ब्लॉगः पीएम मोदी-शी जिनपिंग की मुलाकात की संभावन... क्या भारत-चीन के सुधरेंगे द्विपक्षीय रिश्ते

By शोभना जैन | Published: September 3, 2022 07:49 AM2022-09-03T07:49:53+5:302022-09-03T07:50:01+5:30

भारत और चीन के बीच एक नए विवाद की शुरुआत तब हुई जब गत अगस्त में भारत की सुरक्षा आपत्तियों और चिंताओं के बावजूद चीन ने श्रीलंका पर दबाव डाल कर चीनी जासूसी पोत युआन वांग-5 को दक्षिणी श्रीलंका के सामरिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह पर रोकने की इजाजत ले ली।

Will India-China bilateral relations improve pm modi Xi Jinping meet | ब्लॉगः पीएम मोदी-शी जिनपिंग की मुलाकात की संभावन... क्या भारत-चीन के सुधरेंगे द्विपक्षीय रिश्ते

ब्लॉगः पीएम मोदी-शी जिनपिंग की मुलाकात की संभावन... क्या भारत-चीन के सुधरेंगे द्विपक्षीय रिश्ते

डिप्लोमेसी में संवाद बनाए रखना गुरु मंत्र माना जाता है, लेकिन चीन जैसे गैरभरोसेमंद और आक्रामक पड़ोसी के साथ  शीर्ष स्तरीय संवाद प्रक्रिया कैसे जारी रखी जाए, इस तरह के संवाद में हुई सहमति की चीन जिस तरह से धज्जियां उड़ाता रहा है, उसके साथ किस भरोसे से संवाद का संतुलन बनाया जाए, एक बार फिर से यह सवाल सामने है। भारत और चीन के बीच लगातार बढ़ते तनाव  और तल्खियों के बीच खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आगामी तीन माह के अंदर दो शिखर बैठकों में द्विपक्षीय मुलाकात होने की संभावनाएं बन सकती हैं। इसी माह के मध्य में उज्बेकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक और नवंबर में  इंडोनेशिया में होने वाली जी-20 की प्रस्तावित शिखर बैठकों में दोनों शीर्ष नेताओं की उपस्थिति की स्वीकृति के चलते एक यह संभावना  दिख रही है और ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि लगभग तीन वर्ष बाद दोनों शीर्ष नेताओं के बीच मुलाकात के अवसर बन सकते हैं।  

विडंबना है कि 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों शीर्ष नेताओं के बीच 18 मुलाकातें हो चुकी हैं, लेकिन सीमा पर चीन लगातार उकसाने वाली कार्रवाई से तनाव बढ़ाता रहा है। भारत द्विपक्षीय रिश्ते सुधारने के तमाम प्रयास कर चुका है लेकिन चीन आपसी भरोसे को लगातार तोड़ता रहा है, विश्वास बहाली को लेकर हुई तमाम सहमति की धज्जियां उड़ाता रहा है। लद्दाख में गलवान सीमा पर चीन के खूनी हमले के बाद दो बरस से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी दोनों देशों की फौजें वहां आमने-सामने डटी हुई हैं। सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी स्थिति जस की तस ही नहीं है बल्कि चीन की घुसपैठ बढ़ती जा रही है। इसी स्थिति में विदेश मंत्री डॉ. एस, जयशंकर का यह दो टूक बयान अहम है कि चीन के साथ संबंध  सीमा की स्थिति के आधार पर ही तय होंगे।  गत माह भी डॉ.  जयशंकर ने दोनों देशों के अनसुलझे टकराव को सीमा के लिए ‘खतरनाक स्थिति’ बताया था और यह जोर दिया था कि ऐसी परिस्थितियों में संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में सवाल  है कि  सीमा पर  मौजूदा स्थिति में क्या शीर्ष स्तरीय संवाद के लिए समय सही है? अगर दोनों शीर्ष नेताओं के बीच मुलाकात की संभावना बनती भी है तो बातचीत से  कुछ राह क्या बन भी पाएगी?  

 भारतीय और चीनी सैनिकों का पूर्वी लद्दाख में दो साल से ज्यादा समय से टकराव वाले कई स्थानों पर गतिरोध बना हुआ है। उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के परिणाम स्वरूप दोनों पक्ष कई क्षेत्रों से पीछे हटे हैं। लेकिन चीन ने पूरी तरह से ‘वापसी’ पर हुई सहमति का पालन नहीं किया। दोनों पक्षों को टकराव वाले शेष बिंदुओं पर जारी गतिरोध को दूर करने में कोई सफलता नहीं मिली है। उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता का अंतिम दौर पिछले महीने हुआ था लेकिन गतिरोध दूर करने में कामयाबी नहीं मिली। विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन के साथ भारत के संबंधों पर ताजा टिप्पणी के कुछ दिनों पहले कहा था कि संबंध एकतरफा नहीं हो सकते हैं और रिश्तों में आपसी सम्मान की भावना होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘सकारात्मक पथ पर लौटने और टिकाऊ बने रहने के लिए संबंधों को तीन चीजों पर आधारित होना चाहिए : पारस्परिक संवेदनशीलता, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक हित।’

भारत और चीन के बीच एक नए विवाद की शुरुआत तब हुई जब गत अगस्त में भारत की सुरक्षा आपत्तियों और चिंताओं के बावजूद चीन ने श्रीलंका पर दबाव डाल कर चीनी जासूसी पोत युआन वांग-5 को दक्षिणी श्रीलंका के सामरिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह पर रोकने की इजाजत ले ली। भारत की चिंता थी कि उसके श्रीहरिकोटा में स्पेसपोर्ट से लेकर ओडिशा की मिसाइल रेंज और दूसरी तमाम संवेदनशील सामरिक सुविधाएं युआन वांग-5 पोत की रेंज में होंगी। भारत ने चीन के ऋण चक्र के दबाव में घिरे श्रीलंका के इस कदम पर कड़ा विरोध जताया।

वुहान और चेन्नई में दोनों शीर्ष नेताओं के बीच हुई मुलाकात के बाद पीएम मोदी ने कहा था कि इन मुलाकातों से आपसी भरोसा और मित्रता और मजबूत हुई है, लेकिन  निश्चित तौर पर बाद में जमीनी हालात ऐसे नजर नहीं आए। ऐसे में भारत किसी मुलाकात की संभावनाओं, इसकी सार्थकता के प्रति काफी सतर्क नजर आ रहा है। चीन पर भरोसा जताने के उसके जो अनुभव अब तक रहे हैं, उसमें अति सतर्कता की जरूरत है भी, खास तौर पर ऐसे में जबकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन अपनी विस्तारवादी आक्रामक गतिविधियों के बावजूद संबंधों को अपनी तरफ से सामान्य बताए और रेखा पर यथास्थिति बहाल करने से इंकार कर दे तो भारत के लिए सही रास्ता यही है कि सीमा पर स्थिति से ही दोनों देशों के रिश्ते तय होंगे।

English summary :
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Web Title: Will India-China bilateral relations improve pm modi Xi Jinping meet

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