वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अनावश्यक सुविधाओं पर लगे अंकुश
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 31, 2022 01:48 PM2022-05-31T13:48:01+5:302022-05-31T13:51:11+5:30
संसदीय समिति को बधाई कि उसने अभी सांसदों की दुगुनी-तिगुनी पेंशन पर रोक लगाई है लेकिन यह काम अभी अधूरा ही है। उसे पहला काम तो यह करना चाहिए कि सांसदों के अपने वेतन और भत्ते खुद ही बढ़ाने के अधिकार को वह समाप्त करे।
संसद की संयुक्त समिति ने एक आदेश जारी किया है, जिसके कारण अब सांसदों को सिर्फ अपनी एक ही पेंशन पर गुजारा करना होगा। अभी तक एक सांसद को, यदि वह विधायक भी रहा हो और सरकारी कर्मचारी भी रहा हो तो तीन-तीन पेंशनें लेने की सुविधा बनी हुई है। हमारे सांसदों को तीन लाख 30 हजार रु. तो हर महीने वेतन के तौर पर मिलते ही हैं, उन्हें तरह-तरह की इतनी सुविधाएं भी मिलती हैं कि उन सबका हिसाब बाजार भाव से जोड़ा जाए तो उन पर होनेवाला सरकारी खर्च कम से कम से कम 10 लाख रु. प्रति माह होता है। जबकि भारत के लगभग 100 करोड़ लोग 10 हजार रु. प्रति माह से भी कम में गुजारा करते हैं।
संसदीय समिति को बधाई कि उसने अभी सांसदों की दुगुनी-तिगुनी पेंशन पर रोक लगाई है लेकिन यह काम अभी अधूरा ही है। उसे पहला काम तो यह करना चाहिए कि सांसदों के अपने वेतन और भत्ते खुद ही बढ़ाने के अधिकार को वह समाप्त करे। दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में यह अधिकार दूसरे संगठनों को दिया गया है। इसके अलावा जरा यह भी सोचा जाए कि यदि कोई व्यक्ति पांच साल से कम समय तक सांसद और विधायक रहे तो उसे पेंशन क्यों दी जाए? क्या सरकारी कर्मचारी और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों को इस तरह पेंशन मिल जाती है? मेरी अपनी राय तो यह है कि सांसदों और विधायकों को कोई पेंशन नहीं लेनी चाहिए। जो सुविधाएं जन-सेवा के लिए जरूरी हैं, वे अवश्य दी जाएं लेकिन नेताओं की पेंशन, मोटी तनख्वाह और अनावश्यक सुविधाओं में यदि कटौती कर दी जाए तो हजारों करोड़ रु. की बचत हो सकती है, जिसका लाभ देश के वंचितों, गरीबों और पिछड़ों को पहुंचाया जा सकता है।