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ब्लॉग: भारत की सभ्यता को पहचानने का समय

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: January 26, 2022 10:20 IST

पुराण की मानें तो देवता भी इस भूमि पर जन्म लेने की स्पृहा रखते हैं. आधुनिक इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व जो भी हो पर उपलब्ध साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य ‘भारत’ नामक एक सप्राण रचना की पुष्टि करते हैं जो यहां के निवासियों के मन-प्राण में अभी भी जीवित है. 

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ठळक मुद्देभारत प्राचीन काल से निरंतर प्रवाहमान एक मानव सभ्यता का सबल आधार रहा है.वेद में उल्लेख है कि यहां विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग रहते हैं.

आज जिस भूभाग को ‘भारत’, ‘इंडिया’ और ‘हिंदुस्तान’ आदि नामों से जाना जाता है, वह प्राचीन काल से निरंतर प्रवाहमान एक मानव सभ्यता का सबल आधार रहा है. 

इसके बावजूद कि आज के अर्थ में अज्ञात इतिहास वाला होने पर भी वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत, दर्शन ग्रंथों, संस्कृत काव्यों, व्याकरण, योग तथा आयुर्वेद और अनेक वेदांगों आदि रचनाओं की उपस्थिति भारत की एक व्यापक सभ्यतामूलक स्मृति को रचती है जो उसे आधुनिक अर्थ वाले इतिहास की सीमा से परे ले जाती है. 

‘भारत’ का वर्णन प्राय: उसकी प्राकृतिक सुषमा और उसके सजीव पार्थिव रूप को लेकर किया जाता रहा है. समुद्र और हिमालय उसकी परिधि बनाते हैं. वेद में यह उल्लेख भी है कि यहां विभिन्न धर्मो को मानने वाले और भिन्न-भिन्न भाषाओं को मानने वाले लोग रहते हैं, जिनका पृथ्वी (वसुंधरा) वैसे ही पालन-पोषण करती है जैसे गाय अपने बछड़ों का. 

पुराण की मानें तो देवता भी इस भूमि पर जन्म लेने की स्पृहा रखते हैं. आधुनिक इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व जो भी हो पर उपलब्ध साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य ‘भारत’ नामक एक सप्राण रचना की पुष्टि करते हैं जो यहां के निवासियों के मन-प्राण में अभी भी जीवित है. 

‘भारत माता की जय’ के नारे अभी भी खूब लगते हैं और लोग प्यार से मन ही मन भारत माता की अमूर्त प्रतिमा को नमन करते हुए अपने को कृतार्थ मानते हैं. ‘वंदे मातरम्’ का गान देश के प्रति तीव्र अनुराग को उद्दीप्त करता है. 

आधुनिक शब्दावली में भारत एक स्वतंत्र, सार्वभौम गणतंत्र की सत्ता वाले देश के रूप में आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय में स्वीकृत है. यद्यपि गणराज्य की संस्था से भारत पूर्वपरिचित था. 

भारत देश का वर्तमान स्वरूप मुस्लिम आक्रांताओं की अधीनता और उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी के लंबे अंतराल के बाद प्राप्त हुआ है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे देश ने हिस्सा लिया था, कुर्बानियां दी गईं और विभिन्न तरह के राजनीतिक प्रयासों के द्वारा महात्मा गांधी की अगुवाई में अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया गया. 

इन यत्नों के फलस्वरूप आज भारत तकनीकी दृष्टि से एक आधुनिक गणतंत्र है जहां बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था है, संसद है और देश के सभी क्षेत्रों से जनता के चुने हुए प्रतिनिधि मिलकर बहुमत के आधार पर सरकार चलाते हैं और इन सबकी व्यवस्था भारत के संविधान के अंतर्गत होती है जो भारत की संविधान सभा द्वारा निर्मित और स्वीकृत है. 

यह सभा प्रांतीय सभा द्वारा चुनी गई थी और 1946 में संविधान बनाने का कार्य शुरू कर दिया था. जब 1947 में अंग्रेजी शासन से मुक्ति मिली तो संविधान सभा ने पहली संसद का रूप ले लिया था. 

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष बने थे. समिति की बैठक 114 दिन हुई और 25 नवंबर 1949 को संविधान का अंतिम मसौदा सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंपा गया. 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ था. तब से अक्टूबर 2021 तक इस संविधान में 105 संशोधन हो चुके हैं. 

संविधान सभा की कार्यवाही देखने से प्रकट होता है कि उसकी दृष्टि में सिर्फ ‘इंडिया’ कहने से देश की प्रकृति को व्यक्त नहीं किया जा सकता था इसलिए दर्ज किया गया कि इंडिया का अर्थ या आशय भारत से है जो एक प्राचीन सभ्यता का परिचायक और वाहक है. 

भारत में अंग्रेजी राज विश्व में पिछली पांच सदियों में जड़ें जमा चुकी यूरोप की औपनिवेशिकता द्वारा अपने वैश्विक वर्चस्व को स्थापित करने की परियोजना का ही हिस्सा था. औपनिवेशिक राज के बढ़ते वर्चस्व से धर्म, राजनीति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और कानून आदि सभी क्षेत्रों में वे छाते चले गए. 

यह भारत की चेतना की अंत:शक्ति थी जिसने औपनिवेशिकता के जबरदस्त प्रभाव का प्रतिरोध किया और अन्य तमाम संस्कृतियों और सभ्यताओं की तुलना में अपने को सुरिक्षत रख सका. यह प्रवाद फैला हुआ है कि अंग्रेजों ने भारत को एक राष्ट्र के रूप में बांधने का काम किया. 

रेल, डाक, टेलीग्राफ आदि सुविधाएं अंग्रेजों की देन मानी जाती हैं. यद्यपि यह मंतव्य कि एक अखंड भारत का विचार, सभ्यता का एक भारतीय रूप उपनिवेश स्थापित करने वाले की देन थी, किसी भी तरह ग्राह्य नहीं है. 

यह भी सच है कि औपनिवेशिकता ने धर्म, शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और विकास के बारे में हमारी सोच में दखल दिया और बदलाव लाया. उपनिवेशवादी की भौतिक दृष्टि की श्रेष्ठता को वैज्ञानिक तथ्य ठहराया गया. 

इस क्रम में देशज विचारों से वंचित कर यूरोपीय नजरिये को लादने का काम चलता रहा. औपनिवेशिकता एक तरह की व्यापक शैक्षिक-सांस्कृतिक परियोजना बन गई जो एक सांचे को लागू कर मानव अनुभव को छांटती चलती है. इसे समझने के लिए उपनिवेशपूर्व काल में विद्यमान भारत की देशज संस्कृति और समाज पर एक नजर डालना उचित होगा. 

भारत की स्वाभाविक भौतिक सीमाएं अपने में विविधता लिए हैं. आंतरिक सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद भारत की एकता ‘जम्बू द्वीप’ और ‘भारत वर्ष’ जैसे प्राचीन नामों में प्रकट होती है. प्राचीन साहित्यिक संदर्भो में इसकी पहचान इसी रूप में मिलती है. 

ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में भारत का उल्लेख मिलता है. भारतवर्ष जातियों और संस्कृतियों का एक विशिष्ट संघ जैसा है जो हर एक को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने का अवसर देता है. 

कहना न होगा कि एक सांस्कृतिक-राजनीतिक इकाई के रूप में पहचान की भारतवर्ष की एक अविच्छिन्न परंपरा पहले से ही चलती चली आ रही है. आज जब स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है तो गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है

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