ब्लॉग: वोटर कार्ड और आधार कार्ड लिंक पर उठते सवाल
By अवधेश कुमार | Published: December 23, 2021 01:47 PM2021-12-23T13:47:37+5:302021-12-23T13:50:44+5:30
आज से तीन दशक पहले तत्कालीन कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार संबंधी एक समिति बनी. तब से अभी तक स्वयं चुनाव आयोग चुनाव सुधारों को लेकर न जाने कितने प्रस्ताव दे चुका है. वह सरकार सहित सभी राजनीतिक दलों की अनेक बैठकें बुला चुका है. इन बैठकों में मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़े जाने का प्रस्ताव भी शामिल रहा है.
मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से लिंक करने का मामला विवाद और राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है.
हालांकि, यह कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया, बावजूद लंबे समय तक इस पर तीखी बहस होती रहेगी.
हमारे देश में आधार कार्ड या ऐसे सभी पहचान पत्रों से संबंधित कारणों को लेकर विवाद हमेशा से रहे हैं. जो पार्टी विपक्ष में होती है, वह प्रश्न उठाती है और सत्तारूढ़ पार्टी सही ठहराती है.
आज से तीन दशक पहले तत्कालीन कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार संबंधी एक समिति बनी. तब से अभी तक स्वयं चुनाव आयोग चुनाव सुधारों को लेकर न जाने कितने प्रस्ताव दे चुका है.
वह सरकार सहित सभी राजनीतिक दलों की अनेक बैठकें बुला चुका है. इन बैठकों में मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़े जाने का प्रस्ताव भी शामिल रहा है.
2012 में जब इसका प्रस्ताव आया तब से 9 वर्ष बीत चुके हैं. कोई कहे कि इस पर विचार-विमर्श बहस नहीं हुआ, तो यह उसकी मान्यता होगी लेकिन चुनाव आयोग और चुनाव सुधार संबंधी प्रस्तावों पर दृष्टि रखने वालों के लिए इस तर्क में कोई दम नहीं है.
संसद में स्थायी समिति के पास किसी विषय को भेजना वैधानिक रूप से मान्य हो सकता है पर कुछ ऐसे मामले हैं जिन पर तत्काल निर्णय किया जाना चाहिए. मूल बात यह नहीं है कि इस पर बहस हुई या नहीं हुई, जल्दीबाजी में लाया गया या देर से किया गया, महत्वपूर्ण यह है कि इसकी आवश्यकता थी या नहीं.
मार्च, 2015 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एच.एस. ब्रह्मा ने राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम यानी एनईआरपीएपी नामक एक कार्यक्रम शुरू किया था. इसका एक लक्ष्य आधार और मतदाता पहचान पत्र को लिंक करना भी था.
उसी समय एक जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित किया था. इसमें कहा था कि आधार का इस्तेमाल राज्य द्वारा खाद्यान्न और रसोई गैस के वितरण की सुविधा प्रदान करने के अलावा किसी और उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है.
इस समय भी उस फैसले को उद्धृत करके कहा जा रहा है कि वर्तमान कदम उसके विरुद्ध है. यह तर्क दिया जा सकता है लेकिन ध्यान रखिए कि तब न्यायालय के सामने मतदाता पहचान पत्र के साथ इसे लिंक करने का मामला सामने नहीं आया था.
चुनाव आयोग ने इसके पक्ष में जो तर्क दिए हैं उसके अनुसार इससे मतदाताओं की पहचान सत्यापित होगी और फर्जी मतदान रोका जा सकेगा. राजनीतिक पार्टियां ही मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का प्रश्न उठाती रही हैं. उसे रोकने के कई तरीके हो सकते हैं जिसमें वर्तमान ढांचे में आधार कार्ड से उसको लिंक करना शायद सर्वाधिक सुरक्षित रास्ता है.
दूसरे, इससे चुनाव प्रक्रिया आसान होगी और भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट आधारित मतदान प्रक्रिया लागू करने में सहायता मिलेगी. तीसरे, प्रवासी मतदाताओं को मतदान करने का अवसर मिलेगा और प्रॉक्सी मतदान को आसान बनाने के लिए मतदान का सत्यापन करना आसान हो जाएगा.
इस समय लगभग 50 लाख अनिवासी भारतीयों को मतदान करने की इजाजत मिली है. देश के अंदर ही करोड़ों की संख्या में ऐसे मतदाता हैं जो अपने मूल स्थान से बाहर आते हैं और उन्हें मतदान का अवसर नहीं मिलता.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स का आंकड़ा 28.5 करोड़ यानी कुल पंजीकृत मतदाताओं का 38 प्रतिशत बताता है. हालांकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह 10 से 12 करोड़ के आसपास होगा.
अगर संख्या इन दोनों के बीच में हो तब भी यह बहुत बड़ी आबादी है जो मतदान से वंचित रह जाती है. ऐसे अनेक पहलुओं से मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का मामला सही ठहर जाता है.
निजता से जुड़े प्रश्न आधार कार्ड के साथ हमेशा जुड़े रहे हैं. हालांकि इसकी सच्चाई यही है कि देश के ज्यादातर लोग मोबाइल का सिम लेने में भी बिना किसी संकोच के आधार कार्ड दे देते हैं.
आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का ध्यान रखते हुए सरकार के इरादे पर प्रश्न उठाया जा सकता है. प्रश्न किया जा सकता है कि ठीक चुनाव के पहले ही सरकार को इसकी याद क्यों आई? हो सकता है सरकार के इरादे में राजनीतिक लाभ का भी विषय हो, परंतु चुनाव आयोग को यह कदम सही लगता है तो देश को उस पर विश्वास करना चाहिए.
वैसे भी मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने को अनिवार्य नहीं बनाया गया है. इसे स्वैच्छिक रखा गया है. इसमें इतना ही है कि मतदाता पहचान पत्र बनाने वाले कर्मचारी लोगों से आधार कार्ड मांग सकते हैं. जब भी ऐसे कदम उठाएंगे उसको राजनीतिक लाभ-हानि से जोड़कर देखा जाएगा और सत्तारूढ़ पार्टी हमेशा निशाने पर रहेगी.
हमारे देश में हर वर्ष विधानसभाओं या स्थानीय निकायों के चुनाव कहीं न कहीं होते रहते हैं और इसके आधार पर महत्वपूर्ण कदमों को रोका जाना किसी दृष्टि से उचित नहीं होगा.