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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: चिकित्सा के नए समग्र पाठ्यक्रम की जरूरत

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 14, 2020 10:42 IST

किसानों का आंदोलन पहले से चल रहा है. इस बीच डॉक्टरों ने भी हड़ताल की. डॉक्टर सरकार के इस फैसले से नाराज हैं जिसमें कहा गया है कि अब आयुर्वेदिक अस्पतालों में भी शल्य-चिकित्सा होगी.

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ठळक मुद्देसरकार आज जो कर रही है वो देश के भले के लिए है लेकिन उसे प्रभावित लोगों से बात करने की जरूरतसरकार आनन-फानन में कोई भी घोषणा कर देती है, जिसके कारण गलतफहमी को जगह मिलती हैवैद्यों और हकीमों को शल्य-चिकित्सा का अधिकार देने से पहले कठोर प्रशिक्षण देने की भी जरूरत

देश के डॉक्टरों ने हड़ताल की. किसान आंदोलन के बाद डॉक्टरों ने भी विरोध प्रदर्शन किया है. इन दोनों आंदोलनों का आधार गलतफहमी है. इस गलतफहमी का कारण किसान और डॉक्टर नहीं हैं. 

उसका कारण हमारी सरकार है. वह जो कुछ कर रही है, वह देश के भले के लिए कर रही है लेकिन इसके पहले कि वह कोई क्रांतिकारी कदम उठाए, वह उससे प्रभावित होनेवाले लोगों से बात करना जरूरी नहीं समझती. जो उसे ठीक लगता है या अफसर जो समझाते हैं, सरकार आनन-फानन उसकी घोषणा कर देती है.

अब उसने घोषणा कर दी है कि आयुर्वेदिक अस्पतालों में भी शल्य-चिकित्सा होगी. यह ठीक है कि ऐसी दर्जनों छोटी-मोटी शल्य-क्रियाएं हमारे वैद्यगण सदियों से करते चले आए हैं. 

उन्हें अभी सिर्फ नाक, कान, आंख, गले आदि की ही सर्जरी की अनुमति दी गई है. मस्तिष्क और दिल आदि की नहीं लेकिन हमारे डॉक्टर इस पर बहुत खफा हो गए हैं.  उनकी हड़ताल का कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा है.

वे कह रहे हैं कि इस अनुमति से मरीजों की जान को खतरा हो जाएगा. एलोपैथी की सर्जरी काफी सुरक्षित होती है लेकिन वह इतनी खर्चीली है कि देश का आम आदमी उसकी राशि सुनकर ही कांप उठता है. अब यदि वही काम वैद्य करने लगेंगे तो खर्च का आडंबर खत्म हो जाएगा. 

देश के गरीब, ग्रामीण और पिछड़े लोगों को भी शल्य-चिकित्सा का लाभ मिलने लगेगा. आयुर्वेद में शल्य-चिकित्सा सदियों से चली आ रही है जबकि एलोपैथी को तो सवा सौ साल पहले तक मरीज को ठीक से बेहोश करना भी नहीं आता था. डॉक्टरों को शायद धक्का इससे लगा है कि अब ये वैद्य उनके बराबर हो जाएंगे.

पश्चिमी एलोपैथी और अंग्रेजी माध्यम की श्रेष्ठता ग्रंथि ने उन्हें जकड़ रखा है. इसीलिए वे इस नई पद्धति को ‘मिलावटीपैथी’ कह रहे हैं. मैं तो चाहता हूं कि भारत में इलाज की सभी पैथियों को मिलाकर, सबका लाभ उठाकर, डॉक्टरी का एक नया पाठ्यक्रम बनाया जाए.

वैद्यों और हकीमों को लेकिन शल्य-चिकित्सा का अधिकार देने के पहले सरकार को चाहिए कि वह उन्हें मेडिकल सर्जनों से भी अधिक कठोर प्रशिक्षण दे. हड़बड़ी में कोई फैसला न करे.

टॅग्स :डॉक्टरों की हड़तालकिसान विरोध प्रदर्शन
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