शरद जोशी का ब्लॉगः चारित्रिक विशेषता की खोज
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 19, 2019 09:03 PM2019-01-19T21:03:13+5:302019-01-19T21:03:13+5:30
तर्क-जाल के शुभ अवसर पर मुझे हुमायूं कबीर ने जो अभी भाषण में उदाहरण दिया था, उसका विचार आ जाता है. दिल्ली का नाम आपने सुना ही होगा, भूगोल की किताब के अनुसार यह उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध नगर तथा भारतवर्ष की राजधानी है.
शरद जोशी
मेहमानों के कारण जितनी परेशानी घर में पैदा हो जाती है, उससे भी कहीं अधिक परेशानी उनके साथ नगर में बन पड़ती है. लगता है, जैसे वे सबकी परीक्षा लेने के लिए ही रेल से उतरे हैं. हर चीज देखेंगे और उस पर निर्णय देंगे, उसमें नुक्ताचीनी निकालेंगे और कहेंगे, ‘‘क्या शहर है जी आपका!’’
चाहे खुद के शहर में हाथ-हाथ के गड्ढे सड़क पर पड़े हों, रात को सिवाय दो-तीन चार मोटरों से एक भी नजर नहीं आ रही हो और सड़क पर चलनेवाले सब घर में दुबके रहते हों, पर यहां पर आकर कहेंगे- कुछ जंचा नहीं शहर. मुझसे पूछने लगे, इस धूप में घूमते हुए, ‘‘आपके शहर में कोई प्याऊ नजर नहीं आती?’’मैंने कहा, ‘‘यों सिटी बस के टिकिट पर सब प्याऊ का पता सिर्फ आप जैसे प्यासों के लिए ही तो है. प्याऊ की बात छोड़िए- उससे ज्यादा तो यहां पेट्रोल पम्प हैं.’’ शाम को कहेंगे- ‘‘आजकल कोई अच्छी पिक्चर नहीं है आपके शहर में?’’
तर्क-जाल के शुभ अवसर पर मुझे हुमायूं कबीर ने जो अभी भाषण में उदाहरण दिया था, उसका विचार आ जाता है. दिल्ली का नाम आपने सुना ही होगा, भूगोल की किताब के अनुसार यह उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध नगर तथा भारतवर्ष की राजधानी है. यहां भी बड़ी-बड़ी सड़कें हैं, विशाल होटलें हैं, सिने कुटीर हैं, ट्रामें, मोटर्स, नेहरू, संसद आदि सब हैं. मैं इंदौर पर बड़ा मुग्ध हूं और यह बड़ी नालायकी की बात होगी पर कहना पड़ता है कि इंदौर से देहली बड़ा भी है.
पर एक विदेशी सज्जन को सारा देहली घूमने पर पसंद नहीं आया. यों विदेशी पसंद और नापसंदगी की गुलामी से हम छूट गए हैं, पर फिर भी हुमायूं कबीर को उसकी शिकायत, जो उसने देहली के बारे में की थी, जंच गई और वह यही कि देहली बेकार-सा शहर है, न यहां कोई नेशनल थियेटर है, न यहां कोई नेशनल म्यूजियम है, न नेशनल लाइब्रेरी है, न नेशनल आर्ट गैलरी है.
विदेशीजी का असंतोष समय को देखते ठीक भी था. उस समय से तो कुछ शरीर पर नेशनल बाग और दिमाग में कुछ राष्ट्रीयता है भी, पर अब तो नेशनल म्यूजियम भी खुल गया है. और यदि देहली को जिस नजर से जांच कर वह विदेशी, राजधानी में से भारतीय राष्ट्रीयता खोजने में जिसकी आंख लगी रही और उसी नजर से यदि कोई मध्यभारत.. अरे नहीं, मेरा मतलब है, भारतीयता को खोजे तो वह कहां पर देखेगी? अपने देश की चारित्रिक विशेषता सिवाय वस्त्रों व चेहरों के और किधर है? किधर है? आई एम सॉरी!