भारत में सिर्फ 10% लोग देश की 50 प्रतिशत संपदा के मालिक, 50% लोगों के पास संपदा भी नहीं : सर्वेक्षण

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 18, 2021 09:08 AM2021-09-18T09:08:27+5:302021-09-18T09:13:59+5:30

भारत में 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास 10 प्रतिशत संपदा भी नहीं है

study claim, only 10 percent of the rich people of the country are the owners of 50 percent of the wealth of the country | भारत में सिर्फ 10% लोग देश की 50 प्रतिशत संपदा के मालिक, 50% लोगों के पास संपदा भी नहीं : सर्वेक्षण

फोटो- सोशल मीडिया

Highlightsभारत में सिर्फ 10% लोग देश की 50 प्रतिशत संपदा के मालिक50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास 10 प्रतिशत संपदा भी नहीं है सिर्फ 10 प्रतिशत लोग गांव की 80 प्रतिशत संपदा के मालिक

भारत में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई आजकल पहले से भी अधिक गहरी होती जा रही है. ऐसा नहीं है कि भारत की समृद्धि बढ़ नहीं रही है. समृद्धि तो बढ़ रही है लेकिन उसके साथ-साथ आर्थिक विषमता भी बढ़ रही है. 

अभी एक जो ताजा सरकारी सर्वेक्षण हुआ है, उसका कहना है कि देश के 10 प्रतिशत धनवान लोग देश की 50 प्रतिशत संपदा के मालिक हैं और 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास 10 प्रतिशत संपदा भी नहीं है. 

दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में यह असमानता और भी भारी है. यदि अपने गांवों में यह असमानता हम देखने जाएं तो हमारा माथा शर्म से झुक जाएगा. वहां ऊपर के 10 प्रतिशत लोग गांव की 80 प्रतिशत संपदा के मालिक होते हैं जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 2.1 प्रतिशत संपदा है.

हमारे देश में गरीबी की रेखा के नीचे वे लोग माने जाते हैं, जिनकी आमदनी 150 रु . रोज से कम है. ऐसे लोगों की संख्या सरकार कहती है कि 80 करोड़ है लेकिन इन 80 करोड़ लोगों को डेढ़ सौ रु. पूरे साल भर रोज मिलता ही रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. 

कौन हैं ये लोग? 
ये हैं-खेतिहर मजदूर, गरीब किसान, आदिवासी, पिछड़े, मेहनतकश मजदूर, ग्रामीण और अनपढ़ लोग! इनकी जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा है. इन्हें सरकार मनरेगा के तहत रोजगार देने का वायदा करती है लेकिन अफसर बीच में ही पैसा हजम कर जाते हैं. 

ये किसके पास जाकर शिकायत करें? 
इनके पास अपनी आवाज बुलंद करने का कोई जरिया नहीं है. गांवों की जिंदगी से तंग आकर ये बड़े शहरों में शरण ले लेते हैं. 

शहरों में इन्हें कौनसा काम मिलता है? 
चौकीदार, सफाई कर्मचारी, घरेलू नौकर, कारखाना मजदूर, ट्रक और मोटर चालक आदि के ऐसे काम मिलते हैं, जिनमें जानवरों की तरह लगे रहना पड़ता है. गंदी बस्तियों में झोपड़े बनाकर इन्हें रहना पड़ता है. इनके बच्चे पाठशालाओं में जाने की बजाय या तो सड़कों पर भीख मांगते हैं या घरेलू नौकरों की तरह काम करते हैं. 

देश के इन लगभग 100 करोड़ लोगों को पेट भर भोजन भी नहीं मिल पाता है. कई परिवारों को भूखे पेट ही सोना पड़ता है. जिनके पास पेट भरने के लिए पैसे नहीं हैं, वे बीमार पड़ने पर अपना इलाज कैसे करवा सकते हैं? ये गरीब लोग पैदाइशी तौर पर कमजोर होते हैं. बीमार पड़ने पर ये जल्दी ही मौत का शिकार हो जाते हैं.

कोरोना की महामारी ने सबको प्रभावित किया है लेकिन देश के गरीबों की दुर्गति बहुत ज्यादा हुई है. अचानक तालाबंदी घोषित करने से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और गांवों की तरफ मची भगदड़ में सैकड़ों लोग हताहत भी हुए. 

सरकारी आंकड़े देश में गरीबी के सच्चे दर्पण नहीं हैं. गरीबी रेखा वाले लोगों की संख्या अब काफी बढ़ गई है. निम्न मध्यम वर्ग के शहरी और ग्रामीण नागरिकों को अपना रोजमर्रा का जीवन गरीबी रेखा के आस-पास ही बिताना पड़ता है. देश के कुछ मुट्ठीभर लोगों ने महामारी के दौरान अपनी जेबें जमकर गर्म की हैं. अमीर ज्यादा अमीर हो गए हैं और गरीब ज्यादा गरीब.

Web Title: study claim, only 10 percent of the rich people of the country are the owners of 50 percent of the wealth of the country

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