विजय दर्डा का ब्लॉग: तो पिलाने के लिए किसानों का बहाना चाहिए!
By विजय दर्डा | Published: January 31, 2022 08:01 AM2022-01-31T08:01:55+5:302022-01-31T08:07:20+5:30
शुक्रिया सरकार! वाइन तो एग्रो प्रोडक्ट है, भाजपा को यह बात कौन बताए, कौन समझाए...?
आप सबको महाराष्ट्र शासन, उसके मुख्यमंत्री और पूरी कैबिनेट का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने किसानों के चेहरे पर लाली लाने की बड़ी दूरदर्शी व्यवस्था कर दी है. एग्रो प्रोडक्ट ‘वाइन’ को किराना दुकानों, सुपर बाजार और मॉल में पहुंचाने का आदेश कर दिया है. कितनी अच्छी बात है न! ..और आप खामखां शोर मचा रहे हो. हुजूर आप जरा समझिए, हमारा कल्चर बदल रहा है.
किराना दुकान से सामान खरीदते खरीदते हम मॉल पहुंच गए हैं. जब मॉल पहुंच गए हैं तो वहां एग्रो प्रोडक्ट होना चाहिए या नहीं होना चाहिए! इतनी बात आपको समझ में नहीं आती? जब हमने मॉल कल्चर अपना ही लिया है, जब मैकडोनाल्ड ओैर पिज्जा को अपना ही लिया है तो फिर आप शोर क्यों मचाते हो?
हुजूर हमारी सरकार अपनी जनता के लिए बहुत गहराई से सोचती है! हम सबको सरकार का तहे दिल से शुक्रगुजार होना चाहिए! हरिवंश राय बच्चन कह भी गए हैं..
मुसलमान औ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!
इतना ही नहीं बल्कि हरिवंश राय बच्चन ने तो यहां तक कहा..
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरभित मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।
मैं तो इससे भी आगे की सोच रहा हूं. सुपर मार्केट में अभी मौसंबी और संतरा तो मिल ही जाता है. हो सकता है कि सरकार किसानों के हित में अपना दिल और बड़ा करे! वह दिन भी आए जब मौसंबी से बनी ‘मौसंबी’ और नारंगी से बना ‘संतरा’ भी सुपर मार्केट में मिलने लगे. फिर मधुशाला में जाकर शर्मसार होने की किसी को जरूरत ही नहीं होगी.
संतरा खरीदिए, ‘संतरा’ पीजिए. मौसंबी खरीदिए ‘मौसंबी’ पीजिए. वैसे आती तो इलायची भी है..! तो यह सब एग्रो प्रोडक्ट है. सरकार ने बड़ा विचार किया होगा कि इसका लाभ किस तरह (वाया वाइन फैक्टरी) किसानों को मिलेगा. फैक्टरी को फायदे की जो लोग बात कर रहे हैं, वे क्यों भूल रहे हैं कि वहां काम करने वाले हजारों हाथों को भी तो मजदूरी मिलेगी.
भाजपा वालों को कौन समझाए कि एग्रो प्रोडक्ट हमेशा ही अच्छे रहते हैं. ये भाजपा वाले पता नहीं क्यों अनावश्यक रूप से विरोध करते रहते हैं. हम जानते हैं कि भाजपा वाले इसे हाथ नहीं लगाते. सौ फीसदी हाथ नहीं लगाते..! लेकिन ये क्या बकवास लगाकर रख दी कि महाराष्ट्र को मद्यराष्ट्र बना दिया! इन भाजपा वालों से न तो किसानों का फायदा देखा जा रहा है न पीने वालों का..! अरे भाजपा वालों..बच्चन साहब की ये पंक्तियां तो पढ़ ली होतीं..
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुंह पर पड़ जाएगा ताला,
दास-द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला
अजीब हैं बच्चन साहब भी! मधुशाला लिखकर चले गए. बड़े दिनों बाद सरकार ने उनकी मानी तो ये भाजपा वाले नहीं मान रहे! अरे भाई सोमरस की हमारी संस्कृति है. भैरवनाथ का प्रसाद कभी चखा कि नहीं चखा? हमारी फिल्में भी तो तरन्नुम सिखाती हैं हमें.
आपको याद होगा रोटी कपड़ा और मकान का वो गाना.. हिरोइन कह रही है.. ‘पंडित जी, मेरे मरने के बाद, गंगाजल के बदले थोड़ी सी मदिरा टपका देना..’! अब ऐसे में हमारी सरकार दुकानों में वाइन बेचने की बात कर रही है तो क्या बुराई है इसमें?
अरे हां, मुझे एक घटना याद आ गई! प्रफुल्ल भाई एविएशन मिनिस्टर थे और मैं, राहुल गांधी, राजीव शुक्ला और अन्य लोग पार्लियामेंट की एविएशन कमेटी के सदस्य थे. तो एक दिन प्रस्ताव आया कि किसानों द्वारा उत्पादित अंगूर से बनी वाइन को घरेलू हवाई यात्र में परोसने की व्यवस्था होनी चाहिए. इससे किसानों को लाभ होगा.
इतनी बात ही हुई थी कि कुछ लोग भड़क उठे. प्रस्ताव के समर्थक कह रहे थे कि इसमें तो बस छह-सात प्रतिशत ही अल्कोहल होता है. इससे ज्यादा तो खांसी की दवाई में होता है! सबने कहा कि यह एग्रो प्रोडक्ट है लेकिन अपनी इमेज क्या रह जाएगी? अपन ने यदि अनुमति दी तो ‘पीने वालों’ की नजर में हम गिर जाएंगे. चोरी-छिपे तो पीते ही हैं लेकिन खुल्लमखुल्ला कहना कि पियो, यह कितनी बेशर्मी की बात है न..! एक मिनट में प्रस्ताव गिर गया.
अब देखिए न! गांधीजी की जन्मभूमि गुजरात में और गांधीजी की कर्मभूमि सेवाग्राम में शराब बंदी है. दुनिया जानती है कि गुजरात में सबसे ज्यादा शराब बिकती है. लिकर किंग रईस को कौन नहीं जानता? उस पर तो मशहूर फिल्म ‘रईस’ भी बनी. फिर भी गांधीजी के नाम पर ढकोसला करते हैं. हम तो तब मानें जब शराब वाकई बिकना बंद हो जाए!
वर्धा और चंद्रपुर में शराब बंद की थी. तस्करों की चांदी हो गई! नकली और जहरीली शराब लोगों की जान लेने लगी. चंद्रपुर में तो शराब बंदी अंत में खत्म करनी पड़ी! हुजूर, केवल समाज की मैच्योरिटी और सभ्यता ही इसे रोक सकती है. वैसे शराब की अपनी महिमा है हुजूर. करीब-करीब हर राज्य की आय का सबसे बड़ा स्रोत है. उसमें भाजपा शासित राज्य भी हैं! चुनावों में मतदान की पूर्व संध्या पर मदिरा जो गुल खिलाती है वह तो आप जानते ही होंगे. खुले हाथों से राजनीतिक दल इसका तोहफा मतदाताओं को देते हैं और ये जिंदाबाद के नारे भी वहीं से तो निकलते हैं!
इसकी महिमा में शायरों और गीतकारों ने बहुत कागज काले किए हैं. किस किस का नाम लूं..! एक सांसद तो अच्छी खासी पीकर संसद में लच्छेदार भाषण भी दे आए थे. गायकों ने जी जान लगा दिए हैं. पंकज उधास तो यहां तक सुर लगाते हैं कि.. ‘हुई महंगी बहुत शराब कि..थोड़ी-थोड़ी पिया करो..!’ हमारी सरकार तो सुलभ कराने में लगी है. सबको मिले..खूब मिले! भरपूर मिले..! तृप्ति मिले..! तहे दिल से सरकार का शुक्रिया अदा कीजिए.