ब्लॉग: चीन पर आयात निर्भरता घटाने की चुनौती, भारत को बढ़ानी होगी इलेक्ट्रॉनिक एवं केमिकल मैन्युफैक्चरिंग क्षमताएं

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: January 21, 2023 11:39 AM2023-01-21T11:39:04+5:302023-01-21T11:48:50+5:30

इस पर बोलते हुए जीटीआरआई ने कहा कि उत्पादों की गुणवत्ता और मानक समस्या नहीं है, क्योंकि भारत, अमेरिका और यूरोप सहित 100 से अधिक देशों को अपने उत्पादों का निर्यात करता है।

The challenge reducing import dependence on China india conflict export | ब्लॉग: चीन पर आयात निर्भरता घटाने की चुनौती, भारत को बढ़ानी होगी इलेक्ट्रॉनिक एवं केमिकल मैन्युफैक्चरिंग क्षमताएं

फोटो सोर्स: ANI फाइल फोटो

Highlightsसाल 2022 में चीन को भारत से होने वाले निर्यात में 37.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज हुई है।अभी भी भारत के लिए चीन से बढ़ता आयात एक चुनौती बना हुआ है।ऐसे में भारत को इलेक्ट्रॉनिक एवं केमिकल मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ानी होंगी।

नई दिल्ली: 13 जनवरी को चीन के कस्टम विभाग के द्वारा भारत-चीन व्यापार से संबंधित जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल 2022 में दोनों मुल्कों के बीच 8.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ व्यापार 135.98 अरब डॉलर पर पहुंच गया और इसके साथ ही भारत का व्यापार घाटा भी 100 अरब डॉलर के नए स्तर को पार कर गया. पिछले साल भारत को होने वाले चीनी सामान के निर्यात में 21.7 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह 118.5 अरब डॉलर हो गया है. 

चीन को भारत से होने वाले निर्यात में देखी गई है भारी गिरावट

साल 2022 में चीन को भारत से होने वाले निर्यात में 37.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज हुई है और यह 17.48 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है. यद्यपि पिछले दो सालों में चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है. यहां तक कि कई बार हिंसक झड़पें हुई हैं, लेकिन दूसरी तरफ व्यापार के क्षेत्र में भारत की चीन पर निर्भरता भी लगातार बढ़ी है.

गौरतलब है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए कहा था कि चीन के साथ व्यापार घाटा भारत के लिए चुनौती बना हुआ है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2004-05 में भारत और चीन के बीच 1.48 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था. लेकिन 2013-14 में ये बढ़कर 36.21 अरब डॉलर तक पहुंच गया. 

फिलहाल चीन से बढ़ता आयात है एक चुनौती

इस प्रकार इसमें करीब 2346 फीसदी की वृद्धि हुई. इन वर्षों में चीन से आयात भी बढ़कर दस गुना से अधिक हो गया है. जहां इन वर्षों में पूरा देश चीन में निर्मित घटिया चीनी उत्पादों से भर गया और भारत लगातार बहुत कुछ चीनी सामानों पर निर्भर होता गया, वहीं अभी भी चीन से बढ़ता आयात चुनौती बना हुआ है.

यहां यह उल्लेखनीय है कि चीन से भारत में आने वाले सामान में विभिन्न उद्योगों के उत्पादन में काम आने वाले दवाइयों के कच्चे माल, दवाइयां, इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रानिक सामान, पशु या वनस्पति वसा, अयस्क, लावा और राख, खनिज ईंधन, अकार्बनिक रसायन, कार्बनिक रसायन, उर्वरक, रंगाई के अर्क, विविध रासायनिक उत्पाद, प्लास्टिक, कागज और पेपरबोर्ड, कपास, कपड़े, जूते, कांच और कांच के बने पदार्थ, लोहा और इस्पात, तांबा; परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, विद्युत मशीनरी और फर्नीचर से संबंधित हैं. 

इन सामानों का चीन से आयात लगातार बढ़ा है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014-15 से स्वदेशी उत्पादों को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए हैं. 

चीन से तनाव के कारण देसी उत्पादों की उपयोग बढ़ी है

वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण जैसे-जैसे चीन की भारत के प्रति आक्रामकता और विस्तारवादी नीति सामने आई, वैसे-वैसे प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश भर में बढ़ती हुई दिखाई दी थी. 

नि:संदेह चीन से व्यापार घाटा देश की बड़ी आर्थिक चुनौती है. खासतौर से एक ऐसे समय में जब डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर हुआ दिखाई दे रहा है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी बड़ी कमी आई है. 

ऐसे में हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़कर चीन से बढ़ते आयात और बढ़ते व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं. निश्चित रूप से स्थानीय बाजारों में चीनी उत्पादों को टक्कर देने और चीन से व्यापार घाटा और कम करने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा. 

भारत को उठाना होगा यह कदम

भारत को इलेक्ट्रॉनिक एवं केमिकल मैन्युफैक्चरिंग क्षमताएं बढ़ानी होंगी. देश के पब्लिक सेक्टर में भी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना होगा. हम देश में मेक इन इंडिया अभियान को आगे बढ़ाकर लोकल प्रॉडक्ट को ग्लोबल बना सकते हैं. सरकार के द्वारा स्वदेशी उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा.

यहां आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के द्वारा 15 जनवरी को की गई वह टिप्पणी भी उल्लेखनीय है, जिसमें कहा गया है कि नियामकीय और आंतरिक बाजार बाधाओं के कारण चीन के लिए भारतीय निर्यात प्रभावित हो रहा है. भारत को अपने निर्यातकों के समक्ष आ रहे बाजार पहुंच के मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर चीन के साथ उठाना चाहिए. 

 शोध संस्थान का क्या कहना है

चीन से आयात के लिए भी भारत समान नियमों को लागू करने पर विचार कर सकता है. शोध संस्थान ने कहा कि चीन सीमा शुल्क के अलावा भारत जैसे देशों से आयात के नियमन के लिए चार प्रमुख बाधाओं का इस्तेमाल करता है. इसमें नियामकीय, आंतरिक बाजार, व्यापार रक्षा और राजनीतिक उपाय शामिल हैं. 

इन जटिल नियमों के माध्यम से चीन भारत से प्रतिस्पर्धी आयात को रोकता है. जीटीआरआई ने कहा कि उत्पादों की गुणवत्ता और मानक समस्या नहीं है, क्योंकि भारत, अमेरिका और यूरोप सहित 100 से अधिक देशों को अपने उत्पादों का निर्यात करता है. 

हम उम्मीद करें कि भारत के द्वारा इस वर्ष 2023 में जी-20 की अध्यक्षता के बीच ऐसे रणनीतिक प्रयत्न किए जाएंगे, जिनसे चीन प्लस वन की जरूरत के मद्देनजर भारत दुनिया का नया आपूर्ति केंद्र व मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की डगर पर तेजी से बढ़ने की संभावनाएं मुट्ठियों में ले सकेगा.

Web Title: The challenge reducing import dependence on China india conflict export

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