कपिल सिब्बल का ब्लॉग : विभीषिका का स्मरण और विभाजनकारी एजेंडा

By कपील सिब्बल | Published: September 1, 2021 11:44 AM2021-09-01T11:44:33+5:302021-09-01T11:54:24+5:30

हम विभाजन के समय बड़े पैमाने पर हुए सामूहिक कष्टों को नहीं भूल सकते जब लाखों लोग विस्थापित हुए और लाखों लोगों ने घृणा और हिंसा के विचारहीेन कृत्यों में अपनी जान गंवाई.

we cant forget the pain of partition and sacrifice of our people | कपिल सिब्बल का ब्लॉग : विभीषिका का स्मरण और विभाजनकारी एजेंडा

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया

Highlightsभाजपा ने भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता बनाए रखने की बजाय वर्चस्ववादी मानसिकता रखी लोगों को भीड़ द्वारा पीटा जाना सामाजिक अराजकता को बढ़ावा देना है पीएम ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाने को कहा

प्रधानमंत्री ने हमें हमारे लोगों के संघर्षो और उन बलिदानों की याद दिलाई है, जिनके कारण आज हम आजाद हैं. उन्होंने लोगों से 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाने का भी आग्रह किया. यह दिन पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस भी है. उनका संदेश पूरी तरह से स्पष्ट था : हम विभाजन के समय बड़े पैमाने पर हुए सामूहिक कष्टों को नहीं भूल सकते जब लाखों लोग विस्थापित हुए और लाखों लोगों ने घृणा और हिंसा के विचारहीेन कृत्यों में अपनी जान गंवाई. उन्होंने हम सभी को सामाजिक भेदभाव और वैमनस्य के जहर को दूर करने तथा एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत करने की याद दिलाई.

मैं वास्तव में एकता और सामाजिक सद्भाव के मूल्यों के प्रचार के लिए प्रधानमंत्री मोदी की चिंता से प्रभावित हूं. भारत विविधताओं का देश है. यह कई जातियों, धर्मो, मान्यताओं और परंपराओं का घर है. इसकी विविधतापूर्ण संस्कृतियां तभी पनप सकती हैं जब सामाजिक समरसता हो. लेकिन हमने हाल ही में देखा है कि सरकार और भाजपा दोनों ही हमारी भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को बनाए रखने के बजाय एक वर्चस्ववादी मानसिकता के उदय में मदद कर रहे हैं. यह 2014 के बाद से मोदी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड से प्रदर्शित होता है. हमारे दिमाग में आम लोगों के सांप्रदायिक उत्पीड़न के अपमानजनक कृत्यों की जीवंत छवियां हैं, जो कई लोगों को ऐसी बातें कहने और करने के लिए मजबूर करती हैं जिनका कोई सभ्य संस्कृति समर्थन नहीं करेगी. हाशिये पर के लोगों को भीड़ के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया, उनका पेशा ही उनका अपराध बन गया. अनियंत्रित और विचारहीन बर्बरता को खुले तौर पर अंजाम दिया जाता है लेकिन शायद ही कभी इसकी जांच की जाती है. जानकारी के अनुसार पिछले चार वर्षो से एक विशेष राज्य में, हर दसवें दिन एक एनकाउंटर होता है, जिसमें आपराधिक मामलों में मुकदमे का सामना करने वाले शामिल हैं. ये सब सार्वजनिक रिकॉर्ड के मामले हैं.

विभाजन के दौरान लाखों लोगों का पलायन और उससे पैदा हुई विचारहीन हिंसा शायद बीसवीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है. तबाह जिंदगियां और आजीविका के साधन अपने पीछे ऐसे घाव छोड़ गए जो आज तक नहीं भरे हैं. दुखद परिस्थितियों में लोगों ने जान गंवाई, घर छोड़े और लाखों लोग विस्थापित हुए. यह कभी न भूलने वाली त्रसदी विभाजन के दोनों तरफ रहने वालों को ङोलनी पड़ी. 

आज जो लोग उन यादों के साथ जी रहे हैं, वे या तो अपने प्रियजनों को खोने के लिए क्रोध और घृणा का चुनाव कर सकते हैं या दर्द को अपने भीतर समाहित करते हुए चुपचाप इसका सामना करते हैं. कोई भी विवेकशील इंसान कभी भी हिंसा के ऐसे अमानवीय कृत्यों को सही नहीं ठहरा सकता. मैंने भी बंटवारे के दौरान अपने नाना-नानी को खो दिया, जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा, क्योंकि मैं 1948 में पैदा हुआ था. मैं या तो अपने मन में उन अनजान लोगों के लिए नफरत रख सकता हूं जिन्होंने इस तरह के कृत्य किए या इसे एक त्रासदी मानकर छोड़ सकता हूं जिसका हमारा परिवार शिकार हुआ. अगर मैं उस नुकसान का बदला लेना चाहूं तो मैं किसे निशाना बनाऊं? यह व्यक्ति नहीं बल्कि मानसिकता है जो हिंसक कृत्यों के जरिये बदला लेने को उकसाती है. तर्कशक्ति मुझसे कहती है कि मैं आज भारत में रहने वालों पर उंगली न उठाऊं और हिंसा के एक ऐसे कृत्य का उनसे बदला लेने की कोशिश न करूं, जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है और जिसके लिए वे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं. अगर मैं व्यक्तिगत त्रसदी के उस कृत्य का बदला लेता हूं, तो मैं उन लोगों के साथ अन्याय करूंगा, जिन्हें बिना किसी गलती के मेरे द्वारा निशाना बनाया जा सकता है. फिर मैं क्यों उस ‘विभीषिका’ को याद करूं जिसकी प्रधानमंत्री ने बात की थी? मैं अपने मन में अपनी व्यक्तिगत त्रसदी को फिर से जीवित करने की कोशिश क्यों करूं और उन लोगों के कृत्यों के लिए निदरेष को दोषी ठहराने की कोशिश करूं जो उन्हें नहीं जानते? यह तर्क सीमा पार रहने वालों पर भी समान रूप से लागू होता है, जिन्होंने भी इसी तरह अपने प्रियजनों को खोया होगा. मैं नफरत का जहर फैलाकर अपनी त्रासदी को कम नहीं कर सकता.

अगर हम उस त्रसदी से सीख लेते हैं जिसकी प्रधानमंत्री ने बात की है तो इसका सबसे अच्छा तरीका एकता को मजबूत करना है. हमें 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाकर ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है. हमें उन भयावहताओं और त्रसदियों को भी याद रखने की जरूरत नहीं है. हम यह नहीं भूल सकते कि मूर्खतापूर्ण हिंसा के नंगे नाच के बीच महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी. गांधीजी की हत्या करने वाले की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने वाले कुछ लोगों के साथ यह मानसिकता अभी भी बरकरार है.

इसके बजाय, cहै. कुछ लोग ऐसी भयावहता और त्रसदियों का उपयोग एकता के लिए नहीं, बल्कि घृणा के जहर को उत्पन्न करने के लिए करते हैं जो उन भयावहताओं को जन्म देती है. यह चुनावी रूप से सुविधाजनक हो सकता है लेकिन एकता के लिए विध्वंसक है. हमें सहिष्णुता का अभ्यास करने और भारत में रहने वाले प्रत्येक भाई और बहन के साथ एक जैसा व्यवहार करने की आवश्यकता है. हमें त्रसदियों का राजनीतिकरण करने की जरूरत नहीं है. हमें अपने लोगों की भलाई के लिए पीड़ा को अपने भीतर समाहित करना होगा. हमें शांति की तलाश करने और अतीत से सीखने की जरूरत है.

 

 

Web Title: we cant forget the pain of partition and sacrifice of our people

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