ब्लॉगः दक्षिण-पश्चिम मानसून 2021 खत्म, 874.6 मिमी बारिश, मानसून की यात्ना काफी असामान्य
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 6, 2021 01:30 PM2021-10-06T13:30:56+5:302021-10-06T13:32:12+5:30
1 जून से 30 सितंबर तक पूरे मौसम के लिए देश भर में संचयी वर्षा 880.6 मिमी की सामान्य बारिश के मुकाबले 874.6 मिमी पर दर्ज की गई.
भारत में लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के 99 प्रतिशत की सामान्य वर्षा दर्ज किए जाने के साथ चार महीने तक चलने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून 2021 आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया है.
1 जून से 30 सितंबर तक पूरे मौसम के लिए देश भर में संचयी वर्षा 880.6 मिमी की सामान्य बारिश के मुकाबले 874.6 मिमी पर दर्ज की गई. आंकड़ों से ऐसा लगता है कि देश ने साल के अपने वर्षा लक्ष्य को पूरा कर लिया है, मगर हकीकत में मानसून की यात्ना काफी असामान्य रही है.
असाधारण रूप से कम से लेकर असाधारण रूप से उच्च वर्षा तक, और पारंपरिक रूप से वर्षा आधारित क्षेत्नों में शुष्क मौसम और गैरवर्षा आधारित क्षेत्नों में बारिश के साथ 2021 का मानसून चरम सीमाओं का मौसम रहा है. हम भले ही लक्ष्य के आंकड़े तक पहुंच गए हों, लेकिन ऐसे कई कारक हैं जो मानसून के पैटर्न पर जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रभाव को दर्शाते हैं.
इस मौसम में कुछ अनियमित और विषम पैटर्न देखे गए -
1. जुलाई और अगस्त के मुख्य महीनों में एक साथ 4 कम दाब वाले क्षेत्न दर्ज किए गए, जबकि अकेले सितंबर में ही 5 कम दाब वाले क्षेत्न देखे गए.
2. मानसून के अंत में देरी ने इस मौसम में हैट्रिक बनाई.
3. चक्रवात गुलाब सितंबर में बंगाल की खाड़ी में सदी का तीसरा चक्रवात था.
4. कम वर्षा वाले क्षेत्नों का चतुर्भुज : केरल, गुजरात, ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत.
5. अगस्त में बारिश में 24 प्रतिशत की कमी के साथ, 1901 के बाद से यह छठा सबसे शुष्क अगस्त था और 2009 के बाद पहला.
6. बंगाल की खाड़ी में मानसून के कम दाब वाले क्षेत्नों की संख्या कम रही लेकिन अंतरदेशीय में अधिक.
7. भारी बारिश के दिनों में बढ़ोत्तरी हुई है और सूखे की अवधि भी बढ़ गई है.
2021 में मानसून का मौसम एक रोलर कोस्टर की सवारी जैसा रहा है. अप्रत्याशितता मौसम की भविष्यवाणी के लिए एक बढ़ती हुई चुनौती बन रही है और मौसम विज्ञानियों का मानना है कि बदलते मौसम की गतिशीलता के बीच ऐसा ही कायम रहेगा. मानसून 2021 को चरम सीमाओं का मौसम कहना गलत नहीं होगा. देश भर में निहायत कम वर्षा से लेकर अत्यधिक अधिशेष वर्षा तक.
पश्चिम मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्नों जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्न सभी अधिशेष बन गए हैं, जबकि केरल, ओडिशा और देश के उत्तर-पूर्वी इलाकों जैसे बारिश वाले इलाकों ने अपने औसत वर्षा कोटा को पूरा करने के लिए भी संघर्ष किया. काउंसिल फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक विश्लेषण के अनुसार, 75 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिले चरम जलवायु घटनाओं की चपेट में हैं. 40 प्रतिशत से अधिक ने जलवायु संबंधी व्यवधानों का अनुभव किया है जैसे कि बाढ़-प्रवण होने से सूखा-प्रवण होने या इसका उल्टा होने की ओर परिवर्तन.
‘चरम मौसम की घटनाएं जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट परिणाम हैं. मानसून के दौरान भारी बारिश के दिनों की आवृत्ति बढ़ गई है और हल्की बारिश के दिनों की आवृत्ति कम हो गई है’. भारत मौसम विज्ञान विभाग में मौसम विज्ञान के महानिदेशक मृत्युंजय मोहपात्ना ने कहा. पश्चिमी तट के बाद पूर्वोत्तर भारत मौसम का दूसरा सबसे अधिक वर्षा योगदानकर्ता है.
लेकिन स्थिति बदल गई है और इस क्षेत्न को अब लगातार बारिश की कमी वाले क्षेत्न के रूप में जाना जाता है. पिछले एक दशक में, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है केवल 2020 को छोड़कर, जिसमें अतिरिक्त बारिश हुई, 2021 भी बारिश की कमी के उसी ट्रैक का अनुसरण करता प्रतीत होता है.