रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: सृजन और संकल्प का महोत्सव है वसंत
By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: February 5, 2022 10:30 AM2022-02-05T10:30:50+5:302022-02-05T10:37:11+5:30
इसके साथ यह भी मान्यता है कि कामदेव ने वसंत के महीने में पंचधन्वा से शिव पर जो आक्र मण किया था।
वसंत तो सारे विश्व में आता है पर भारत का वसंत कुछ विशेष है. भारत में वसंत केवल फागुन में आता है और फागुन केवल भारत में ही आता है. गोकुल और बरसाने में फागुन का फाग, अयोध्या में गुलाल और अबीर के उमड़ते बादल, खेतों में दूर-दूर तक लहलहाते सरसों के पीले-पीले फूल, केसरिया पुष्पों से लदे टेसू की झाड़ियां, होली की उमंग भरी मस्ती, फागुनी बयार केवल भारत में ही बहती है. परिवर्तनशील जीवन में सब कुछ चक्रीय गति से घूम रहा है.
ऋतुएं भी संवत्सर के चक्र पर बैठकर आती हैं. इन ऋतुओं में किसी का स्वभाव प्रफुल्लित, किसी का शांत, किसी का उत्साह से भरपूर, किसी का ठंडा और किसी का गर्म होता है. वसंत से सृजन का काल शुरू होता है. वसंत को ऋतुराज कहते हैं. ऋतुराज का अर्थ ही है जिसमें सब कुछ सुशोभित हो.
प्रकृति अपने जीवनचक्र में यौवनावस्था में होती है. कालिदास ऋतु संहार में इसको विवेचित करते हुए एक ऐसे वातावरण को प्रस्तुत करते हैं जिसमें आम बौराया है. पुष्प सुगंध बिखेर रहे हैं.
सर्वत्न नवलता है. वसंत पंचमी इसी नवलता का स्वागत है. स्वागत प्रकृति के सर्वोत्तम सृजन परख रूप का. पत्ते पुष्प से सुगंधित. नर-नारी उल्लास से भरपूर. इसलिए इस अवसर पर सरस्वती की पूजा का विधान है. ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण संगीत की देवी भी हैं.
वसंत पूजन की परंपरा भारत में मदनोत्सव से प्रारंभ होती है. यह भी मान्यता है कि कामदेव ने वसंत के महीने में पंचधन्वा से शिव पर जो आक्र मण किया था और फलस्वरूप कामारि शिव ने कामदेव का दहन किया. तब से काम अनंग हो गया. अनंग काम, साकार काम से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि अनंग काम चेतना का हिस्सा बनता है, बुद्धि को सम्मोहित कर लेता है. अनंग है इसलिए पकड़ में नहीं आता.
फलत: सर्वत्न कामना, लालच, ऐंद्रिकता और मांसलता प्रभावी होने लगती है. मदनोत्सव इसीलिए होता था कि मदन का उत्सर्जन करना है, उसे निचोड़ना है, आसवित करना है. भारतीय जीवन में रंग स्वाद है. रंग एक विश्वास है. रंगों का उत्सव उस विश्वास की आवाज है. इसलिए वसंत माघ की पंचमी से शुरू हो जाता है और वैशाख तक अपने ऋतुराग से जीवन को उद्वेलित और आनंदित करता रहता है.
वसंत पंचमी को लेकर ढेरों कथाएं हैं. जब मैं वसंत पंचमी की याद कर रहा हूं तो मुङो वीर हकीकत राय की याद आ रही है, जिसने अपनी आस्था के लिए अपने आपको बलिदान कर दिया और जब वीर हकीकत राय के किशोर सौम्य मुख मंडल को देख जल्लाद के हाथ से तलवार छूट गई तब उन्होंने जल्लाद से कहा, मैं अपने धर्म का पालन करता हूं, तुम अपने धर्म का पालन करो.
वसंतोत्सव धर्मपालन का उत्सव है. फिर मैं जब वसंतोत्सव का विचार करता हूं तो मुङो गुरु गोविंद सिंह की याद आती है जिनका विवाह आज के ही दिन हुआ था और उस विवाह की परिणति एक ऐसे परिवार की निर्मिति के रूप में होती है जिसमें सब के सब ने अधर्म, अनाचार, अत्याचार के विरुद्ध अपने को बलिदान कर दिया.
फिर वसंत पंचमी की याद करते हुए नामधारी संप्रदाय के सद्गुरु रामसिंह कूका की याद आती है जिनका जन्म वसंत पंचमी को ही हुआ था और जिन्होंने भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्ति के लिए स्वदेशी और बहिष्कार जैसे महान हथियार दिए थे.
मुङो स्वाभाविक तौर पर इस अवसर पर भारत की महान परंपरा के बीच कान्यकुब्ज भोज की भी याद आती है, जिनका जन्म आज के ही दिन हुआ था और जिन्होंने शास्त्नार्थ की एक ऐसी स्वस्थ परंपरा निर्मित की, जिसका अनुकरण भारतीय ज्ञान परंपरा में निरंतरता के साथ हो रहा है.
शास्त्नार्थ है, प्रश्न है, उत्तर है, फिर प्रश्न है, फिर उत्तर है, यही किसी जीवंत, श्रेष्ठ लोकतांत्रिक समाज की ताकत भी है. विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्नी के पूजन का यह अवसर इसी प्रकार के सुगम्य, सांगीतिक, युक्ति-प्रयुक्ति की परंपरा स्थापित करने का प्रतीक दिन है.
इस महान परंपरा में समकालीन परिदृश्य बहुत अच्छा नहीं दिख रहा है. जब यह अहमन्यता घर कर जा रही है कि हम जो कह रहे हैं वही अंतिम है. हमारी बातें मानी जाती हैं तो लोकतंत्न है. ऐसे में वसंतोत्सव उल्लास का, उत्साह का, नवलता का पर्व नहीं हो सकता है. केवल प्रकृति में नवलता होने से जीवन नया नहीं होता है.
जीवन नवल हो, सुवासित हो, समाज समंजित हो, इसके लिए समरसता की जरूरत है. बिना मिले, बिना समरस हुए, एक रस हुए, अलग-अलग बजना और अलग-अलग बोलना संगीत को नहीं सृजित करता है. विविध स्वर जब समन्वित होते हैं, साथ आते हैं तभी संगीत बनता है.
समाज जीवन का संगीत भी इससे अलग नहीं हो सकता है. समाज जीवन का संगीत बिना राष्ट्रीय हितों को सामने रखे हुए सर्वहितकारी व लोक कल्याणकारी नहीं हो सकता है.
केवल तर्क से भी सरस समाज नहीं बनेगा, केवल तर्क से ही समाज में यांत्रिकता आएगी और यांत्रिकता होगी तो पुर्जे टकराएंगे. स्वर होगा, लय होगा, कोमलता होगी तो सामंजस्य बनेगा, सहकार बनेगा.
वसंत विविध रंगों के पुष्प, पर सब में सौंदर्य, विविध स्वाद के फल, पर सब में पोषण की क्षमता, विविध नदियों के जल, किंतु सब में रस के भाव को मनुष्य और उसके समाज में जागृत करने का पर्व है.
जहां एक ओर वसंत ऋतु हमारे मन में उल्लास का संचार करती है, वहीं दूसरी ओर यह हमें उन वीरों का भी स्मरण कराती है, जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी. हमें सरस्वती का प्राकट्य दिवस वसंत पंचमी जीवन के महान संकल्पों के दिवस के रूप में मनाना चाहिए.