उजड़ते वनों को सहेजने की बड़ी चुनौती
By योगेश कुमार गोयल | Updated: March 21, 2025 06:48 IST2025-03-21T06:47:56+5:302025-03-21T06:48:28+5:30
पर्यावरण विशेषज्ञों के मतानुसार पृथ्वी पर वनों की संख्या घटते जाने का सीधा असर पृथ्वी पर मौजूद पूरी जैव विविधता पर पड़ेगा.

उजड़ते वनों को सहेजने की बड़ी चुनौती
पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने में मनुष्यों और जीव-जंतुओं के अलावा वृक्षों तथा वनों का भी बेहद महत्वपूर्ण योगदान है. दरअसल वन जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों का प्राकृतिक आवास स्थान होने के साथ-साथ भोजन का माध्यम भी है और पृथ्वी पर जीवन भी वनों की बदौलत ही है. पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत जरूरी तत्व है ऑक्सीजन और धरती पर वन ही हैं जो बहुत बड़ी मात्रा में वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड को सोखकर उसे ऑक्सीजन में बदलते हैं.
वन वर्षा कराने, तापमान को नियंत्रित रखने, मृदा के कटाव को रोकने तथा जैव-विविधता को संरक्षित करने में सहायक होते हैं. हालांकि दुनियाभर में वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण अब पृथ्वी पर वन और उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के आवास स्थल काफी सिमट गए हैं. हर साल दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विशालकाय जंगलों में लगने वाली आग के कारण लाखों हेक्टेयर जंगल तथा जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां तबाह हो जाती हैं.
वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग में तो जैव विविधता के साथ-साथ बहुत बड़ी संख्या में जंगल जलकर खाक हो गए थे.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों में विश्वभर में करीब एक अरब एकड़ क्षेत्र में वन नष्ट हो गए हैं. कुछ दशक पहले तक जहां पृथ्वी का करीब 50 फीसदी भू-भाग वनों से आच्छादित रहता था, वहीं अब यह महज 30 फीसदी ही रह गया है. पर्यावरण विशेषज्ञों के मतानुसार पृथ्वी पर वनों की संख्या घटते जाने का सीधा असर पृथ्वी पर मौजूद पूरी जैव विविधता पर पड़ेगा.
यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर लोगों को वनों के महत्व के प्रति जागरूक करने, इनके संरक्षण के लिए समाज का योगदान हासिल करने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस’ अथवा ‘विश्व वानिकी दिवस’ मनाया जाता है. यह दिवस मनाए जाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2012 में की गई थी और तभी से यह दिवस हर साल 21 मार्च को संयुक्त राष्ट्र वन फोरम तथा खाद्य एवं कृषि संगठन के सहयोग से मनाया जाता है.