विनीत नारायण का ब्लॉग: अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 24, 2019 07:09 AM2019-09-24T07:09:09+5:302019-09-24T07:09:09+5:30

सरकार की आलोचना को अगर नैतिकता-अनैतिकता की कसौटी पर कसा जाएगा तो लोकतंत्न के मूल गुण की बात सबसे पहले करनी पड़ेगी. विद्वानों ने माना है कि राजव्यवस्था का वर्गीकरण ही इस बात से होता है कि उस व्यवस्था में संप्रभु कौन है.

The question of freedom of expression | विनीत नारायण का ब्लॉग: अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल

प्रतीकात्मक फोटो

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने हाल ही में कहा है कि भारत के नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है. उनकी कही यह बात एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सोच-विचार के लिए प्रेरित कर रही है. सरकार की आलोचना नई बात नहीं है. राजनीतिक व्यवस्थाओं का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना यह विषय भी है. तरह-तरह की राजव्यवस्थाओं की आलोचना और समीक्षा करते-करते ही आज दुनिया में लोकतंत्न जैसी नायाब राजव्यवस्था का जन्म हो पाया है. जाहिर है कि न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता के कथन ने लोकतंत्न के गुणों पर नजर डालने का मौका दिया है.

सरकार की आलोचना को अगर नैतिकता-अनैतिकता की कसौटी पर कसा जाएगा तो लोकतंत्न के मूल गुण की बात सबसे पहले करनी पड़ेगी. विद्वानों ने माना है कि राजव्यवस्था का वर्गीकरण ही इस बात से होता है कि उस व्यवस्था में संप्रभु कौन है. लोकतंत्न के विचार में संप्रभुता नागरिक की मानी जाती है. लोकतंत्न का निर्माता ही नागरिक है. इस लिहाज से वही संप्रभु साबित होता है. अब ये अलग बात है कि नागरिकों की संप्रभुता की सीमा का ही मुद्दा उठने लगे. इस मामले में भारतीय लोकतंत्न के एक और गुण को देख लिया जाना चाहिए.

भारतीय लोकतंत्न को वैधानिक लोकतंत्न भी समझा जाता है. इस व्यवस्था में नागरिक एक संविधान बनाते हैं और नागरिकों के बनाए इस संविधान को ही संप्रभु माना जाता है. इसीलिए आमतौर पर कहते हैं कि संविधान के ऊपर कोई नहीं. यानी जस्टिस दीपक गुप्ता के वक्तव्य को इस नुक्ते के आधार पर भी परखा जाना चाहिए. गौरतलब है कि हमारा लोकतंत्न अब अनुभवी भी हो चुका है. दुनिया का भी अनुभव बताता है कि किसी भी सरकार ने कितना भी जोर लगा लिया हो लेकिन नागरिकों के इस विलक्षण अधिकार को वे हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कभी नहीं करवा पाईं. एक सुखद अनुभव यह भी रहा है कि लोकतांत्रिक देशों में अधिसंख्य नागरिकों ने उसी बात का पक्ष लिया है जो सही हो यानी नैतिक हो.

Web Title: The question of freedom of expression

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