ब्लॉग: चुनावी चंदे में गुमनामी का खेल असंवैधानिक

By प्रमोद भार्गव | Published: February 17, 2024 03:51 PM2024-02-17T15:51:18+5:302024-02-17T15:54:59+5:30

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी समेत सभी राजनीतिक दलों को बड़ा झटका दिया है।

The game of anonymity in election donations is unconstitutional | ब्लॉग: चुनावी चंदे में गुमनामी का खेल असंवैधानिक

फाइल फोटो

Highlightsसर्वोच्च न्यायालय ने बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दलों को बड़ा झटका दिया 2018 में चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा लेने का कानून बनाए जाने के वक्त दावा किया गया थालोकसभा और विधानसभा चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी समेत सभी राजनीतिक दलों को बड़ा झटका दिया है। डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसले में दलों को गुमनामी चुनावी चंदा उपलब्ध कराने वाली केंद्र सरकार की निर्वाचन बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है।

पीठ ने बॉन्ड की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए इसे क्रय करने वालों, बॉन्ड का मूल्य और इसे पाने वालों के नाम सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। अदालत ने 2018 में वित्त विधेयक-2017 के जरिए लाई गई इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 19 (1 ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के मौलिक अधिकार के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन माना है।

2018 में चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा लेने का कानून बनाए जाने के वक्त दावा किया गया था कि कालेधन पर रोक और भ्रष्टाचार पर लगाम की दृष्टि से राजनीतिक पार्टियां अब केवल निर्वाचन बॉन्ड के जरिए ही चंदा ले सकेंगी। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं।

इस खर्च में बड़ी धनराशि कालाधन और आवारा पूंजी होती है। आर्थिक उदारवाद के बाद यह बीमारी सभी दलों में पनपी है। न्यायालय में प्रस्तुत किए गए निर्वाचन आयोग और एडीआर के आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में योजना शुरूरू होने से जनवरी 2024 तक 16,518.11 करोड़ रुपए के अधिक के निर्वाचन बॉन्ड बिके हैं।

यह राशि सभी दलों को उनकी पहुंच और हैसियत के मुताबिक व्यापारियों ने दी है। साफ है, जब बड़े व्यापारिक घरानों से दलों को मोटी धनराशि मिलने लगी, तब से दलों में जनभागीदारी निरंतर घटती चली जा रही है। मसलन कॉर्पोरेट फंडिंग ने ग्रास रूट फंडिंग का काम खत्म कर दिया है। इस वजह से दलों में जहां आंतरिक लोकतंत्र समाप्त हुआ, वहीं आम आदमी से दूरियां भी बढ़ती चली गईं। दल आम कार्यकर्ताओं की बजाय धनबलियों को उम्मीदवार बनाने लग गए।

नतीजतन लोकसभा और विधानसभाओं में पूंजीपति जनप्रतिनिधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्तमान लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की घोषित संपत्ति 10 हजार करोड़ रुपए (एक खरब) से भी अधिक है। अतएव अदालत ने निर्वाचन बॉन्ड को खत्म करके राजनीतिक दलों को आमजन तक फिर से पहुंचने के लिए सबक सिखाने का काम किया है।

Web Title: The game of anonymity in election donations is unconstitutional

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