विजय दर्डा का ब्लॉग: तू-तू मैं-मैं बंद करें और लोगों की जान बचाएं

By विजय दर्डा | Published: April 19, 2021 12:07 PM2021-04-19T12:07:09+5:302021-04-19T12:09:53+5:30

कोरोना से जब पूरी दुनिया जूझ रही है तो ये समय आपस में लड़ने या एक-दूसरे पर आरोप लगाने का नहीं है. ये मुश्किम दौर है और इससे बाहर आने के लिए सभी को एक-दूसरे का साथ देना होगा।

Vijay Darda Blog: amid coronavirus rising Stop blame game and save people life | विजय दर्डा का ब्लॉग: तू-तू मैं-मैं बंद करें और लोगों की जान बचाएं

कोरोना से जंग के लिए सभी को साथ आने की जरूरत (फाइल फोटो)

कोरोना के इस त्रासदी वाले वक्त में हर चीज की कमी नजर आ रही है. अस्पतालों में जगह नहीं, ऑक्सीजन नहीं, वेंटिलेटर नहीं, दवाइयां नहीं  हैं. ऐसे में ये समय तू-तू मैं-मैं करने का बिल्कुल ही नहीं है. 

यह समय केवल जान बचाने का है. और जान बचाना काफी हद तक हमारे भी हाथ में है. यदि सिंगल मास्क लगाया हो तो डबल मास्क पर चले जाइए और नहीं लगाया तो जरूर लगाइए. नियमों का पालन करिए. सरकार को सहयोग करिए. 
सरकार के साथ इसलिए सहयोग कीजिए क्योंकि सरकार जो कर सकती है, कर रही है लेकिन इससे ज्यादा उसके पास नहीं है. आज हर व्यक्ति को चौकीदार बनने की आवश्यकता है.

और हां, ये जो दोषारोपण का खेल चल रहा है, वह ठीक नहीं है. केंद्र को राज्य दोष दे रहे हैं और राज्यों को केंद्र दोषी ठहरा रहा है. ये दोषारोपण और तेरे-मेरे का खेल खत्म होना चाहिए. हम हिंदुस्तानी हैं. सब भारत मां के सुपुत्र हैं. न कोई भाजपा का न कोई कांग्रेस का है. न ही कोई किसी अन्य पार्टी का है. जो है वह भारत मां का है या अपने माता-पिता का है. ये समय दूजा भाव करने का बिल्कुल ही नहीं है.

हम में से किसी ने भी ऐसे कठिन और बुरे वक्त की कल्पना सपने में भी नहीं की थी. हम सुनते जरूर थे कि जब स्पैनिश फ्लू और प्लेग जैसी महामारी फैली थी तो दुनिया के कई हिस्सों में पूरा का पूरा गांव खत्म हो गया था. आज हम अपनों को जीवन के लिए संघर्ष करते देख रहे हैं. 

मेरा लोकमत परिवार बहुत बड़ा है. रोज मेरे एचआर विभाग से खबर आती है ये चले गए, वो चले गए. रोज यही हो रहा है. इसी तरह देश से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. बड़े-बड़े ओहदे पर जो लोग काम कर रहे हैं उनको भी बेड नहीं मिल पा रहा है तो आम आदमी की क्या हालत होगी?

जिनकी ताकत है और जो क्षमतावान हैं वे देश छोड़कर चले गए उपचार के लिए. मालदीव और दुबई की शरण ले रहे हैं. कुछ लोग हिल स्टेशन पर चले गए हैं लेकिन ये मुट्ठी भर लोगों की व्यवस्था है. ये देश नहीं है. आम आदमी तो भीषण त्रासदी से जूझ रहा है.

अच्छा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आग्रह किया और अंतत:  कुंभ मेला समाप्त हो गया. वैसे तो कुंभ होना ही नहीं चाहिए था, लेकिन चलिए, देर आए दुरुस्त आए! अंदाजा है कि करीब 49 लाख श्रद्धालुओं ने कुंभ में स्नान किया है. 
सैकड़ों साधुओं के साथ हजारों श्रद्धालु भी कोरोना पॉजीटिव हो गए. दो बड़े संतों की तो जान भी चली गई. अब जरा अंदाजा लगाइए कि हजारों लोग कैरियर बनकर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचेंगे तो कितनों को संक्रमित करेंगे? 
आखिरकार इसका असर प्रशासन पर ही तो पड़ता है. प्रशासन में काम करने वाले लोग भी तो इंसान ही हैं. इसलिए मैं कह रहा हूं कि हमें सरकार के साथ  सहयोग करना चाहिए. पूरे संयम व अनुशासन के साथ कोविड के सभी प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी है अन्यथा हालात और खराब होंगे. 

जरा याद कीजिए कि कोरोना की शुरुआत में तब्लीगी जमात को लेकर कितना हो-हल्ला मचा था! याद रखिए कि छोटी-मोटी चिनगारियां गहरे घाव दे जाती हैं. इस देश को अखंड रखना आखिर हमारी ही जिम्मेदारी है. कई राज्यों में  राजनीतिक दलों की रैलियां हो रही हैं, उस पर चुनाव आयोग को तत्काल प्रतिबंध लगाना चाहिए. 

यदि चुनाव आयोग नहीं कर रहा है तो सुप्रीम कोर्ट को स्वयं संज्ञान लेकर उसे बंद करना चाहिए. ये रैलियां और सभाएं कोरोना बम ही तो हैं!

बहरहाल, सरकार अपनी क्षमता के अनुसार बहुत कुछ कर रही है. देश में कोरोना के मरीजों के लिए बेड्स की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन सवाल यह है कि डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ कहां से लाएं? निश्चय ही लाखों परिवारों ने अपना कोई न कोई खोया है. 

ऐसे में व्यवस्था के प्रति गुस्सा उपजना कोई असामान्य घटना नहीं है लेकिन हमें यह समझना होगा कि यह वक्त डॉक्टर्स से लड़ने का नहीं बल्कि उनकी हौसला अफजाई का है. इस बुरे वक्त में डॉक्टर्स, नर्सेज और पैरामेडिकल स्टाफ ने जिस तरह के जज्बे का इजहार किया है, वह काबिले तारीफ है. यदि बेड की कमी है या ऑक्सीजन का अभाव है तो इसमें डॉक्टर्स का क्या दोष है? मत भूलिए कि वे भी इंसान हैं.

मैं खासतौर पर याद दिलाना चाहूंगा कि कोरोना के पहले वेव का हिंदुस्तान ने लॉकडाउन के माध्यम से जबर्दस्त मुकाबला किया था और इस साल के प्रारंभ में लगने लगा था कि जीत हमारी हो रही है. इस जीत की उम्मीद से उपजी लापरवाही में शादियों की पार्टियां होने लगीं और कोरोना को मौका मिल गया. उसने बाजी पलट दी! 

पहले वेव से सबक लेते हुए सरकार को भी बंदोबस्त करना था जैसा कि अमेरिका या यूरोप ने किया लेकिन हम मुगालते में रहे. आज उसका दुष्परिणाम भुगत रहे हैं. अब भी संभल जाएं तो भविष्य के नुकसान को रोक सकते हैं. हमारे पूर्वजों ने इससे भी बुरा वक्त देखा था लेकिन वे उससे निकलने में कामयाब रहे. 

1816 में बंगाल से शुरू हुई हैजा महामारी ने लाखों भारतीयों के साथ 10 हजार ब्रिटिश सैनिकों को भी निगल लिया था. 1918 में फैले स्पैनिश फ्लू में एक करोड़ 70 लाख भारतीय मारे गए थे. तब भारत की आबादी 32 करोड़ से भी कम थी. उस समय विज्ञान इतना विकसित नहीं था इसलिए मौतें ज्यादा हुईं और वैक्सीन बनने में भी बहुत वक्त लगा. 

इस बार कोरोना से लड़ने के लिए तो बहुत सी वैक्सीन एक साल से भी कम समय में उपलब्ध हो गई हैं. मगर कोरोना का अंत केवल वैक्सीन से होने की उम्मीद मत कीजिए! देश में सभी को वैक्सीन मिलने में अभी काफी लंबा वक्त लगेगा. 

इसके साथ ही वैक्सीन का दोनों डोज लेने के बाद वैक्सीन हर साल लगाना होगा या छह महीने में लगाना होगा यह भी स्पष्ट नहीं है. इसलिए कोरोना से बचना ही सबसे बेहतर विकल्प है.

हम सभी देख रहे हैं कि आज कोरोना का भय हर ओर पसरा पड़ा है. लोग बेचैन हैं. मगर इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम हिम्मत हार जाएं. ध्यान रखिए कि संयम,  अनुशासन, हिम्मत और सजगता रूपी हथियार से ही हम कोरोना
को परास्त करने में सफल हो सकते हैं.

Web Title: Vijay Darda Blog: amid coronavirus rising Stop blame game and save people life

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