Vrindavan Holi 2025: ‘हमसे पर्दा करो न मुरारी...’ वृंदावन की होली?

By शोभना जैन | Updated: March 14, 2025 05:13 IST2025-03-14T05:13:19+5:302025-03-14T05:13:19+5:30

Vrindavan Holi 2025: सिर्फ भक्त हैं जो अबीर गुलाल के ‘रंगीन बादलों’ की धुंध में अपने बांके बिहारी की एक झलक पाने, उनके साथ होली खेलने को बेताब हैं,

Vrindavan Holi 2025 live manohar lal Murari don’t cover yourself from me Holi of Vrindavan blog Shobhana Jain mathura barsana | Vrindavan Holi 2025: ‘हमसे पर्दा करो न मुरारी...’ वृंदावन की होली?

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Highlightsबांके बिहारी हैं कि एक नटखट बालक की तरह बार-बार अपनी एक झलक दिखाकर पर्दे में जा छिपते हैं. ‘राधे-राधे, जय हो बांके बिहारी’ के जयघोष से बेखबर, मंदिर के प्रांगण के एक कोने में वहां बिखरे फूलों के बीच वो खड़ी है.आंखों से बरसते आंसुओं के बीच लगातार मद्धम स्वर में गा रही है, मानो गुहार कर रही है ‘हमसे पर्दा करो न हे मुरारी, वृंदावन के हो बांके बिहारी’

Vrindavan Holi 2025: वृंदावन के मशहूर बांके बिहारी मंदिर का पूरा प्रांगण अबीर और गुलाल की सतरंगी धूल से स्वप्निल सा हो गया है. गुलाब, गेंदे और मोगरे के फूलों की वर्षा हो रही है. मंदिर के पुजारी और भक्त प्रांगण में विशाल बर्तनों में रखे खुशबूदार रंगीन पानी की फुहारें पिचकारियों से भक्तों पर बरसा रहे हैं. अबीर, गुलाल और सतरंगे रंगों में रंगे लोग अपनी पहचान खो चुके हैं. वे अब सिर्फ भक्त हैं जो अबीर गुलाल के ‘रंगीन बादलों’ की धुंध में अपने बांके बिहारी की एक झलक पाने, उनके साथ होली खेलने को बेताब हैं,

और बांके बिहारी हैं कि एक नटखट बालक की तरह बार-बार अपनी एक झलक दिखाकर पर्दे में जा छिपते हैं. मंदिर के पुजारी भक्तों को भगवान की एक झलक दिखा कर पर्दा गिरा रहे हैं, फिर पर्दा उठा रहे हैं लेकिन इन भक्तों के हुजूम और मंदिर में ‘राधे-राधे, जय हो बांके बिहारी’ के जयघोष से बेखबर, मंदिर के प्रांगण के एक कोने में वहां बिखरे फूलों के बीच वो खड़ी है.

चांदी से बाल, स्वर्णिम आभा समेटे वर्ण, आसपास रंग बरस रहे हैं लेकिन मानो वो इस सबसे बेखबर सफेद धवल धोती, दमकते माथे पर चंदन का टीका, आंखों से बरसते आंसुओं के बीच लगातार मद्धम स्वर में गा रही है, मानो गुहार कर रही है ‘हमसे पर्दा करो न हे मुरारी, वृंदावन के हो बांके बिहारी’

वृंदावन में बीसियों बरस से रह रही विधवाओं में से एक यह विधवा मां हैं और उन हजारों विधवा मांओं में शामिल हैं जो जीवन की सांध्य बेला में  घर से दूर कर दी गईं और दो जून की रोटी के जुगाड़ में सड़कों पर भटकने के बजाय मंदिर में भजन कीर्तन कर भक्ति में लगी हैं. वैसे इनमें कुछ ऐसी भी हैं जो वीतरागी बन यहां बांके बिहारी की शरण में पूजा-पाठ भजन-कीर्तन कर अपने इष्ट की आराधना करती हैं.

ये विधवा मां आज होली पर खास तौर पर अपने बांके बिहारी से मिलने मंदिर में आई है. दरअसल वृंदावन की होली में भारतीय संस्कृति के अद्भुत रंग बिखरे हैं, और वृंदावन के मशहूर बांके बिहारी मंदिर के बारे में तो कहा जाता है कि कोमल हृदय बांके बिहारीजी भक्तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि मंदिर से निकलकर भक्तों के साथ हो लेते हैं, कितने ही किस्से-कहानी श्रद्धालु इस बारे में सुनाते रहे हैं.

श्रद्धालु बताते हैं कि इसीलिए उन्हें पर्दे में रख कर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है. पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्त लगातार मूर्ति के सामने पड़े पर्दे को खींचता, गिराता रहता है और श्रद्धालु दर्शन करते रहते हैं. साध्वी पर्दे के पीछे की बांके बिहारीजी की इसी लुकाछिपी से व्यथित जीवन संध्या काल में भक्ति में लगी होकर ही बरसती आंखों से गुहार कर रही थीं.

पास खड़े एक श्रद्धालु बताते हैं, ऐसे ही हैं हमारे बांके बिहारी, सबसे अलग, अनूठे. इस मंदिर के नए स्वरूप को 1864 में गोस्वामियों ने बनवाया था. एक किवदंती को उद्धृत करते हुए एक भक्त बता रहे हैं, एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी बांके बिहारीजी के दर्शनार्थ आई लेकिन वो इनकी भक्ति में इतनी डूब गई कि वापस जाना ही नहीं चाहती थी.

परेशान घरवाले जब उसे जबरन घर साथ ले जाने लगे तो उसकी भक्ति या कहें व्यथा से द्रवित होकर बांके बिहारीजी भी उसके साथ चल दिए. इधर मंदिर में बांके बिहारीजी के गायब होने से भक्त बहुत दुखी थे, आखिरकार समझा-बुझाकर उन्हें वापस लाया गया. भक्त बताते हैं, ‘यह पर्दा तभी से डाल दिया गया, ताकि बिहारीजी भक्त से ज्यादा देर तक आंखें चार न कर सकें, चंचल भोले कभी किसी भक्त के साथ उठकर नहीं चल दें और भक्त उनके क्षणिक दर्शन कर पाएं, सिर्फ झलक ही देख पाएं.’ कहा यह भी जाता है कि उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए पर्दा रखा जाता है, क्योंकि बाल कृष्ण को कहीं नजर न लग जाए.

बंगाल से आए एक भक्त बता रहे हैं, ‘सिर्फ जन्माष्टमी को ही बांके बिहारीजी रात को महाभिषेक के बाद रात भर भक्तों को दर्शन देते हैं और तड़के ही आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. वैसे मथुरा वृंदावन में जन्माष्टमी का उत्सव पर्व से सात-आठ दिन पहले ही शुरू हो जाता है. और होली तो यहां की अद्भुत, दैवीय ही होती है, सभी होली के रंगों से सराबोर, लेकिन यह भक्ति और श्रद्धा के रंग हैं.

इसी महिमा के चलते होली के पर्व से पहले ही यहां दर्शनार्थियों की भीड़ लग जाती है, भीड़ सभी मंदिरों में उमड़ती है लेकिन बांके बिहारी मंदिर तो जनसैलाब बन जाता है. दरअसल वृंदावन नगरी इन दोनों पर्वों पर उत्सव नगरी सी बन जाती है और देश-विदेश से दर्शक और श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं.

कहा जाता है कि सन्‌ 1863 में स्वामी हरिदास को बांके बिहारीजी के दर्शन हुए थे तब यह प्रतिमा निधिवन में थी, बाद में वर्ष 1864 में इस मंदिर को बनवाने के बाद इस प्रतिमा को इस मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया. पूरे वृंदावन में कृष्ण लीला का तिलिस्म चप्पे-चप्पे पर बिखरा हुआ है. चप्पे-चप्पे पर देशी-विदेशी कृष्ण भक्त नजर आते हैं, कोई वहां वृंदावन नगरी की ‘आठ कोसी परिक्रमा’ कर रहा है,

कहीं मंदिर के प्रांगण में भजन कीर्तन हो रहा है. राजस्थान के एक अन्य भक्त बताते हैं कि यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है जहां सिर्फ इस भावना से कि कहीं बांके बिहारी की नींद में खलल न पड़ जाए इसलिए सुबह घंटे नहीं बजाए जाते बल्कि उन्हें हौले-हौले एक बालक की तरह दुलार कर उठाया जाता है.

इसी तरह संध्या आरती के वक्त भी घंटे नहीं बजाए जाते ताकि वे शांति से रहें. गुजरात के एक भक्त बताते हैं कि बांके बिहारीजी आधी रात को गोपियों के संग रासलीला करने यहीं के निधिवन में जाते हैं और तड़के चार बजे वापस लौट आते हैं. ऐसे ही एक दिन जब वे रात को गायब हो गए तो उनका पंखा झलने वाले एक सेवक की पंखा झलते-झलते अचानक आंख लग गई, चौंक कर देखा तो ठाकुरजी गायब थे.

परेशान सेवक को कुछ सूझ ही नहीं रहा था, इसी आलम में भोर हो गई और भोर चार बजे अचानक वे वापस आ गए. अगले दिन वही सब कुछ दोबारा पहले जैसा ही हुआ तो सेवक ने ठाकुरजी का पीछा किया और ये राज खुला कि ठाकुरजी निधिवन में जाते हैं. तभी से सुबह की मंगल आरती का समय थोड़ा देर से कर दिया जिससे रतजगे से आए ठाकुरजी की अधूरी नींद पूरी हो सके.

भगवान के भक्त के प्रति प्रेम के यहां के यह किस्से अद्भुत हैं. इस अटूट आस्था के सम्मुख तर्क बेमायने है. विधवा मां अब भी पर्दे के पीछे की बांके बिहारीजी की इसी लुकाछिपी से व्यथित होकर ही बरसती आंखों से गुहार कर रही थीं ‘हमसे पर्दा न करो बांके बिहारी.’ बांके बिहारी की एक झलक, दर्शन के बाद अब मंदिर से वापसी...रंगों से सराबोर श्रद्धालु हैं चारों ओर, और बीच-बीच में राधे-राधे के बोल.

मंदिर के बाहर निकलते ही संकरी सी गली में बनी किसी दुकान पर गायिका शुभा मुद्ग‌ल की आवाज में गाया एक गीत माहौल में एक अजीब सी शांति और अजीब सी बेचैनी बिखेर रहा है ‘वापस गोकुल चल मथुराराज.... , राजकाज मन न लगाओ, मथुरा नगरपति काहे तुम गोकुल जाओ?’ बांके बिहारी से चलने का आग्रह तो विधवा मां के साथ ही शायद सभी भक्त कर रहे हैं!

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