विनीत नारायण का नजरियाः बारिश की गड़बड़ी से निपटना सीखना पड़ेगा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 30, 2019 09:17 AM2019-09-30T09:17:20+5:302019-09-30T09:17:20+5:30

इस साल दो तिहाई देश असामान्य बारिश का शिकार है. आधा देश हद से ज्यादा असामान्य वर्षा से ग्रस्त हुआ है. मध्य भारत बाढ़ का शिकार है तो पूर्व व पूर्वोत्तर के कई उपसंभागों में सूखे जैसे हालात हैं. इस समय बिहार में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है. 

Vineet Narayan's Opinion: have to learn to deal with the rain | विनीत नारायण का नजरियाः बारिश की गड़बड़ी से निपटना सीखना पड़ेगा

विनीत नारायण का नजरियाः बारिश की गड़बड़ी से निपटना सीखना पड़ेगा

चार महीनों का वर्षाकाल खत्म हो गया है. पूरे देश में वर्षा का औसत देखें तो कहने को इस साल अच्छी बारिश हुई है. लेकिन कहीं बाढ़ और कहीं सूखे जैसे हालात बता रहे हैं कि यह मानसून देश पर भारी पड़ा है. कुल मिलाकर इस साल दो तिहाई देश असामान्य बारिश का शिकार है. आधा देश हद से ज्यादा असामान्य वर्षा से ग्रस्त हुआ है. मध्य भारत बाढ़ का शिकार है तो पूर्व व पूर्वोत्तर के कई उपसंभागों में सूखे जैसे हालात हैं. इस समय बिहार में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है. 

पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश में अतिवर्षा से किसानों की तबाही की थोड़ी बहुत खबरें जरूर दिखाई दीं. वरना अभी तक इस तरफ मीडिया का ज्यादा ध्यान नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला मानसून आखिर रहा कैसा. बाढ़ से जो नुकसान हुआ उसका आकलन हो रहा है लेकिन यह बात तो बिल्कुल ही गायब है कि इस मानसून की मार का आगे क्या असर पड़ेगा. खास तौर पर उन उपसंभागों में जो सूखे की चपेट में हैं. एक अकेले मध्य प्रदेश में ही बाढ़ और बेवक्त बारिश से ग्यारह हजार करोड़ रु. के नुकसान का आकलन है. मानसून ने जाते-जाते उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी तबाही मचाई और बिहार में भी कहर ढा रहा है. यानी तीन चौथाई देश में मानसून की मार का मोटा हिसाब लगाएं तो यह नुकसान पचास हजार करोड़ से कम नहीं बैठेगा.
 
बात यहीं पर खत्म नहीं होती. ज्यादा बारिश के पक्ष में माहौल बनाने वालों की कमी नहीं है. उन्हें लगता है सूखा पड़ना ज्यादा भयावह है और बाढ़ वगैरह कम बड़ी समस्या है. उन्हें लगता है कि ज्यादा बारिश का मतलब है कि बाकी आठ महीने के लिए देश में पानी का इंतजाम हो गया. यहां इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि वर्षा के पानी को रोक कर रखने के लिए देश के पास बहुत ही थोड़े से बांध हैं. इन बांधों की क्षमता सिर्फ 257 अरब घनमीटर पानी रोकने की है, जबकि देश में सामान्य बारिश की स्थिति में कोई 700 अरब घनमीटर सतही जल मिलता है. यानी जब हमारे पास पर्याप्त जल भंडारण क्षमता है ही नहीं तो ज्यादा पानी बरसने का फायदा उठाया ही नहीं जा सकता. बल्कि यह पानी बाढ़ की तबाही मचाता हुआ वापस समुद्र में चला जाता है.  

कहते हैं कि देश में अगले अभियान का ऐलान जल संचयन को लेकर ही होने वाला है. जाहिर है बूंद-बूद जल बचाने की मुहिम और जोर से शुरू होगी. लेकिन क्या मुहिम काफी होगी? देश में जलापूर्ति ही सीमित है. लोग खुद ही किफायत से पानी का इस्तेमाल करने लगे हैं. बेशक किफायत की जागरूकता बढ़ने से कुछ न कुछ पानी जरूर बचेगा. लेकिन जहां वर्षा के कुल सतही जल का दो-तिहाई हिस्सा बाढ़ की तबाही मचाता हुआ समुद्र में वापस जा रहा हो तो हमें वर्षा जल संचयन के लिए बांध, जलाशय और तालाबों पर ध्यान देना चाहिए.

Web Title: Vineet Narayan's Opinion: have to learn to deal with the rain

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