वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: देश के चिकित्सा क्षेत्र में ऐतिहासिक पहल
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 24, 2020 02:39 PM2020-11-24T14:39:44+5:302020-11-24T14:48:00+5:30
भारत में शल्य-चिकित्सा का इतिहास लगभग पांच हजार साल पुराना है. सुश्रुत-संहिता इसका उदाहरण है. आज समय के साथ जरूरी है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति को भी उन्नत किया जाए.
सरकार ने देश की चिकित्सा-पद्धति में अब एक ऐतिहासिक पहल की है. इस ऐतिहासिक पहल का एलोपैथिक डॉक्टर कड़ा विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि यदि देश के वैद्यों को शल्य-चिकित्सा करने का बाकायदा अधिकार दे दिया गया तो देश में इलाज की अराजकता फैल जाएगी.
वैसे तो देश के लाखों वैद्य छोटी-मोटी चीर-फाड़ बरसों से करते रहे हैं लेकिन अब आयुर्वेद के स्नातकोत्तर छात्रों को बाकायदा सिखाया जाएगा कि वे मुखमंडल और पेट में होने वाले रोगों की शल्य-चिकित्सा कैसे करें. जैसे मेडिकल के डाक्टरों को सर्जरी का प्रशिक्षण दिया जाता है, वैसे ही वैद्य बनने वाले छात्नों को दिया जाएगा. मैं तो कहता हूं कि उनको कैंसर, दिमाग और दिल की शल्य-चिकित्सा भी सिखाई जानी चाहिए.
सुश्रुत-संहिता में शल्य चिकित्सा और उपकरणों का उल्लेख
भारत में शल्य-चिकित्सा का इतिहास लगभग पांच हजार साल पुराना है. सुश्रुत-संहिता में 132 शल्य-उपकरणों का उल्लेख है. इनमें से कई उपकरण आज भी- वाराणसी, बेंगलुरु, जामनगर और जयपुर के आयुर्वेद संस्थानों में काम में लाए जाते हैं. जो एलोपैथी के डॉक्टर आयुर्वेदिक सर्जरी का विरोध कर रहे हैं, क्या उन्हें पता है कि अब से सौ साल पहले तक यूरोप के डॉक्टर यह नहीं जानते थे कि सर्जरी करते वक्त मरीज को बेहोश कैसे किया जाए? जबकि भारत में इसकी कई विधियां सदियों से जारी रही हैं.
भारत में आयुर्वेद की प्रगति इसलिए ठप हो गई कि लगभग डेढ़ हजार साल तक यहां विदेशियों का शासन रहा. आजादी के बाद भी हमारे नेताओं ने हर क्षेत्न में पश्चिम का अंधानुकरण किया. अब भी हमारे डॉक्टर उसी गुलाम मानसिकता के शिकार हैं.
उनकी यह चिंता तो सराहनीय है कि रोगियों का किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिए लेकिन क्या वे यह नहीं जानते कि आयुर्वेद, हकीमी, होमियोपैथी, तिब्बती आदि चिकित्सा-पद्धतियां पश्चिमी दवा कंपनियों के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं? अपनी करोड़ों-अरबों की आमदनी पर उन्हें पानी फिरने का डर सता रहा है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ाना देना जरूरी
हमारे डॉक्टरों की सेवा, योग्यता और उनके योगदान से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति यदि उन्नत हो गई तो इलाज में जो जादू-टोना पिछले 80-90 साल से चला आ रहा है और मरीजों के साथ जो लूट-पाट मचती है, वह खत्म हो जाएगी.
मैंने तो स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और आयुष मंत्री श्रीपद नाइक से कहा है कि वे डॉक्टरी का ऐसा संयुक्त पाठ्यक्रम बनवाएं, जिसमें आयुर्वेद और एलोपैथी, दोनों की खूबियों का सम्मिलन हो जाए. जैसे दर्शन और राजनीति के छात्रों को पश्चिमी और भारतीय, दोनों पक्ष पढ़ाए जाते हैं, वैसे ही हमारे डॉक्टरों को आयुर्वेद और वैद्यों को एलोपैथी साथ-साथ क्यों न पढ़ाई जाए? इन पद्धतियों के अंतर्विरोधों में वे खुद ही समन्वय बिठा लेंगे.