मुन्नार ही नहीं पूरे देश में है ऐसी गुंडागर्दी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 5, 2025 07:43 IST2025-11-05T07:43:24+5:302025-11-05T07:43:29+5:30

सवाल है कि टैक्सी यूनियन की मर्जी से व्यवस्था चलेगी या फिर कानून से? महाराष्ट्र के नागपुर जैसे शहर में तो न टैक्सी में कोई मीटर है और न ही ऑटो मीटर से चलते हैं.

Such hooliganism is not only prevalent in Munnar but in the entire country | मुन्नार ही नहीं पूरे देश में है ऐसी गुंडागर्दी

मुन्नार ही नहीं पूरे देश में है ऐसी गुंडागर्दी

मुंबई में काम करने वाली जाह्नवी ने एक पर्यटक के रूप में केरल के मुन्नार में टैक्सी वालों की जिस गुंडागर्दी का सामना किया है, वैसी गुंडागर्दी  का सामना हर रोज पूरे देश में यात्री कर रहे हैं. निश्चित रूप से ज्यादातर टैक्सी  वाले अच्छे होते हैं, वे यात्रियों का सम्मान करते हैं और कोशिश करते हैं कि उन्हें कोई परेशानी न हो लेकिन यह भी सच है कि बहुत से टैक्सी  वाले यात्रियों से ज्यादा से ज्यादा राशि वसूलने के चक्कर में रहते हैं और आश्चर्य की बात यह है कि स्थानीय पुलिस इस मामले में मूक बनी रहती है.

शिकायत भी करें तो ज्यादातर मामलों में पुलिस का रवैया टालने  वाला ही होता है. अब जाह्नवी का ही मामला देखिए. वे राष्ट्रीय स्तर पर संचालित होने वाली कैब सेवा का उपयोग करना चाहती थीं लेकिन मुन्नार के स्थानीय टैक्सी चालकों ने उन्हें इस बात के लिए मना किया. जाह्नवी नहीं मानीं और कैब को दूसरी जगह बुलाया तो स्थानीय टैक्सी चालक वहां भी पहुंच गए और गुंडागर्दी करने लगे.

जाह्नवी ने पुलिस से शिकायत की लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी. अंतत: एक वीडियो बना कर उन्होंने सोशल मीडिया पर डाला तब पुलिस हरकत में आई. सवाल यह पैदा होता है कि टैक्सी चालक यूनियन बना कर गुंडागर्दी करते रहें तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? जाहिर तौर पर पुलिस का यह दायित्व है कि जो भी यात्री बाहर से आ रहे हैं या बाहर जा रहे हैं, उन्हें यदि टैक्सी वाले परेशान करते हैं तो तत्काल उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है.

आप भारत के किसी भी इलाके में चले जाएं, रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड के भीतर तक टैक्सी और ऑटो वाले घुसे रहते हैं और यात्रियों के साथ कई बार खींचतान भी करते रहते हैं. वहां पुलिस भी होती है. पास ही टैक्सी स्टैंड होता है तो फिर ये वाहन चालक स्टेशन और बस स्टैंड के भीतर क्यों पहुंचते हैं? इस सवाल का सीधा जवाब है कि जो पुलिसकर्मी वहां ड्यूटी पर तैनात होते हैं वे या तो जानबूझकर लापरवाही बरतते हैं या फिर टैक्सी और ऑटो वालों से उनकी मिलीभगत होती है.

महाराष्ट्र में यदि आप मुंबई को छोड़ दें तो ज्यादातर रेलवे स्टेशन पर कैब से आप जा तो सकते हैं लेकिन वहां से कैब नहीं पकड़ सकते क्योंकि स्थानीय टैक्सी यूनियन इसकी इजाजत नहीं देती है. सवाल है कि टैक्सी यूनियन की मर्जी से व्यवस्था चलेगी या फिर कानून से? महाराष्ट्र के नागपुर जैसे शहर में तो न टैक्सी में कोई मीटर है और न ही ऑटो मीटर से चलते हैं.

इतना ही नहीं, सड़क के नियमों की भी धज्जियां ये ऑटो चालक दिन भर उड़ाते रहते हैं. लाल सिग्नल का सम्मान शायद ही कोई ऑटो वाला करता हो. उस पर इन दिनों ई-रिक्शा भी सड़क पर है और उसने तो नियमों को ताक पर ही रख दिया है. इन सारी समस्याओं का निदान एक ही है कि सरकार सख्त हो जाए और जो भी पुलिसकर्मी नियमों की अवहेलना करने वालों के प्रति सहानुभूति रखता हो, उसे तत्काल निलंबित किया जाए.

Web Title: Such hooliganism is not only prevalent in Munnar but in the entire country

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