वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः भारतीय भाषाओं का सम्मान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 23, 2022 01:45 PM2022-05-23T13:45:46+5:302022-05-23T13:46:47+5:30
सभी भाषाओं को नौकरानी बनाकर अंग्रेजी खुद महारानी बनी बैठी है। कानून सदा अंग्रेजी में बनते रहे हैं, अदालतों के फैसले अंग्रेजी में होते हैं, मंत्रिमंडल के फैसले अंग्रेजी में होते रहे हैं और हमारी उच्च नौकरशाही अंग्रेजी में सारे काम करती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कई मुद्दे उठाए, जिसमें भाषा का मुद्दा प्रमुख था. राजभाषा हिंदी को लेकर पिछले दिनों दक्षिण में काफी विवाद छिड़ा था। मोदी ने यह बिल्कुल ठीक कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।
सभी भाषाओं को नौकरानी बनाकर अंग्रेजी खुद महारानी बनी बैठी है। कानून सदा अंग्रेजी में बनते रहे हैं, अदालतों के फैसले अंग्रेजी में होते हैं, मंत्रिमंडल के फैसले अंग्रेजी में होते रहे हैं और हमारी उच्च नौकरशाही अंग्रेजी में सारे काम करती है। भारत की शिक्षा और चिकित्सा में भी अंग्रेजी छाई हुई है। आज से लगभग 55-56 साल पहले मैंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो संसद ठप हो गई थी। आखिरकार मेरी विजय हुई। जवाहरलाल नेहरू विवि में सबसे पहली पीएचडी लेनेवालों में मेरा नाम था लेकिन आज तक भारत के कितने विश्वविद्यालयों में कितनी पीएचडी हिंदी माध्यम से हुई हैं?
महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया ने अंग्रेजी की गुलामी के दुष्परिणामों को बहुत अच्छी तरह से रेखांकित किया था। गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटलजी तथा मुलायम सिंह, राजनारायण और मधु लिमये ने इस अभियान को जमकर चलाया था। मेरा कहना है कि अंग्रेजी को मिटाओ मत लेकिन अंग्रेजी को हटाओ। अगर आप उसे हटा सके तो हिंदी एवं समस्त भारतीय भाषाएं तो अपने आप सम्मान पा जाएंगी।