विजय दर्डा का ब्लॉग: बेरूत दुर्घटना ने विस्फोटकों के भंडारण में लापरवाही और सहज उपलब्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं

By विजय दर्डा | Published: August 16, 2020 05:52 PM2020-08-16T17:52:26+5:302020-08-16T17:52:26+5:30

लेबनान की राजधानी बेरूत में जिस तरह अमोनियम नाइट्रेट का भंडार रखा था उसी तरह चेन्नई में भी बड़ा भंडार रखा है. अब सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वह सुरक्षित स्थिति में है? और दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर सवाल है कि हमारे देश में विस्फोटक आखिर आते कहां से हैं?

Vijay Darda's blog: Beirut accident has raised questions over negligence and spontaneous availability of explosives in storage | विजय दर्डा का ब्लॉग: बेरूत दुर्घटना ने विस्फोटकों के भंडारण में लापरवाही और सहज उपलब्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं

बेरूत दुर्घटना की तस्वीर (फाइल फोटो)

बेरूत में जब भीषण विस्फोट हुआ तो पहली नजर में सबको यही लगा कि यह कोई आतंकवादी घटना है. जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि 2700 टन अमोनियम नाइट्रेट को पिछले 6 सालों से इस बंदरगाह पर स्टोर करके रखा गया था.

किसी तरह इसमें आग लग गई और जो क्षति हुई वह पूरी दुनिया के सामने है. डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मर गए, चार हजार से ज्यादा बुरी तरह घायल हो गए और करीब दो लाख लोग बेघर हो गए. उनके घर या तो पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं या फिर रहने के लिए खतरनाक हैं.प्रारंभिक अनुमान है कि करीब 15 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.

अब यह साबित हो चुका है कि विस्फोट की यह घटना विस्फोटक के रखरखाव में लापरवाही का ही नतीजा है, इसलिए अब लोग बेहद गुस्से में हैं और वहां के पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बेरूत की घटना ने उन सभी देशों को हिला कर रख दिया जिनके यहां अमोनियम नाइट्रेट के भंडार भरे पड़े हैं. इनमें से भारत भी एक है.

Clear Ammonium Nitrate from North Chennai Warehouse: Panel's ...

2015 में चेन्नई पोर्ट पर 740 टन अमोनियम नाइट्रेट किया गया था सीज

2015 में चेन्नई पोर्ट पर 740 टन अमोनियम नाइट्रेट सीज किया गया था क्योंकि उसे मंगाने वाली कंपनी ने आयात के लिए सरकार से अनुमति नहीं ली थी.

इसे सीज करने के बाद सरकार शायद भूल गई. जहां इसे रखा गया वहां से केवल 700 मीटर की दूरी पर एक बस्ती है और करीब 7000 लोग वहां रहते हैं. बेरूत में जैसे ही धमाका हुआ, भारत में अधिकारियों के कान खड़े हुए और आनन-फानन में वहां से 200 टन अमोनियम नाइट्रेट को हैदराबाद पहुंचाया गया जिसे एक कंपनी ने खरीदा.

अब सवाल यह है कि पिछले पांच साल से इसे यूं ही कंटेनरों में चेन्नई में क्यों रखा गया था. इसे निपटाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इसका कारण शायद यही लगता है कि अधिकारी इसकी भीषणता को समझ ही नहीं पाए.

Over 25 killed, 2,500 injured in Beirut explosions | english ...

अमोनियम नाइट्रेट विस्फोट में आक्सीडाइजर का काम करता है

दरअसल अमोनियम नाइट्रेट अपने आप में विस्फोटक नहीं है लेकिन विस्फोट में आक्सीडाइजर का काम करता है जिससे विस्फोट की ताकत कई गुना बढ़ जाती है. इसे आग का साथ मिल जाए तो क्या हश्र कर सकता है इसका उदाहरण बेरूत में दिख चुका है.

अधिक गर्मी मिलने पर भी इसमें विस्फोट हो सकता है. अमोनियम नाइट्रेट एक औद्योगिक रसायन है जिसका उपयोग खाद बनाने में भी होता है. अमोनियम नाइट्रेट को स्टोर करने के लिए विस्फोटक अधिनियम के तहत कुछ प्रावधान हैं मसलन इसे खुली और हवादार जगह पर स्टोर किया जाता है लेकिन पानी या धूप सीधे इस पर नहीं पड़ना चाहिए.

3-member committee gives thumbs up to ammonium nitrate warehouse ...

संयुक्त राष्ट्र ने अमोनियम नाइट्रेट को खतरनाक सामान की लिस्ट में वर्गीकृत किया है

अमोनियम नाइट्रेट को संयुक्त राष्ट्र ने खतरनाक सामान की लिस्ट में वर्गीकृत कर रखा है. जाहिर सी बात है कि चेन्नई में इसे जिस तरह से रखा गया था वह सुरक्षित नहीं था. अच्छी बात है कि अब सुरक्षा की व्यवस्था की जा रही है.

सवाल केवल चेन्नई के इस अमोनियम नाइट्रेट का ही नहीं है. सवाल तो यह है कि हमारे यहां विस्फोटक को रखने में लापरवाही क्यों बरती जाती है और यह बाजार में इतनी आसानी से उपलब्ध कैसे हो जाता है? ये दो प्रमुख सवाल हैं जिन पर सरकार का ध्यान होना चाहिए.

पहले तो सहेजने में लापरवाही की बात करें. ऐसा कोई साल नहीं होता जब देश के विभिन्न हिस्सों में पटाखों से आग नहीं लगती हो और लोगों की जान न जाती हो.

विक्रीची खात्री नसल्याने ...

शिवाकाशी में 7 लाख से ज्यादा मजदूर बनाते हैं पटाखा 

चेन्नई के पास ही शिवाकाशी नाम की जगह है जहां 7 लाख से ज्यादा मजदूर पटाखा बनाने का काम करते हैं और देश में 90 फीसदी पटाखा यहीं से सप्लाई होता है.

पटाखे में उपयोग के लिए जिन विस्फोटकों का इस्तेमाल होता है वे बिना लाइसेंस के नहीं मिलते हैं लेकिन दुर्घटनाओं के बाद कई बार यह बात सामने आ चुकी है कि वहां अवैध कारोबार के माध्यम से विस्फोटकों की सप्लाई होती है.

बात केवल शिवाकाशी की ही नहीं है. गुरदासपुर(पंजाब) में रिहायशी  बस्ती में चल रही अवैध पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 25 लोग मारे गए थे. उत्तरप्रदेश, ओडिशा और यहां तक कि दिल्ली में भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं. निश्चित ही यह विस्फोटकों के प्रति लपारवाही बरतने का नतीजा है.

देश में विस्पोटक जिलेटिन की छड़ों का भी होता है धड़ल्ले से उपयोग

अब बाजार में सहजता से उपलब्धता का भी उदाहरण देखिए. पहाड़ तोड़ने से लेकर जमीन में गड्ढा करने के लिए या फिर शहरों में भवनों को गिराने के लिए जिलेटिन की छड़ों का धड़ल्ले से उपयोग होता है. इसे यदि आप खरीदना चाहें तो कोई मुश्किल नहीं होगी.

यही छड़ें विस्फोट के लिए कई बार आतंकवादी भी उपयोग में लाते हैं और नक्सली भी. 2017 की घटना आपको याद होगी जब मध्यप्रदेश के पेटलावद में रेत के बोरों में भर कर रखी गई जिलेटिन की छड़ों के कारण विस्फोट हो गया था और 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. जिलेटिन की छड़ों को बम का ट्रिगर भी कह सकते हैं.

हमारे देश में विस्फोटक कितनी सहजता से मिल जाता है इसका एक उदाहरण इसी साल हमें दिखा जब किसी व्यक्ति ने एक हथिनी को विस्फोटक खिला दिया था.

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सरकार विस्फोटकों के अवैध करोबार पर लगाम क्यों नहीं लगा पाती?

इतना ही नहीं, आतंकवादी और नक्सली जिस तरह से इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करते हैं, उससे तो यही लगता है कि उन्हें इसे खरीदने में कोई परेशानी नहीं होती लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि हमारी सरकार इस तरह के विस्फोटकों के अवैध करोबार पर लगाम क्यों नहीं लगा पाती?

जब तक हम विस्फोटकों के कारोबार को सख्ती के साथ नियंत्रित नहीं करेंगे और विस्फोटकों का सुरक्षित तरीके से भंडारण नहीं करेंगे तब तक खुद को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे. सतर्कता बहुत जरूरी है.

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