विजय दर्डा का ब्लॉग: दोष आपका और भुगतें विद्यार्थी..?

By विजय दर्डा | Published: March 7, 2022 08:25 AM2022-03-07T08:25:56+5:302022-03-07T08:25:56+5:30

शोध के लिए नहीं बल्कि मेडिकल जैसी पढ़ाई के लिए भारत से हर साल लाखों विद्यार्थी विदेश जाते हैं. जाहिर सी बात है कि इसमें भारत के करोड़ों डॉलर विदेश चले जाते हैं.

Vijay Darda blog: Indian student in Ukraine amid war govt fault then why should student suffer | विजय दर्डा का ब्लॉग: दोष आपका और भुगतें विद्यार्थी..?

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र (फोटो- ट्विटर, @IndiainUkraine)

ऑपरेशन गंगा के लिए हम अपनी सरकार की पीठ थपथपा सकते हैं. भारत अकेला देश है जिसने अपने ज्यादातर नागरिकों को जंग का मैदान बने यूक्रेन से निकाल लिया है. वैसे भी विदेशों में संकट में फंसे नागरिकों को निकालने में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड हमेशा ही बेहतरीन रहा है. लेकिन दु:ख इस बात का है कि रूस-यूक्रेन की इस जंग में मेडिकल के एक बेगुनाह भारतीय विद्यार्थी की मौत हो गई. जो लौटे हैं, उनमें से बहुतों को जिस कठिनाई का सामना करना पड़ा है, उसकी केवल कल्पना की जा सकती है. इस सबसे बचा जा सकता था यदि एडवाइजरी जारी होते ही बच्चे वहां से निकल जाते.

पिछले कॉलम में मैंने लिखा था कि यूक्रेन और रूस के बीच जंग भले ही भारत से पांच हजार किलोमीटर दूर लड़ी जा रही है लेकिन उससे प्रभावित होने वाले देशों में भारत का प्रमुख स्थान है. उसका एक तत्काल उदाहरण तो भारतीय विद्यार्थियों के अति संवेदनशील, अति कठिन और भयावह रूप में सामने आ चुका है. यहां कई सवाल खड़े होते हैं! 

अत्यंत उच्च शिक्षा या शोधपरक शिक्षा की बात तो समझ में आती है लेकिन मेडिकल या उस जैसी पढ़ाई के लिए भी हमारे बच्चे विदेश क्यों जाते हैं? दूसरा सवाल है कि जब स्पष्ट तौर पर लग रहा था कि रूस किसी भी दिन यूक्रेन पर हमला कर देगा, इसके बावजूद भारतीय विद्यार्थी वहां रुके क्यों रहे? जबकि भारत सरकार ने विद्यार्थियों को यूक्रेन छोड़ देने की एडवाइजरी जारी कर दी थी. तीसरा सवाल है कि क्या विद्यार्थियों को भारत लाने में सरकार ने देरी कर दी?

भारत सरकार के साथ ही दुनिया के ज्यादातर देशों ने अपने नागरिकों को यूक्रेन तत्काल छोड़ने की सलाह दी. एडवाइजरी जारी होते ही दूसरे देशों के नागरिक या वहां पढ़ रहे विद्यार्थी बाहर निकल गए. हमारी एडवाइजरी के बावजूद हमारे बच्चे वहीं रहे. भारतीय दूतावास ने इस मामले में आखिर सक्रियता क्यों नहीं दिखाई? 

इस सवाल का जवाब मिलना चाहिए. क्या हर काम देश के प्रधानमंत्री को ही करना पड़ेगा? आखिर वे भी तो इंसान ही हैं! काम तो सिस्टम को करना चाहिए लेकिन हमारे यहां के सिस्टम में दोष है. हमें सोचना पड़ेगा कि जब तक चार मंत्री नियुक्त नहीं करेंगे, दूतावास को नहीं हिलाएंगे, जब तक मीडिया से आवाज नहीं उठेगी तब तक काम क्यों नहीं होगा? मैंने सिस्टम के इस दोष को करीब से देखा है. 

मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के साथ अमेरिका दौरे पर गया था. वहां कैमरा क्रू का कैमरा खराब हो गया. उसके लिए तत्काल कैमरे की जरूरत थी लेकिन इस बात पर चर्चा होती रही कि कैमरा किराये पर लेना है या नहीं और इस चर्चा में एक कार्यक्रम मिस हो गया! मैं आश्चर्यचकित था और न्यूयॉर्क से लौटकर मैंने इस विषय पर लिखा भी था. 

निश्चित रूप से यूक्रेन से विद्यार्थियों को निकालने में देरी हुई. एयर इंडिया का पहला विमान जब यूक्रेन से भारत के लिए उड़ा उसके कुछ ही देर बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. एयर स्पेस बंद हो गया और दूसरा विमान यूक्रेन नहीं पहुंच सका. उसके बाद विद्यार्थियों को दूसरे देशों के बॉर्डर पर पहुंचने के लिए कहा गया. एक युद्धग्रस्त देश में विद्यार्थियों के लिए घर से निकलना भी कितना कठिन रहा होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. यदि ऑपरेशन गंगा चार-पांच दिन पहले शुरू कर दिया गया होता तो हालात इतने खराब नहीं हुए होते. 

वैसे हमें शुक्रगुजार होना चाहिए यूक्रेन की सीमा से सटे देशों का और खासकर पोलैंड का जिसने बिना वीजा के भी हमारे विद्यार्थियों को अंदर आने की अनुमति दी ताकि वे भारत लौट सकें. यहां मैं खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तत्परता का जिक्र करना चाहूंगा जो अत्यंत सराहनीय है. वहां से लौटे विद्यार्थियों से भी उन्होंने चर्चा करके यह संदेश दिया कि छोटी से छोटी बात पर भी उनकी नजर है.

अब आते हैं सबसे बड़े सवाल पर कि हमारे विद्यार्थी आखिर सामान्य पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर मजबूर क्यों होते हैं? आश्चर्यजनक है कि चीन जैसे देश में हमारे 23 हजार से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ रहे हैं. रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान, जॉर्जिया, आर्मेनिया, पोलैंड जैसे देशों में ज्यादातर भारतीय विद्यार्थी मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं. वहां उनकी पढ़ाई करीब पच्चीस से तीस लाख रुपए में पूरी हो जाती है. भारत में यदि वे पढ़ना चाहें तो सबसे पहले कॉलेज में प्रवेश की कठिन प्रतिस्पर्धा से गुजरना होता है क्योंकि हमारे यहां कुल जमा करीब साढ़े पांच सौ भी कम मेडिकल कॉलेज हैं और उनमें सीटों की संख्या महज 85 हजार के आसपास ही है. 

यदि प्रतिस्पर्धा में सफल हो गए लेकिन सरकारी मेडिकल कॉलेज में जगह नहीं मिली तो निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई हर किसी के बूते में नहीं है. इसमें करोड़ों का खर्च आता है. यही कारण है कि भारत के  छोटे-छोटे गांव से भी लाखों विद्यार्थी पढ़ाई के लिए हर साल विदेश चले जाते हैं. हर वक्त 11 लाख से ज्यादा विद्यार्थी विदेश में पढ़ाई कर रहे होते हैं. जाहिर सी बात है कि इसमें भारत के करोड़ों डॉलर विदेश चले जाते हैं. 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका में हमारे यहां के 2.12 लाख से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ रहे हैं. कनाडा में 2.16 लाख पढ़ रहे हैं. दुनिया में हमारे विद्यार्थियों की संख्या साढ़े ग्यारह लाख से ज्यादा है.

यदि हमारे यहां सरकार ठान ले कि अपने विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई की माकूल और सस्ती व्यवस्था देश में ही करेंगे तो हमारे विद्यार्थी विदेश क्यों जाएंगे? लेकिन दुर्भाग्य है कि हम अपने जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा हिस्सा ही उच्च शिक्षा पर खर्च करते हैं. दुनिया के टॉप-200 शैक्षणिक संस्थानों में भारत का एक भी शैक्षणिक संस्थान नहीं है. हमारी सरकार क्या इस बारे में कुछ सोच रही है? मैं यहां याद दिलाना चाहूंगा कि भारत का आईटी क्षेत्र इस वक्त दुनिया में धूम मचा रहा है तो वह सरकार की बदौलत नहीं हुआ है. निजी क्षेत्र का इसमें योगदान है. यदि मेक इन इंडिया में इन्वेस्टमेंट आया है तो वह लोगों के कारण आया है. सरकार माहौल जरूर बनाती है.

अभी एक और सवाल खड़ा हो गया है कि यूक्रेन से लौटने वाले करीब 18 हजार विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा? मांग उठ रही है कि उन्हें भारत में दाखिला दिया जाए लेकिन सवाल यह है कि सीटें हैं कहां? इंटर्नशिप के लिए जरूर आदेश हो गए हैं लेकिन जिनकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई है, उनका क्या? यहां मैं यह कहना चाहूंगा कि सरकार ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति दे, सस्ती दर पर जमीन दे, सीएसआर से जोड़े और भरपूर अनुदान दे. 

इसके साथ ही फीस पर अंकुश लगाए और दो से लेकर पांच साल तक के अलग-अलग मेडिकल कोर्स हों तो हमारे देश में चिकित्सकों की कमी नहीं होगी. विद्यार्थी अपने देश में ही पढ़ेंगे. हमें डॉलर खर्च नहीं करने पड़ेंगे. ज्यादा डॉक्टर होंगे तो अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी. फिर कोई डॉक्टर नहीं कहेगा कि वह गांव नहीं जाना चाहता! उसे गांव जाना ही होगा.  तब गांवों में भी अस्पताल होंगे. इलाज की आधुनिक सुविधा वहां भी होगी.

Web Title: Vijay Darda blog: Indian student in Ukraine amid war govt fault then why should student suffer

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