कृपाशंकर चौबे का ब्लॉग: हिंदी पत्रकारिता की मूल प्रतिज्ञा में ही निहित है जनहित की भावना
By कृपाशंकर चौबे | Published: May 30, 2020 02:46 PM2020-05-30T14:46:33+5:302020-05-30T14:46:33+5:30
आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है, जोकि हर साल 30 मई को भारत में मनाया जाता है। दरअसल, 30 मई 1826 को कोलकाता से पहला हिंदी भाषी समाचार पत्न ‘उदंत मार्तण्ड’ प्रकाशित हुआ था, जिसकी वजह से इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी का पहला समाचार पत्न ‘उदंत मार्तण्ड’ 30 मई 1826 को कोलकाता से निकला था। इसीलिए हर वर्ष 30 मई को हिंदी पत्नकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उदंत मार्तण्ड के संचालक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे। शुक्ल जी का जन्म कानपुर में 1788 में हुआ था। उस समय कोलकाता में उत्तर भारत के लोग या तो काम-धंधे की खोज में आते थे या व्यापार करने।
शुक्ल जी शुरू में कोलकाता की सदर अदालत में काम करते थे और बाद में वकील हो गए थे। उसी समय उन्हें हिंदी में समाचार पत्र निकालने की सूझी। तब समाचार पत्न निकालने के लिए कंपनी सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी। तत्कालीन गवर्नर जनरल जान एडम ने 14 मार्च 1823 को एक अध्यादेश जारी कर किसी समाचार पत्न, पत्रिका के प्रकाशन के पूर्व लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक कर दिया था।
लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्न के बदले शपथ-पत्न भरकर पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने समाचार पत्र निकालने की अनुमति मांगी। उन्हें उदंत मार्तण्ड के प्रकाशन की अनुमति 16 फरवरी 1826 को प्राप्त हुई थी। वह साप्ताहिक पत्र था।
पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्तण्ड क्यों निकाला? इसका उत्तर उन्होंने स्वयं समाचार पत्र के प्रवेशांक में ही दिया है, ‘‘यह उदंत मार्तण्ड अब पहले पहल हिन्दुस्तानियों के हित के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी, पारसी और बंगाली में जो समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों के जान्ने और पढ़ने वालों को ही होता है और सब लोग पराये सुख सुखी होते हैं जैसे पराये धन धनी होना ओ अपनी रहते पराई आंख देखना वैसी ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है।।।ऐसी ऐसी बातों के विचार से नाना देश के सत्य समाचार हिन्दुस्तानी लोग देखकर आप पढ़ ओ समझ लेंय ओ पराई अपेक्षा जो अपने भाषा के उपज न छोड़े, इसलिये बड़े दयावान करुणा ओ गुणनि के निधान सबके कल्याण के विषय श्रीमान गबरनर जेनरेल बहादुर की आयस से ऐसे साहस में चित्त लगाय के एक प्रकार से यह नया ठाट-ठाटा।’’
उदंत मार्तण्ड के इस सम्पादकीय वक्तव्य को हिंदी पत्रकारिता की आदि प्रतिज्ञा मानना चाहिए। उस प्रतिज्ञा में यह अंतर्निहित है कि पत्रकारिता वह है जो देशवासियों के हित से बंधी हो। स्पष्ट है कि हिंदी पत्नकारिता की प्रेरणाएं, प्रयोजन और प्रतिज्ञाएं उसके स्थापना काल में ही जनोन्मुखी थीं। ‘उदंत मार्तण्ड’ के निकलने की खबर ‘समाचार चंद्रिका’ नामक बांग्ला पत्रिका के 11 जून 1826 के अंक में प्रकाशित हुई जिसके अनुसार- ‘‘अग्रेजी और बांग्ला के पत्रों के बाद फारसी में, उर्दू में भी पत्र प्रकाशित हुए और अब नागरी भाषा में उदंत मार्तण्ड प्रकाशित हुआ है, जिससे हमें बड़ी प्रसन्नता हुई है।’’
17 जून 1826 का समाचार दर्पण लिखता है- ‘‘नागरी समाचार पत्र। हाल में इस कलकत्ता नगर से ‘उदंत मार्तण्ड’ नामक एक नागरी का नूतन समाचार पत्र प्रकाशित हुआ है, इससे हमारे आल्हाद की सीमा नहीं है, क्योंकि समाचार पत्न द्वारा सम्पत्ति संबंधी और नाना देशों के वृत्तांत प्रकाशित होते हैं, जिनके जानने में अवश्य ही उपकार होता है।’’ पत्न के आवरण पृष्ठ के ऊपर काफी बड़े-बड़े अक्षरों में ‘उदंत मार्तण्ड’ नाम अंकित रहता था। इसकी भाषा कलकतिया हिंदी थी। इस पत्र में मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे युगल किशोर शुक्ल ‘मध्यदेशीय भाषा’ कहते थे।
उन्हें संस्कृत और हिंदी की प्रचलित शैलियां, ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली का तो ज्ञान था ही, वे फारसी और बांग्ला भी जानते थे। इसलिए ‘उदंत मार्तण्ड’ पर फारसी का प्रभाव भी था। लेकिन कहीं भी भाषा त्नुटि दिखने पर शुक्लजी कड़ी टिप्पणी करते थे। कानूनी कारणों एवं ग्राहकों के पर्याप्त सहयोग न देने के कारण दिसंबर, 1827 के 79वें अंक के साथ ही युगल किशोर शुक्ल को ‘उदंत मार्तण्ड’ का प्रकाशन बंद करना पड़ा। ‘उदंत मार्तण्ड’ के 79वें अंक में एक नोट प्रकाशित हुआ था जो इस प्रकार था, ‘‘आज दिवस लौ उग चुक्यों मार्तण्ड उदंत। अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अंत।।’’
आर्थिक कारणों से या ग्राहकों के अभाव में किसी पत्न का बंद होना हिंदी पत्नकारिता का आदि प्रश्न है। ‘उदंत मार्तण्ड’ आर्थिक दिक्कतों से ज्यादा दिन नहीं चल पाया और चार दिसंबर 1827 को वह हमेशा के लिए बंद हो गया। किंतु पंडित जुगल किशोर शुक्ल की निष्ठा ने जवाब नहीं दिया था, तभी तो 1850 में उन्होंने सामदंड मरतड नामक एक और समाचार पत्न निकाला।