वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः हिंदी के विश्वभाषा बनने की राह में बाधाएं

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 11, 2022 11:02 AM2022-01-11T11:02:45+5:302022-01-11T11:03:38+5:30

हम महाशक्तियों की तरह सुरक्षा परिषद में घुसने के लिए बेताब हैं लेकिन पहले उनकी भाषाओं के बराबर रुतबा तो हम हासिल करें। यह सराहनीय है कि अटलजी और नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण हिंदी में दिए।

vedpratap Vaidik blog Obstacles in the way of Hindi becoming a world language | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः हिंदी के विश्वभाषा बनने की राह में बाधाएं

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः हिंदी के विश्वभाषा बनने की राह में बाधाएं

 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह 1975 में नागपुर में हुआ था। उस समय मैं जिस अखबार में संपादक था, उसमें जो संपादकीय लिखा था, उसका शीर्षक था, ‘हिंदी मेला : आगे क्या?’ मैंने उस संपादकीय में जो प्रश्न उठाए थे, वे आज 46 साल बाद भी देश के सामने जस के तस हैं। ये सम्मेलन भारत समेत दुनिया के कई देशों में हो चुके हैं लेकिन नतीजा वही है-नौ दिन चले अढ़ाई कोस!

इसके आयोजन पर हर बार करोड़ों रु। खर्च होते हैं। मुझे इन सम्मेलनों के निमंत्नण कभी हिंदी और कभी अंग्रेजी में भी आते रहे हैं। मैं 2003 में सूरिनाम में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में गया, वह भी भारत और सूरिनाम के प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत आग्रह पर! वहां मैंने अपने कई साहित्यकार, पत्नकार और सांसद मित्रों के समर्थन से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा मान्य करवाने का प्रस्ताव पारित करवाया लेकिन आज तक क्या हुआ? कुछ भी नहीं। सुषमा स्वराज जब विदेश मंत्नी बनीं तो मैंने उन्हें बार-बार प्रेरित किया। उन्होंने काफी प्रयत्न किया लेकिन संयुक्त राष्ट्र में हिंदी अभी तक मान्य नहीं हुई है। लेकिन वे छह भाषाएं वहां मान्य हैं, जिनके बोलने वालों की संख्या दुनिया के हिंदीभाषियों से बहुत कम है। चीनी भाषा (मेंडारिन) के बोलने वालों की संख्या भी विश्व के हिंदीभाषियों के मुकाबले काफी कम है। यह बात चीन में दर्जनों बार गांव-गांव घूमकर मैंने जानी है। यदि संयुक्त राष्ट्र में अरबी, अंग्रेजी, हिस्पानी, रूसी, फ्रांसीसी और चीनी मान्य हो सकती हैं तो हिंदी को तो उनसे भी पहले मान्य होना चाहिए था। लेकिन जब हमारी सरकार और नौकरशाही ने भारत में ही हिंदी को नौकरानी बना रखा है तो इसे विश्व मंच पर महारानियों के बीच कौन बिठाएगा? 

हम महाशक्तियों की तरह सुरक्षा परिषद में घुसने के लिए बेताब हैं लेकिन पहले उनकी भाषाओं के बराबर रुतबा तो हम हासिल करें। यह सराहनीय है कि अटलजी और नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण हिंदी में दिए। 1999 में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि के नाते मैं अपना भाषण हिंदी में देना चाहता था लेकिन मुझे मजबूरन अंग्रेजी में बोलना पड़ा, क्योंकि वहां कोई अनुवादक नहीं था। संस्कृत की पुत्री होने और दर्जनों एशियाई भाषाओं के साथ घुलने-मिलने के कारण हिंदी का शब्द-भंडार दुनिया में सबसे बड़ा है। यदि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन जाए तो वह दुनिया की सभी भाषाओं को अपने शब्द-भंडार से भर देगी। यदि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता मिलेगी तो भारत में से अंग्रेजी की गुलामी भी घटेगी। उसका फायदा यह होगा कि दुनिया के चार-पांच अंग्रेजी भाषी देशों के अलावा सभी देशों के साथ व्यापार और कूटनीति में हमारा सीधा संवाद कायम हो सकेगा।

Web Title: vedpratap Vaidik blog Obstacles in the way of Hindi becoming a world language

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