभ मिलेगा, उतना किसी को नहीं. जिन लोगों को भारत और इसके लोकतंत्र की चिंता है, वे चाहेंगे कि अगले माह होने वाला बजट सत्र थोड़ा लंबा चले और उसमें स्वस्थ बहस खुलकर हो ताकि देश की समस्याओं का समयोचित समाधान हो सके.

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