वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: जातिगत जनगणना कराना होगा खतरनाक

By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 27, 2021 12:30 PM2021-07-27T12:30:27+5:302021-07-27T12:34:34+5:30

आज के दौर में जरूरी यह है कि देश के लोगों को जिंदगी जीने की न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं. सुविधाओं को उपलब्ध कराने का आधार जाति नहीं, बल्कि जरूरत हो.

Ved Pratap Vaidik blog India Caste census will be dangerous | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: जातिगत जनगणना कराना होगा खतरनाक

देश में आज जातिगत जनगणना कराना होगा खतरनाक (फाइल फोटो)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग की है कि इस बार जातिगत जनगणना जरूर की जाए और उसे प्रकट भी किया जाए. पिछली बार 2010 में भी जातिगत जनगणना की गई थी लेकिन सरकार उसे सार्वजनिक नहीं कर पाई थी, क्योंकि हमने उसी समय ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन छेड़ दिया था. 

देश की लगभग सभी प्रमुख पार्टियों का रवैया इस प्रश्न पर ढीला-ढाला था. कोई भी पार्टी खुलकर जातिगत जनगणना का विरोध नहीं कर रही थी लेकिन कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट पार्टी के कई प्रमुख शीर्ष नेताओं ने हमारे आंदोलन का साथ दिया था. 

उसका नतीजा यह हुआ कि सरकार ने जातिगत जनगणना को बीच में रोका तो नहीं लेकिन सोनिया गांधी ने उसे सार्वजनिक होने से रुकवा दिया. 2014 में मोदी सरकार ने भी इसी नीति पर अमल किया. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने हमारा डटकर समर्थन किया था.

अब कई नेता दुबारा उसी जातिगत जनगणना की मांग इसीलिए कर रहे हैं कि वे जातिवाद का पांसा फेंककर चुनाव जीतना चाहते हैं. उनका तर्क यह है कि जातिगत जनगणना ठीक से हो जाए तो जो पिछड़े, गरीब, शोषित-पीड़ित लोग हैं, उन्हें आरक्षण जरा ठीक अनुपात में मिल जाए. लेकिन वे यह क्यों नहीं सोचते कि 5-7 हजार नई सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल जाने से क्या 80-90 करोड़ वंचितों का उद्धार हो सकता है?

जरूरी यह है कि देश के 80-90 करोड़ लोगों को जिंदगी जीने की न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं. उनका आधार जाति नहीं, जरूरत हो. जो भी जरूरतमंद हो, उसकी जाति, धर्म, भाषा आदि को पूछा न जाए. उसके लिए सरकार विशेष सुविधाएं जुटाए. 

अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना 1857 के बाद इसीलिए शुरू की थी कि वह भारतीयों की एकता को हजारों जातियों में बांटकर टुकड़े-टुकड़े कर दे. 1947 में उसने मजहब का दांव खेलकर भारत को दो टुकड़ों में बांट दिया. 1931 में कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का इतना कड़ा विरोध किया था कि अंग्रेज सरकार को उसे बंद करना पड़ा था. स्वतंत्र भारत में डॉ. लोहिया ने ‘जात तोड़ो’ आंदोलन चलाया था. 

सावरकर और गोलवलकर ने जातिवाद को राष्ट्रवाद का शत्रु बताया था. कबीर, नानक, दयानंद, विवेकानंद, गांधी, फुले, आंबेडकर आदि सभी महापुरुषों ने जिस जातिवाद का खंडन किया था, उसी जातिवाद का झंडा यह राष्ट्रवादी सरकार क्यों फहराएगी? 

बेहतर तो यह हो कि सरकार सरकारी कर्मचारियों के जातीय उपनामों पर भी प्रतिबंध लगाए, विभिन्न संगठनों, गांवों और मोहल्लों के जातीय नाम हटाए जाएं और देश के सभी वंचितों और पिछड़ों को किसी भेदभाव के बिना शिक्षा और चिकित्सा में विशेष सुविधाएं दी जाएं.

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog India Caste census will be dangerous

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