Uddhav Thackeray Raj Thackeray: गठबंधन तो हो गया लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 26, 2025 05:49 IST2025-12-26T05:49:32+5:302025-12-26T05:49:32+5:30
Uddhav Thackeray Raj Thackeray: कार्यकर्ताओं के लिए समस्या ज्यादा है क्योंकि बड़े नेता तो एक हो जाते हैं लेकिन कार्यकर्ताओं के सामने मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं.

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Uddhav Thackeray Raj Thackeray: चर्चाओं का दौर खत्म हुआ और उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) सहित महाराष्ट्र की लगभग सात नगर पालिकाओं के चुनाव के लिए हाथ मिला लिया है. यानी दोनों की पार्टियों- शिवसेना उद्धव गुट और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठबंधन हो गया है. ध्यान रखिए कि दोनों का विलय नहीं हुआ है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर आए हैं, दोनों का मंच एक नहीं हुआ है इसलिए दोनों के संगठन के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं. दोनों के कार्यकर्ता पहले एक-दूसरे के खिलाफ जमीन तैयार कर रहे थे,
अब एक ही जमीन पर दोनों हक जताएंगे तो समस्या पैदा होगी ही. कार्यकर्ताओं के लिए समस्या ज्यादा है क्योंकि बड़े नेता तो एक हो जाते हैं लेकिन कार्यकर्ताओं के सामने मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं. जहां तक शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट का सवाल है तो यह किसी से छिपा नहीं है कि एकनाथ शिंदे ने जब साथ छोड़ा तो संगठन का बड़ा हिस्सा वे अपने साथ ले गए.
जिसके पास सत्ता होती है, कार्यकर्ता उससे जुड़ने में अपना भला देखते हैं. स्वाभाविक रूप से इसका फायदा शिंदे को मिला लेकिन यह कहना भी अनुचित होगा कि उद्धव के पास समर्पित कार्यकर्ता नहीं हैं. उनके पास भी कार्यकर्ता हैं लेकिन यह सवाल हो सकता है कि क्या कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज उनके पास है?
एक और महत्वपूर्ण बात है कि उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे, तीनों एक ही विचारधारा के सारथी रहे हैं. तो जो मतदाता उस विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं, वे किसके साथ जाएंगे? और इन सबके बीच भाजपा की भूमिका क्या होगी क्योंकि भाजपा भी उस विचारधारा की प्रबल हिस्सेदार है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शिवसेना उद्धव गुट और मनसे के एक मंच पर आने को लेकर रत्ती भर भी चिंतित नजर नहीं आ रहे हैं. उन्होंने तो तंज कसते हुए यहां तक कह दिया है कि इन दोनों का मिलाप ऐसा ही है जैसे रूस और यूक्रेन एक मंच पर आ गए हैं. दूसरा मुद्दा है कि मुंबई में उत्तर भारतीयों, गुजरातियों और दक्षिण भारतीयों की बड़ी संख्या है जो उद्धव और मनसे को शायद ही पसंद करे.
इसलिए यह कहने में हर्ज नहीं है कि उद्धव और राज ठाकरे भले ही एक मंच पर आ गए हों लेकिन इससे उनकी समस्या खत्म होती नजर नहीं आ रही है. उन्हें पता है कि भारतीय जनता पार्टी ने बीएमसी और अन्य महानगर पालिकाओं में जीत दर्ज करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है. नगर परिषद के चुनाव में भाजपा ने अपनी ताकत दिखा दी है.
ऐसे में ये दोनों भाई क्या करते हैं, यह वक्त ही बता पाएगा. और अंत मेंं एक सवाल कि दोनों के एक मंच पर आने का सबसे ज्यादा फायदा किसे मिलेगा? उद्धव को या फिर राज ठाकरे को? या फिर दोनों लगातार हो रहे अपने नुकसान को बचाने में सफल हो पाएंगे.