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ब्लॉग: प्राचीन अभिलेखों में भी है प्रेम कहानियों का जिक्र

By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Updated: February 14, 2022 11:31 IST

भारतीय परंपरा में चार पुरुषार्थो में काम को भी सम्मिलित किया गया है जो कि प्रकारांतर से कहीं-न-कहीं प्रेम से ही संबंधित है। पूरे विश्व साहित्य में प्रेम से संबंधित कई कथाए हैं।

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बसंत के इस मौसम में वैलेंटाइन डे के बहाने फिर से संत वैलेंटाइन की कहानी जीवंत हो उठी जिनकी याद में इस साप्ताहिक प्रेमोत्सव का आयोजन पश्चिमी देशों या यूं कहें कि अब सब जगह होने लगा है और हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है. हालांकि, हमारे देश में बसंतोत्सव और मदनोत्सव के आयोजन की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है. इस  दृष्टि से भारतीय साहित्य का क्षितिज अत्यंत समृद्ध और व्यापक है. हमारे यहां कालिदास से लेकर कबीर तक ढाई आखर प्रेम की मीमांसा करते रहे हैं.

भारतीय परंपरा में चार पुरुषार्थो में काम को भी सम्मिलित किया गया है जो कि प्रकारांतर से कहीं-न-कहीं प्रेम से ही संबंधित है और इसी प्रेम से संबंधित प्राचीन कथाओं ने पूरे विश्व साहित्य को समृद्ध किया है. फिर चाहे वह कालिदास का मेघदूत हो या  विक्रमोर्वशीयम वर्णित पुरुरवा-उर्वशी कथा हो या इससे भी आगे दुष्यंत-शकुंतला, नल-दमयंती, वासवदत्ता-उदयन-पद्मावती, अर्जुन-सुभद्रा, कृष्ण-राधा-रुक्मिणी. रोचक है कि यह सूची यहीं समाप्त नहीं होती.

मीरा-कृष्ण और रूपमती-बाजबहादुर तथा मानसिंह और मृगनयनी की कहानियां आज भी जनमानस में प्रचलित हैं.यह कहानियां केवल साहित्य तक ही सीमित नहीं हैं, इनके प्रमाण प्राचीन ब्राह्मी अभिलेखों में भी मिलते हैं जिनमें से एक में सुतनुका देवदासी और रूपदक्ष देवदत्त का जिक्र मिलता है. यह अभिलेख लगभग दो हजार वर्ष पुराना है जो कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की रामगढ़ स्थिति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित गुफाओं में अंकित है.

इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण राजा भोज की राजधानी धार में स्थित भोजशाला से प्राप्त पारिजात मंजरी नाटक का है. 13वीं सदी में अभिलिखित यह नाट्य कथा पत्थर पर अंकित है जिसमें राजा अर्जुन वर्मन तथा नायिका पारिजात मंजरी की प्रेम गाथा है.

इसके अलावा देश के अनेक भागों में स्थानीय स्तर पर भी कहानियां हैं, जिनमें लोरिक-चंदा, ढोला-मारू आदि सम्मिलित हैं. जब बात प्रेम की अभिव्यक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखने की हो तो सिरपुर (छत्तीसगढ़) के लक्ष्मण मंदिर का उल्लेख आवश्यक है जिसे आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व महारानी वासटा ने अपने पति हर्षगुप्त की स्मृति में निर्मित कराया था. शाहजहां द्वारा निर्मित ताजमहल भी प्रेम की धरोहर की स्थायी मिसाल है. ढाई आखर प्रेम से संबंधित इन कहानियों को भी याद करते रहना चाहिए.

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