विजय दर्डा का ब्लॉगः एक देश-एक चुनाव निश्चय ही अच्छी पहल

By विजय दर्डा | Published: August 19, 2019 06:03 AM2019-08-19T06:03:20+5:302019-08-19T06:03:20+5:30

लाल किले की प्राचीर से अपने 92 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने बहुत सी बातें कीं, बहुत से वादे किए, नए रास्तों की बात की, नए मुकाम की बात की. इन सबके बीच उन्होंने देश के सामने ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ का एक बड़ा महत्वपूर्ण विचार भी रखा.

Vijay Darda's blog: One country-one election is definitely a good initiative | विजय दर्डा का ब्लॉगः एक देश-एक चुनाव निश्चय ही अच्छी पहल

विजय दर्डा का ब्लॉगः एक देश-एक चुनाव निश्चय ही अच्छी पहल

वन नेशन, वन कांस्टीट्यूशन और वन नेशन, वन फ्लैग का सपना  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर का अब न अलग संविधान रहा और न झंडा. अब दोनों ही केवल इतिहास की किताबों में होंगे. प्रधानमंत्री ने केवल इतना ही नहीं किया है बल्कि जीएसटी के रूप में वन नेशन, वन टैक्स का सपना भी पूरा हो चुका है. वैसे जीएसटी का यह सपना देखा तो कांग्रेस ने था लेकिन पूरा किया नरेंद्र मोदी सरकार ने. 

लाल किले की प्राचीर से अपने 92 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने बहुत सी बातें कीं, बहुत से वादे किए, नए रास्तों की बात की, नए मुकाम की बात की. इन सबके बीच उन्होंने देश के सामने ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ का एक बड़ा महत्वपूर्ण विचार भी रखा. उन्होंने कहा कि आज देश में व्यापक रूप से इस पर चर्चा चल रही है. यह चर्चा होनी चाहिए और लोकतांत्रिक रूप से होनी चाहिए. एक भारत-श्रेष्ठ भारत के सपने को पूरा करने के लिए ऐसी और भी चीजें हमें व्यवस्था में जोड़नी होंगी. मैं प्रधानमंत्री के इन विचारों से पूरी तरह सहमत हूं. 

मैंने अपना पूरा जीवन देश सेवा को समर्पित किया है और राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहा हूं इसलिए मुङो देश और चुनाव प्रणाली को समझने का बेहतर मौका मिला है. मैं हमेशा ही यह सोचता रहा हूं कि यह देश पूरे समय चुनाव में ही क्यों लगा रहता है? आप यदि देखें तो कभी इस राज्य में चुनाव हो रहा है तो कभी उस राज्य में और कभी बहुत सारे राज्यों में! तो होता यह है कि देश में हर समय कहीं न कहीं चुनावी प्रक्रिया चलती रहती है. आचार संहिता लग जाती है तो सारे काम ठप हो जाते हैं. 

मोटे तौर पर भी देखें तो एक राज्य में दो बार तो चुनाव होता ही है. एक बार लोकसभा का चुनाव और दूसरी बार विधानसभा का चुनाव. इसके अलावा जिला पंचायतों और स्थानीय निकायों के चुनाव भी होते ही रहते हैं. सीधी सी बात है कि दोनों ही मौकों पर बड़ी धनराशि खर्च होती है और समय भी खर्च होता है. इसके साथ ही प्रशासनिक कार्यो पर भी असर होता है. कई बार एक राज्य के अधिकारी दूसरे राज्यों में भी चुनाव कराने जाते हैं. यानी दोनों राज्यों में काम प्रभावित. यदि एक बार में दोनों चुनाव हो जाएं तो इससे निश्चय ही संसाधनों की भारी बचत होगी. पैसा बचेगा, जिसका देश के विकास और गरीबों के आंसू पोंछने में उपयोग हो सकता है.

हमारे देश में यह विडंबना है कि राजनीतिक दल बेवजह भी एक-दूसरे का विरोध करते हैं. समझ में नहीं आता किसे दोष दें. पिछले साल जून में प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. कुछ दलों ने भाग लिया और कुछ ने नहीं! कुछ ने समर्थन किया तो बहुत सी पार्टियां विरोध में खड़ी हो गईं. पिछले साल की ही बात है, लॉ कमीशन ने भी विभिन्न दलों की राय जानी थी. तब समाजवादी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल तथा तेलंगाना राष्ट्र समिति ने तो समर्थन किया था लेकिन डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने विरोध किया था. कांग्रेस ने बीच का रास्ता अपनाया और कहा कि अन्य दलों से विचार के बाद ही वह अपनी राय व्यक्त करेगी. 

बहरहाल, विरोध करने वालों का तर्क है कि लोकसभा और विधानसभा के लिए मतदाता का मूड अलग होता है इसलिए चुनाव भी अलग ही होने चाहिए. यदि एक साथ चुनाव होंगे तो मतदाता एक ही पार्टी को वोट देगा. मैं ऐसे तर्को से सहमत नहीं हूं. देश में ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं लेकिन दोनों के परिणाम अलग-अलग रहे हैं. किसी को भी भारतीय मतदाता की समझ पर अविश्वास नहीं होना चाहिए. हमारा मतदाता समझदार है. ओडिशा इसका सबसे बड़ा  उदाहरण है. वहां पिछले कई चुनाव एक साथ  हुए हैं लेकिन परिणाम अलग रहे हैं.

यहां मैं आपको यह बताना जरूरी समझता हूं कि एक देश एक चुनाव की बात कोई नई नहीं है. आजादी के बाद 1951-52 में पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे. 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे. लेकिन उसके बाद राजनीतिक कारणों से 1968-69 में देश के कई राज्यों की विधानसभाएं भंग हुईं और एक साथ चुनाव का सिलसिला टूट गया. फिर 1999 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए. 2015 में कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने भी एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोशिश कर रहे हैं तो हमें उम्मीद करनी चाहिए कि देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए सहमति बनेगी. मुङो उम्मीद है कि राजनीतिक दल अपने दलीय हितों से ऊपर उठकर सोचेंगे और दुनिया के सामने नजीर पेश करेंगे. वैसे एक साथ चुनाव के लिए सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कराना पड़ेगा और यह सरकार पास करा भी लेगी. 

विचार सराहनीय, लेकिन एक्शन जरूरी..

आज देश की इकोनॉमी की हालत क्या है, यह हर कोई जान रहा है, हर व्यक्ति परेशान है, हर सेक्टर परेशान है. ऐसे मौके पर प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि हम वेल्थ क्रिएटर यानी धन पैदा करने वालों को शंका की दृष्टि से न देखें. उनका गौरव बढ़ना चाहिए. यदि वेल्थ क्रिएट नहीं होगा तो डिस्ट्रीब्यूट कहां से होगा? यदि धन बंटेगा नहीं तो गरीबों का भला कैसे होगा? मैं इन विचारों से पूरी तरह सहमत हूं. जो धन कमाते हैं, वे देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हजारों, लाखों लोगों को रोजगार देते हैं. ऐसे लोगों की कद्र होनी ही चाहिए. लेकिन हकीकत यह है कि हमारी सरकारी एजेंसियों का रवैया ऐसा है कि वे धन कमाने वालों को तरह-तरह से परेशान करती हैं. उन्हें गुनहगार मान कर चलती हैं. मुङो उम्मीद है, प्रधानमंत्री इस पर भी ध्यान दे रहे होंगे!

Web Title: Vijay Darda's blog: One country-one election is definitely a good initiative

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