विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र पर हमला है तोड़फोड़ की राजनीति 

By विजय दर्डा | Published: January 21, 2019 10:34 AM2019-01-21T10:34:37+5:302019-01-21T10:34:37+5:30

कांग्रेस और जेडीएस ने खुलेआम आरोप लगाया कि भाजपा विधायकों को हर तरह का प्रलोभन दे रही है. लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के विधायक एकजुट रहे.

Vijay Darda blog: Democracy is attacked by Demolition politics in karnataka | विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र पर हमला है तोड़फोड़ की राजनीति 

विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र पर हमला है तोड़फोड़ की राजनीति 

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद के हालात को याद कीजिए. 104 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. चुनाव परिणाम आते ही 37 सीटें जीतने वाले जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) को कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी थी. तब कांग्रेस के पास 78 विधायक थे. जेडीएस को बसपा के भी एक विधायक का समर्थन प्राप्त था. इस तरह भाजपा के खिलाफ 116 विधायकों का समूह गठित हो चुका था.

इस समूह ने राज्यपाल को सूचना भी दे दी थी लेकिन राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण दे दिया. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था. आधी रात को सुनवाई भी हुई थी लेकिन मौका येदियुरप्पा को ही मिला. वे मुख्यमंत्री बन गए. 17 मई 2018 को उन्होंने पदभार संभाल लिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 19 मई तक विधानसभा के फ्लोर पर येदियुरप्पा बहुमत साबित करें. 

येदियुरप्पा और उनकी पार्टी को शायद यह भरोसा था कि वे विपक्षी खेमे से 8 विधायकों का जुगाड़ कर लेंगे और कुल 112 विधायकों के समर्थन का आंकड़ा प्राप्त हो जाएगा. कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं जिनमें एक मनोनीत विधायक होता है. कुल 224 सीटों पर चुनाव होता है. चूंकि 2 सीटों पर चुनाव तब निरस्त हो गए थे इसलिए बहुमत के लिए केवल 112 का आंकड़ा चाहिए था. भाजपा ने बहुत कोशिशें कीं. हर तरह का पैंतरा आजमाया लेकिन समय इतना कम था कि विधायकों का जुगाड़ करना संभव नहीं था.

कांग्रेस और जेडीएस ने खुलेआम आरोप लगाया कि भाजपा विधायकों को हर तरह का प्रलोभन दे रही है. लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के विधायक एकजुट रहे. यहां तक कि दो निर्दलीय विधायक भी जेडीएस के साथ थे. अंतत: 19 मई 2018 को येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे बहुमत साबित कर पाने की स्थिति में नहीं थे. विधायकों का जुगाड़ नहीं हो पाया था.  जेडीएस और कांग्रेस की सरकार बन गई. एच.डी. कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाल लिया. 

अब जरा याद कीजिए कि बहुमत न जुटा पाने पर इस्तीफा देने के ठीक बाद येदियुरप्पा ने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि यह सरकार तीन महीने से ज्यादा की मेहमान नहीं है. एक निर्वाचित और बहुमत वाली सरकार के बारे में यदि येदियुरप्पा इस तरह का बयान दे रहे थे तो साफ है कि उनके और उनकी पार्टी भाजपा के मन में सरकार गिराने की कुछ न कुछ योजना जरूर थी.

तीन महीने में तो वे कुछ नहीं कर पाए लेकिन कुमारस्वामी सरकार के आठवें महीने में भाजपा ने चाल चल दी. गुपचुप तरीके से ‘ऑपरेशन लोटस’ शुरू किया गया. कोशिश थी कि कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़ लिया जाए. इस बार भाजपा को पूरा भरोसा था क्योंकि कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया और जल संसाधन मंत्नी डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता संघर्ष की खबरें आ रही थीं.

भाजपा की चाल में सबसे पहले फंसे दो निर्दलीय विधायक. उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. कांग्रेसी खेमे में चिंता की लकीरें तब उभरीं जब पता चला कि उनके कुछ विधायक भाजपा के संपर्क में हैं. उन्हें मुंबई और दूसरी जगह रखा गया है. इधर भाजपा ने अपने विधायकों को भी दिल्ली के पास एक रिसोर्ट में एकत्रित कर रखा था. इसी बीच मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने भाजपा के जाल में फंसे विधायकों से संपर्क साधा. उनसे बातचीत की. इस तरह भाजपा का अभियान फिलहाल असफल हो गया है. 

इस पूरे प्रसंग में सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक तोड़फोड़ की ऐसी कोशिश क्यों करती है? यदि कर्नाटक की जनता ने उस पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया है और न ही दूसरे दल उस पर भरोसा कर रहे हैं तो उसे पांच साल इंतजार करना चाहिए! राजनीति का असली फैसला तो जनता की अदालत में ही होता है. इस तरह विधायकों को तोड़ने-फोड़ने की कोशिश करना तो सीधे तौर पर लोकतंत्र पर हमला है. यह तो और भी गंभीर बात है कि भाजपा पर प्रलोभन देने के आरोप लग रहे हैं.

कर्नाटक जेडीएस के नेता  के.एम. शिवलिंगे गौडा ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह आरोप लगाया कि भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेत्तार ने जेडीएस के एक विधायक को 60 करोड़ रुपए और मंत्रीपद का प्रलोभन दिया था लेकिन विधायक ने बिकने से इनकार कर दिया. ऐसे कई और भी आरोप लगे. भाजपा ने हालांकि इसका खंडन किया लेकिन सवाल यही है कि राजनीतिक शुचिता का जोर-शोर से ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं पर इस तरह के आरोप क्यों लग रहे हैं? क्यों वह किसी राज्य में जनादेश को पलट कर अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है. इस रवैये को लोकतंत्र पर हमला न कहें तो और क्या कहें?

Web Title: Vijay Darda blog: Democracy is attacked by Demolition politics in karnataka

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