वरुण गांधी का ब्लॉग: ‘इस्तेमाल करो और फेंको’....ये हमारी संस्कृति नहीं, बेरोजगारों की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत

By वरुण गांधी | Published: June 28, 2022 08:49 AM2022-06-28T08:49:53+5:302022-06-28T08:49:53+5:30

एक ओर सरकार में खाली पदों को पर्याप्त गति से नहीं भरा जा रहा. वहीं जहां रिक्तियां भरी भी जा रही हैं, वो ज्यादातर संविदा के आधार पर ही हैं. ये भी बेरोजगारी की समस्या को बढ़ा रहा है.

Varun Gandhi blog Need to pay attention to problems of unemployment | वरुण गांधी का ब्लॉग: ‘इस्तेमाल करो और फेंको’....ये हमारी संस्कृति नहीं, बेरोजगारों की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत

बेरोजगारों की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत (फाइल फोटो)

2019 में हर घंटे एक भारतीय नागरिक ने बेरोजगारी, गरीबी या दिवालियेपन के कारण खुदकुशी की. तकरीबन 25 हजार भारतीय 2018 से 2020 के बीच बेरोजगारी या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हुए. जो लोग अब भी बेरोजगार हैं, उनके लिए विरोध प्रदर्शन एक स्वाभाविक नियति है.

हजारों प्रदर्शनकारियों ने रेलवे भर्ती प्रक्रिया में कथित खामियों को लेकर जनवरी 2022 में रेलवे के डिब्बे फूंक दिए. एक संविदाकर्मी के लिए सम्मान के साथ राष्ट्र की सेवा करना उसके बुनियादी हक और सरोकार से जुड़ा है. इसकी अवहेलना की स्थिति में हाल में हमने अग्निवीर योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को उबलते देखा है.

सरकारी नौकरी करने वालों के लिए भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है. मई, 2022 में हरियाणा में 2212 संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाएं एक झटके में समाप्त हो गईं. जो लोग एकबारगी सड़क पर आए उनमें नर्स, सफाईकर्मी, सुरक्षा गार्ड और पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हैं. इन लोगों को कोविड महामारी के दौरान काम पर रखा गया था, लेकिन बाद में उनकी जरूरत महसूस नहीं की गई.

‘इस्तेमाल करो और फेंको’ का यह क्लासिक उदाहरण है. शॉर्ट नोटिस पर लोगों को रखना और उन्हें हटाना हमारी कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसे बाहर से आयात किया गया है. इस आयातित संस्कृति के कारण असम में 8300 पंचायत और ग्रामीण विकास संविदाकर्मियों ने फरवरी 2022 में विरोध प्रदर्शन किया. वे 12-14 वर्षों से अनुबंध पर थे और उन्हें बोनस, भत्ते, पेंशन या वेतन संशोधन नहीं दिए गए थे.

इसी तरह लाभदायक सार्वजनिक उपक्रम रहे भारतीय टेलीफोन उद्योग के 80 श्रमिकों को 1 दिसंबर, 2021 को फर्म के संयंत्र में प्रवेश से रोक दिया गया और फिर उन्हें सूचित किया गया कि उनकी सेवा समाप्त की जा चुकी है. अप्रैल, 2022 में छत्तीसगढ़ के राज्य बिजली विभाग के 200 संविदाकर्मियों पर पहले पानी की बौछार की गई और फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया. एक लोक सेवक के लिए ऐसी सूरत का सामना करना किस तरह त्रासद है, बताने की जरूरत नहीं.

दरअसल, इस पूरे मामले में समस्या दोहरी है. पहली बात तो यह कि सरकार में खाली पदों को पर्याप्त गति से नहीं भरा जा रहा. जुलाई, 2021 में सभी स्तरों पर सरकार में 60 लाख से अधिक रिक्तियां थीं. इनमें से 910513 केंद्रीय मंत्रियों और सरकारों के पास थीं, जबकि पीएसयू बैंकों में दो लाख रिक्तियां होने का अनुमान था.

इसके अलावा राज्य पुलिस में 531737 से अधिक रिक्तियां, जबकि प्राथमिक विद्यालयों में 837592 पद खाली होने का अनुमान था. सरकार ने डेढ़ वर्षों में मिशन-मोड में 10 लाख लोगों की भर्ती की बात कही है. हालांकि, यह समस्या के आकार से कम होगा. हमें इस मोर्चे पर ज्यादा गंभीर पहल करनी होगी.

दूसरे, जहां रिक्तियां भरी भी जा रही हैं, वो ज्यादातर संविदा के आधार पर ही हैं. 2014 में 43 फीसदी सरकारी कर्मचारियों की नौकरी अस्थायी या संविदा पर थी. इनमें करीब 69 लाख लोग आंगनवाड़ी जैसी शीर्ष कल्याण योजना के तहत कम वेतन (कुछ मामलों में तो न्यूनतम मजदूरी से भी कम) पर और न के बराबर सामाजिक सुरक्षा कवर के साथ काम कर रहे थे. 2018 आते-आते इस श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की संख्या 59 फीसदी तक पहुंच गई.

पिछले कुछ दशकों से हम सार्वजनिक क्षेत्र में कम निवेश कर रहे हैं. कोविड संकट के दौरान यह साफ दिखा कि महामारी को तो छोड़ दें, हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के पास सामान्य परिस्थितियों में भी नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने की क्षमता नहीं है. सार्वजनिक सेवा प्रावधान के विस्तार से कुशल श्रम के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन भी होगा, जो हमें सामाजिक स्थिरता प्रदान करेगा.

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने पर जोर देने से सामाजिक संपत्ति का निर्माण होगा. इससे आयुष्मान भारत जैसे बीमा-आधारित मॉडल के भी कारगर होने में मदद मिलेगी. सरकारी नौकरियों की चमक फीकी पड़ गई है. हमें प्रतिभा को सरकार की ओर आकर्षित करने की जरूरत है. पेंशन और लाभों की लागत को कम करने या उससे बचने के बजाय इसे अपेक्षित शक्ल देनी होगी.

हमारी सार्वजनिक सेवाओं में ज्यादातर डॉक्टरों, शिक्षकों, इंजीनियरों और कुछ डाटा क्लर्कों की आवश्यकता होती है. इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा समर्थित सुधार हमारा प्रारंभिक कदम होना चाहिए. यह कुशल सिविल सेवा के लिए क्षमता निर्माण का समय है, जो भ्रष्टाचार मुक्त कार्यप्रणाली और आधुनिक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना कर सके. 

Web Title: Varun Gandhi blog Need to pay attention to problems of unemployment

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे