वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संसद और अदालत के बीच न हो टकराव

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 13, 2023 10:36 AM2023-01-13T10:36:41+5:302023-01-13T10:38:40+5:30

सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि सरकार का यह रवैया अनुचित है, क्योंकि 1993 में जो काॅलेजियम पद्धति तय हुई थी, उसके अनुसार यदि चयन-मंडल किसी नाम को दोबारा भेज दे तो सरकार के लिए उसे शपथ दिलाना अनिवार्य होता है। 

There should be no conflict between the parliament and the court | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संसद और अदालत के बीच न हो टकराव

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संसद और अदालत के बीच न हो टकराव

Highlightsआजकल केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर लंबा विवाद चल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय का चयन-मंडल बार-बार अपने चुने हुए जजों की सूची सरकार के पास भेजता है लेकिन सरकार उस पर ‘हां’ या ‘ना’ कुछ भी नहीं कहती है।बेहतर यही होगा कि इस मसले पर भारत के प्रधान न्यायाधीश और प्रधानमंत्री के बीच सीधी मंत्रणा हो।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने परोक्ष रूप से न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कहा है कि सभी संवैधानिक संस्थाएं अपनी सीमा में रहें। वे संसद और विधानसभाओं के अध्यक्षों के 83वें सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। वे स्वयं राज्यसभा के सभापति हैं। आजकल केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर लंबा विवाद चल रहा है। 

सर्वोच्च न्यायालय का चयन-मंडल बार-बार अपने चुने हुए जजों की सूची सरकार के पास भेजता है लेकिन सरकार उस पर ‘हां’ या ‘ना’ कुछ भी नहीं कहती है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि सरकार का यह रवैया अनुचित है, क्योंकि 1993 में जो काॅलेजियम पद्धति तय हुई थी, उसके अनुसार यदि चयन-मंडल किसी नाम को दोबारा भेज दे तो सरकार के लिए उसे शपथ दिलाना अनिवार्य होता है। 

इस चयन-मंडल में पांचों चयनकर्ता जज ही होते हैं और कोई नहीं होता। उसे बदलने के लिए संसद ने 2014 में 99वां संविधान संशोधन पारित किया था लेकिन उसे सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि उसमें जजों के नियुक्ति-मंडल में कुछ गैर-जजों को रखने का भी प्रावधान था। यह मामला तो अभी तक अटका ही हुआ है लेकिन धनखड़ ने इससे भी बड़ा सवाल उठा दिया है। 

उन्होंने 1973 के केशवानंद भारती मामले में दिए हुए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को संसदीय लोकतंत्र के विरूद्ध बता दिया है। व्यावहारिकता तो इस बात में है कि किसी भी संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों में संतुलन और नियंत्रण हो। बेहतर यही होगा कि इस मसले पर भारत के प्रधान न्यायाधीश और प्रधानमंत्री के बीच सीधी मंत्रणा हो। अन्यथा, यह विवाद अगर खिंचता गया तो भारतीय लोकतंत्र का यह बड़ा सिरदर्द भी साबित हो सकता है।

Web Title: There should be no conflict between the parliament and the court

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