विजय दर्डा का ब्लॉग: प्लास्टिक नाम का ये राक्षस भविष्य खा जाएगा
By विजय दर्डा | Published: October 22, 2018 03:42 AM2018-10-22T03:42:54+5:302018-10-22T03:42:54+5:30
2012 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय ने कहा था कि यदि प्लास्टिक को पूरी तरह बैन नहीं किया गया तो हमारी अगली पीढ़ी के लिए यह एटम बम से भी ज्यादा खतरनाक साबित होगा। वाकई ऐसा ही लग रहा है।
अमेरिकी रसायनशास्त्री लियो हैंड्रिक बैकेलैंड ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस सिंथेटिक प्लास्टिक का उन्होंने आविष्कार किया वह दुनिया के लिए इतना खतरनाक साबित होगा! 1907 में प्लास्टिक का जन्म हुआ और धीरे-धीरे इसने अपने कदम बढ़ाए।
इसके बाद दुनिया में इसका दूसरा स्वरूप आया जिसे हम पॉलिथीन के नाम से जानते हैं। दरअसल ब्रिटेन के नॉर्थविच शहर में कुछ रसायनशास्त्री एक प्रयोग कर रहे थे। वह प्रयोग गलत हो गया और सफेद रंग का एक चिकना पदार्थ उभर आया। वह पॉलिथीन था। 1938 में इसका व्यापारिक उत्पादन शुरू हुआ।
कोई पचास साल पहले इसने दुनिया को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू किया और फिर छा गया। इसका सस्ता होना, पानी से सामान की रक्षा करना और पैकेजिंग के लिए उपयुक्त होना इसके प्रसार का कारण बना, लेकिन कुछ दशक में ही यह समझ में आने लगा कि फायदे से ज्यादा नुकसान है।
पहले हम कपड़े के झोले और कागजों से बने थैले का उपयोग करते थे जो प्रकृति के अनुकूूल थे। कुछ ही समय में नष्ट हो जाते थे यानी डिकम्पोज हो जाते थे। प्लास्टिक के बारे में अभी तक पता नहीं है कि यह नष्ट होने के लिए कितना वक्त लेता है। कुछ वैज्ञानिक 500 साल बताते हैं तो कुछ इससे भी ज्यादा! 1907 में बना प्लास्टिक और 1933 में बना पॉलिथीन अभी नष्ट नहीं हुआ है। जरा सोचिए कि भविष्य क्या होगा?
2012 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय ने कहा था कि यदि प्लास्टिक को पूरी तरह बैन नहीं किया गया तो हमारी अगली पीढ़ी के लिए यह एटम बम से भी ज्यादा खतरनाक साबित होगा। वाकई ऐसा ही लग रहा है।
हमारे शहरों के ड्रेनेज को प्लास्टिक ने तबाह कर दिया है। 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की दस बड़ी नदियों में जितना प्लास्टिक समाया हुआ है उसका करीब 90 प्रतिशत हिस्सा भारत की तीन नदियों, गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र में है। शहरों से या पास से निकलने वाली नदियों को तो प्लास्टिक कचरे ने बिल्कुल तबाह ही कर दिया है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्लास्टिक खपत के मामले में दुनिया के विकसित देशों से भारत काफी पीछे है। भारत में प्लास्टिक की खपत प्रति व्यक्ति 10 किलो 880 ग्राम सालाना है जबकि अमेरिका में यह खपत 108 किलो 860 ग्राम है।
दरअसल समस्या यह है कि हम ठीक से प्लास्टिक का री-यूज नहीं कर पा रहे हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार भारत में प्रति दिन 16500 टन कचरा निकलता है। इसमें से केवल 9900 टन कचरा ही एकत्रित और रिसाइकिल किया जाता है।
शेष करीब 6600 टन कचरा नदी-नालों को चोक करता है या धरती को बर्बाद करने के लिए दब जाता है या नदियों से होते हुए समुद्र में बह जाता है। आपको जानकर दुख होगा कि दुनिया में करीब 10 लाख समुद्री पक्षियों और एक लाख समुद्री जीवों की हर साल प्लास्टिक के कारण मौत हो जाती है।
तो सवाल यह है कि प्लास्टिक नाम के इस राक्षस से मुक्ति कैसे पाई जाए? कागजी तौर पर देश के 25 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने प्लास्टिक पर बैन लगा दिया है। कुछ जगह पूर्ण प्रतिबंध है तो कुछ जगह आंशिक। पॉलिथीन की मोटाई को मानक बनाया गया है।
सरकार कार्रवाई भी कर रही है और अभी तक विभिन्न राज्यों ने लगातार दंड भी वसूला है लेकिन समस्या जस की तस है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, एमपी जैसे बड़े राज्यों में पूरा बैन है लेकिन हर कहीं आपको प्लास्टिक मिल जाएगा, पॉलिथीन की थैलियां मिल जाएंगी।
दरअसल प्लास्टिक मुक्ति को लेकर कोई सख्ती दिखाई नहीं देती है। कर्नाटक में प्लास्टिक बैन है लेकिन वहां प्लास्टिक के राजनीतिक बैनर भी आपको सहज ही दिखाई दे जाएंगे। हां, पहाड़ी राज्यों ने जरूर इस दिशा में उपलब्धि हासिल की है। वहां पॉलिथीन की थैलियों पर लोगों ने स्वेच्छा से प्रतिबंध लगा रखा है।
इस साल मार्च में जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र में प्लास्टिक पर प्रतिबंध की घोषणा की तो बेहतर भविष्य की उम्मीदें जगीं। 23 जून से प्रतिबंध लागू हुआ। चार महीने बाद आकलन करें तो स्पष्ट लगता है कि सफलता पूरी तरह नहीं मिली है। बड़े शहरों में भी धड़ल्ले से पॉलिथीन में सामग्री बेची जा रही है।
दरअसल समस्या जनचेतना की है। अधिकारियों को सख्ती दिखानी होगी और लोगों को यह समझना होगा कि प्लास्टिक पर बैन उनके और आने वाली पीढ़ियों के भले के लिए है। लोगों को कपड़े और री-यूज वाले कागज के थैले का इस्तेमाल शुरू करना होगा।
बस एक बार आदत डालने की जरूरत है। बहुत से लोगों ने तो आदत डाल भी ली है। हमारे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने विश्वास दिलाया है कि 2022 तक भारत सिंगल यूज वाले प्लास्टिक से मुक्त हो जाएगा। उम्मीद करें कि यह सपना पूरा होगा!