विशाला शर्मा का ब्लॉगः पत्रकारिता के युग निर्माता थे बाबूराव विष्णु पराड़कर

By विशाला शर्मा | Published: November 16, 2021 01:28 PM2021-11-16T13:28:32+5:302021-11-16T15:33:41+5:30

पत्रकारिता के माध्यम से स्वतंत्रता का संकल्प और 50 वर्षो तक पत्रकारिता जगत की निरंतर सेवा करने वाले पराड़कर की पत्रकारिता का उद्देश्य देश सेवा करना था। लोकमान्य तिलक और अरविंद घोष जैसे नेताओं के साथ स्वाध्याय कर पत्रकारिता के क्षेत्न में उन्होंने पदार्पण किया।

vishala sharma blog baburao vishnu paradkar was architect of the era of journalism | विशाला शर्मा का ब्लॉगः पत्रकारिता के युग निर्माता थे बाबूराव विष्णु पराड़कर

विशाला शर्मा का ब्लॉगः पत्रकारिता के युग निर्माता थे बाबूराव विष्णु पराड़कर

‘रणभेरी बज उठी वीरवर पहनो केसरिया बाना’ इस क्रांतिकारी सिद्धांत सूत्र के साथ स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर की पत्रकारिता, साहित्य, राष्ट्रीय जागरण, स्वतंत्रता संग्राम तथा भारत के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही। हिंदी पत्रकारिता, राष्ट्र की पराधीनता से मुक्ति तथा समाज उन्नति के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया और क्रांतिकारी के रूप में अपने जीवन का आरंभ किया। हिंदी पत्रकारिता में नवयुग का परावर्तन करने का श्रेय उनको जाता है। उनकी जन्मभूमि काशी थी। पिता पंडित विष्णु शास्त्री महाराष्ट्र से काशी जाकर बस गए थे, वहीं 16 नवंबर 1883 तो उनका जन्म हुआ।

पत्रकारिता के माध्यम से स्वतंत्रता का संकल्प और 50 वर्षो तक पत्रकारिता जगत की निरंतर सेवा करने वाले पराड़कर की पत्रकारिता का उद्देश्य देश सेवा करना था। लोकमान्य तिलक और अरविंद घोष जैसे नेताओं के साथ स्वाध्याय कर पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने पदार्पण किया। 1906 में हिंदी बंगवासी में सहायक संपादक तथा 1907 में हित वार्ता का संपादक पद संभाला। संपादन के साथ-साथ अरविंद घोष के नेशनल कॉलेज में हिंदी और मराठी का अध्यापन कार्य भी शुरू किया। अध्यापन कार्य करते हुए विष्णु पराड़करजी छात्रों को फ्रांस और रूसी क्रांति का इतिहास बताते हुए इस बात पर बल देते थे कि देश के युवकों पर भारत माता की स्वतंत्रता का उत्तरदायित्व है।

वे हिंदी के प्रति आजीवन समर्पित रहे। पराड़करजी ने लिखा था- ‘हिंदी सारे देश की भाषा है। इसमें प्रांतीय अभिमान बिल्कुल नहीं है। हिंदी राष्ट्र के लिए राज्य के मुंह से बोलती है क्योंकि वह राष्ट्र की भाषा है।’ अपने समय के कई श्रेष्ठ लेखकों के निर्माण में पराड़करजी का विशेष योगदान रहा। पराड़करजी ने पत्रकारिता के सम्मुख विचार, विवेचना और विविधता के साथ एक आदर्श स्थापित किया। एक संपादक को साहित्य, भाषा विज्ञान, समाजशास्त्र राजनीति शास्त्र तथा अंतरराष्ट्रीय विधानों का सामान्य ज्ञान होना आवश्यक है। इस बात को स्पष्ट करते हुए उनकी मान्यता थी कि किसी भी समाचार पत्र के मुख्य दो धर्म होते हैं- एक तो समाज का चित्र खींचना और दूसरा समुपदेशन करना। इस दूसरे धर्म पर पराड़करजी ज्यादा बल देते थे और उनका मानना था कि यही देश की सच्ची सेवा है। एक सफल राष्ट्रीय पत्रकार के दायित्व का निर्वाह करने वाले साधक को आज साहित्य एवं पत्रकारिता जगत नमन करता है।
 

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