शरद जोशी की कहानीः गंदी बस्तियों की समस्या
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 24, 2018 10:07 PM2018-11-24T22:07:25+5:302018-11-24T22:07:25+5:30
लोकमत न्यूज हर सप्ताह शरद जोशी की एक कहानी प्रकाशित करता है. इस सप्ताह पढ़िए कहानी, गंदी बस्तियों की समस्या।
सारा देश गंदी बस्तियों का देश है. और यह गंदी है, इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि कुछ साफ बस्तियां देखने में आती हैं. यदि सुंदर नगर न हो तो आप मानिए कि जो गंदे नगर हैं, उनको देख लोग दु:ख न प्रकट करें. खैर, तो मैंने सोचा था कल रात कि सुबह उठूंगा तो गंदी बस्ती पर ‘परिक्रमा’ लिख दूंगा. और ‘परिक्रमा’ का विषय यह होगा कि गंदी बस्ती बड़ी बुरी चीज है और उन्हें घोड़ा छाप माचिस लगा देना चाहिए और आग लगाकर बुझाना नहीं चाहिए.
तो मैं कल रात को यह सोचे बैठा था कि गंदी बस्ती पर ‘परिक्रमा’ लिखूंगा और अमुक-अमुक बातें लिखूंगा, और इन उदाहरणों को रखूंगा, ये उपमाएं जड़ दूंगा, वगैरह-वगैरह. सो रात को तो सो गया और जब सुबह उठा तो सोचा कि पहले लिखूं या पहले नाई के यहां कटिंग करवाऊं? हमारा मोहल्ला यों गंदी बस्ती नहीं है पर घर बड़ा गंदा रहता है और सोचा मैंने कि इसकी भी सफाई हो जाएगी सो बाद में नहाकर, पवित्र होकर इस गंदे विषय पर लिखूंगा.
नाई के यहां कैंची की मधुर झनकार में मैं सोचे जा रहा था कि ये गंदी बस्तियां क्या हैं और इनको कैसे नष्ट करना चाहिए? पहले नष्ट कर फिर नई बस्ती बनानी चाहिए अथवा पहले नई बस्ती बनाकर फिर गंदी बस्ती तोड़नी चाहिए? और जो नई बस्ती होनी चाहिए, वह गंदी बस्ती सी ही होनी चाहिए अथवा नए ढंग की होनी चाहिए? पुरानी गंदी बस्ती को ही नई किया जाए तो क्या हज?
यानी वह मेरे बाल काटे जा रहा था और मैं उन सब मतलब-बेमतलब के सवालों के जवाबों के हल खोज रहा था, जो मेरे दिमाग में आ रहे थे.
सो मैं आपको कसम से कहता हूं कि वे पाइंट मेरे दिमाग में आए थे कि क्या किसी के दिमाग में आए होंगे. और जनाब उसने कटिंग करने के बाद अहसान के तौर पर सिर की मालिश शुरू की. खैर, जनाब, उसने मेरी मालिश की और ऐसा लगा कि जैसे कोई ज्योति मेरे मानस से धीरे-धीरे जा रही है और ऐसा लग रहा है कि ये सारी गंदी बस्तियां धीरे-धीरे उजड़ रही हैं और सारा वातावरण हल्का हो रहा है.
मालिश इतनी सुंदर की गई थी कि सारे पाइंट दिमाग से गायब हो गए. और इसीलिए क्षमा कीजिए, मैं अपना विषय तो कभी दोहराता नहीं, पर इस बहुमूल्य विषय पर कुछ भी नहीं लिख सका. योजना बनानेवालों को मालिश करनेवालों से किस प्रकार बचाना चाहिए, इस विषय में मेरे मत बन गए हैं. ल्लल्ल
(रचनाकाल : 1950 का दशक)