ब्लॉग: दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में भाषा पर विवाद किसी अफसर की सनक का नतीजा!
By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 7, 2021 01:07 PM2021-06-07T13:07:09+5:302021-06-07T13:07:09+5:30
केरल के लोग काफी अच्छी हिंदी बोलते हैं और इसे लेकर हमें गर्व होना चाहिए. शर्म दरअसल हिंदीभाषियों को आनी चाहिए जो दक्षिण या पूरब की एक भी भाषा न बोलते हैं और न ही समझते हैं.
दिल्ली सरकार के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल और शोध-संस्थान में केरल की नर्सो को लिखित आदेश दिया गया कि वे अस्पताल में मलयालम में बातचीत न करें. वे या तो हिंदी बोलें या अंग्रेजी बोलें, क्योंकि दिल्ली के मरीज मलयालम नहीं समझते. नर्सो को यह भी कहा गया कि इस आदेश का उल्लंघन करनेवालों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
हालांकि भारी आलोचना के बाद यह आदेश वापस ले लिया गया लेकिन जिस अफसर ने यह आदेश जारी किया था, क्या वह यह मानकर चल रहा था कि केरल की नर्से दिल्ली के मरीजों से मलयालम में बात करती हैं? यह संभव ही नहीं है. किसी नर्स का दिमाग क्या इतना खराब हो सकता है कि वह मरीज से उस भाषा में बात करेगी, जो उसका एक वाक्य भी नहीं समझ सकता? ऐसा क्यों करेगी?
हमें गर्व होना चाहिए कि केरल के लोग काफी अच्छी हिंदी बोलते हैं. शर्म तो हम हिंदीभाषियों को आनी चाहिए कि हम मलयालम तो क्या, दक्षिण या पूरब की एक भी भाषा न बोलते हैं और न ही समझते हैं. पंत अस्पताल में लगभग 350 मलयाली नर्से हैं. वे मरीजों से हिंदी में ही बात करती हैं.
अगर वे अंग्रेजी में ही बात करने लगें तो भी बड़ा अनर्थ हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर साधारण मरीज अंग्रेजी भी नहीं समझते. उन नर्सो का ‘दोष’ बस यही है कि वे आपस में मलयालम में बात करती हैं. इस आपसी बातचीत पर भी यदि अस्पताल का कोई अधिकारी प्रतिबंध लगाता है तो यह तो कानूनी अपराध है.
यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कानून का स्पष्ट उल्लंघन है. केरल की नर्से यदि आपस में मलयालम में बात करती हैं तो इसमें किसी डॉक्टर या मरीज को कोई आपत्ति क्यों हो सकती है? यदि पंजाब की नर्से पंजाबी में और बंगाल की नर्से बंगाली में आपसी बात करती हैं और आप उन्हें रोकते हैं, उन्हें हिंदी या अंग्रेजी में बात करने के लिए मजबूर करते हैं तो आप एक नए राष्ट्रीय संकट को जन्म दे रहे हैं.
आप अहिंदीभाषियों पर हिंदी थोपने का अनैतिक काम कर रहे हैं. जिन अहिंदीभाषियों ने इतने प्रेम से हिंदी सीखी है, उन्हें आप हिंदी का दुश्मन बना रहे हैं. इसका एक फलितार्थ यह भी है कि किसी भी अहिंदीभाषी प्रांत में हिंदी के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाएगा.
यह लेख लिखते समय मेरी बात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से हुई और पंत अस्पताल में डॉक्टरों से भी. सभी इस आदेश को किसी अफसर की व्यक्तिगत सनक बता रहे थे. इसका दिल्ली सरकार से कोई संबंध नहीं है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बधाई कि इस आदेश को रद्द कर दिया गया है.