वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: शिक्षा में अब क्रांति की जरूरत, क्या पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह होंगे सफल?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 1, 2022 12:51 PM2022-08-01T12:51:37+5:302022-08-01T12:53:01+5:30

नई शिक्षा नीति की घोषणा कर देना ही काफी नहीं है. पिछले 8 साल में शिक्षा और चिकित्सा में सुधार की बातें बहुत हुई हैं लेकिन अभी तक ठोस उपलब्धि नहीं मिली है.

Vedpratap Vaidik's blog: Now education need to start in Indian languages | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: शिक्षा में अब क्रांति की जरूरत, क्या पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह होंगे सफल?

शिक्षा में अब क्रांति की जरूरत (फाइल फोटो)

भारत के गृह मंत्री अमित शाह जोरदार ढंग से शिक्षा में भारतीय भाषाओं के माध्यम का समर्थन कर रहे हैं. मैकाले की गुलामी से भारतीय शिक्षा को मुक्त करवाने का प्रयत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद, त्रिगुण सेन, डॉ जोशी, भागवत झा आजाद और प्रो. शेर सिंह जैसे नेताओं ने जरूर किया है लेकिन अमित शाह ने अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है. 

वे अंग्रेजी की अनिवार्यता के खिलाफ जो कुछ बोल रहे हैं, उसका अर्थ यही है कि देश की शिक्षा पद्धति में क्रांतिकारी परिवर्तन होना चाहिए. इसका पहला कदम यह है कि देश में डॉक्टरी, वकीली, इंजीनियरी, विज्ञान, गणित आदि की पढ़ाई का माध्यम मातृभाषाएं या भारतीय भाषाएं ही होना चाहिए. क्यों होना चाहिए? क्योंकि अमित शाह कहते हैं कि देश के 95 प्रतिशत बच्चे अपनी प्रारंभिक पढ़ाई स्वभाषा के माध्यम से करते हैं. सिर्फ पांच प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं. ये किनके बच्चे होते हैं? संपन्न लोगों, नेताओं, बड़े अफसरों के बच्चे ही मोटी-मोटी फीस भरकर इन स्कूलों में जा पाते हैं.

अमित शाह की चिंता उन 95 प्रतिशत बच्चों के लिए है जो गरीब हैं, ग्रामीण हैं, पिछड़े हैं और अल्पसंख्यक हैं. ये बच्चे आगे जाकर सबसे ज्यादा फेल होते हैं. ये ही पढ़ाई अधबीच में छोड़कर भाग खड़े होते हैं. बेरोजगारी के शिकार भी ये ही सबसे ज्यादा होते हैं. यदि केंद्र की भाजपा सरकार राज्यों को प्रेरित कर सके तो वे अपनी शिक्षा उनकी अपनी भाषाओं में शुरू कर सकते हैं. 

10 राज्यों ने केंद्र से सहमति व्यक्त की है. अब ‘जी’ और ‘नीट’ की परीक्षाएं भी 12 भाषाओं में होंगी. केंद्र अपनी भाषा-नीति राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं कर सकता है लेकिन भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? वे अपने राज्यों की सभी पार्टियों के नेताओं से शिक्षा में क्रांति लाने का आग्रह क्यों नहीं करते? 

गैर-भाजपाई राज्यों से अमित शाह बात कर रहे हैं. यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं और शिक्षा मंत्री भी उनसे बात करें तो यह क्रांतिकारी कदम शीघ्र ही अमल में लाया जा सकता है. मध्य प्रदेश की सरकार तो सितंबर से डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी में शुरू कर ही रही है.

सिर्फ नई शिक्षा नीति की घोषणा कर देना काफी नहीं है. पिछले 8 साल में बातें बहुत हुई हैं, शिक्षा और चिकित्सा में सुधार की लेकिन अभी तक ठोस उपलब्धि नहीं है. यदि देश की शिक्षा और चिकित्सा को मोदी सरकार औपनिवेशिक गुलामी से मुक्त कर सकी तो उसे दशकों तक याद किया जाएगा. भारत को महासंपन्न और महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं पाएगा. 

Web Title: Vedpratap Vaidik's blog: Now education need to start in Indian languages

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