राफेल विमानों की तरह भारत-रूस के S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सौदे पर नहीं हो रहा है कोई हल्ला
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 7, 2018 10:37 AM2018-10-07T10:37:03+5:302018-10-07T10:37:03+5:30
इस खरीद पर गुस्साए अमेरिका ने चीन पर आर्थिक प्रतिबंध थोप दिए हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत पर अमेरिका ये पाबंदियां शायद नहीं लगाएगा, क्योंकि ये मिसाइल चीनी मिसाइलों का जवाब हैं।
रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के साथ एस-400 प्रक्षेपास्त्र की खरीद का समझौता हुआ। ट्रायंफ नामक इस मिसाइल के पांच स्क्वाड्रन 40 हजार करोड़ रु. में आएंगे। लेकिन आश्चर्य है कि 60 हजार करोड़ के राफेल विमानों की तरह इस भारत-रूस सौदे पर कोई हल्ला नहीं हो रहा है। इस दाल में कुछ भी काला नहीं दिखाई पड़ रहा है। इस सौदे में कोई दलाल नहीं है। चीन ने भी ये मिसाइल रूस से खरीद रखे हैं। इस खरीद पर गुस्साए अमेरिका ने चीन पर आर्थिक प्रतिबंध थोप दिए हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत पर अमेरिका ये पाबंदियां शायद नहीं लगाएगा, क्योंकि ये मिसाइल चीनी मिसाइलों का जवाब हैं।
आजकल चीन-अमेरिका संबंध इतने तनावपूर्ण हो गए हैं कि उन्हें देखते हुए अमेरिका इस सौदे की अनदेखी करना पसंद करेगा। इस सौदे का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भारत अपनी पुरानी गुट-निरपेक्षता की पटरी पर फिर से लौट रहा है। अमेरिका से घनिष्ठता का अर्थ रूस से दूरी बनाए रखना नहीं है। इतने बड़े सौदे के बाद यदि आतंकवाद के खिलाफ रूस ने भारत के सुर में सुर मिलाया तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अमेरिका की तरह रूस या चीन को उस आतंकवाद की कोई परवाह नहीं है, जो भारत के खिलाफ है। वे उस आतंकवाद से खफा हैं, जो उनके अपने खिलाफ है।
रूस आजकल पाक से घनिष्ठ संबंध बना रहा है ताकि अफगानिस्तान, सीरिया और इराक में चल रहे आतंकवाद का मुकाबला कर सके। इसीलिए रूस के आतंकवाद-विरोध को हमें जबानी-जमा खर्च समझकर छोड़ देना चाहिए। भारत और रूस के बीच जो अन्य आठ मुद्दों पर समझौते हुए हैं, यदि वे कारगर हुए तो कोई आश्चर्य नहीं कि हिंदी-रूसी भाई-भाई का पुराना दौर फिर नया हो जाए। यह संतोष का विषय है कि अभी तक अमेरिका ने उक्त मिसाइल-सौदे के खिलाफ कोई बयान जारी नहीं किया है। आशा है, भारत आनेवाले ईरान के तेल के बारे में भी अमेरिकी सरकार का रवैया यही रहेगा।