किसानों को समुचित मुआवजा दिलाने की दिशा में कदम
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 29, 2025 08:19 IST2025-04-29T08:19:25+5:302025-04-29T08:19:55+5:30
दरअसल अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का अगर समुचित इस्तेमाल किया जाए तो किसानों की दिक्कतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

किसानों को समुचित मुआवजा दिलाने की दिशा में कदम
महाराष्ट्र में प्राकृतिक आपदाओं की मार से जूझने वाले किसानों के लिए यह खबर बहुत राहत देने वाली है कि उनकी फसल क्षति का आकलन करने के लिए राज्य सरकार अब पारंपरिक ऑनफील्ड सर्वेक्षण के बजाय ‘सैटेलाइट इमेजरी’ और ‘नॉर्मलाइज्ड डिफरेंस वेजिटेशन इंडेक्स’ (एनडीवीआई) मानकों का उपयोग करेगी. हालांकि इस प्रौद्योगिकी-संचालित मूल्यांकन में सूखे को शामिल नहीं किया जाएगा.
सूखा दरअसल एक जटिल और धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है, जिसे उपग्रह से सीधे मापना मुश्किल है. हो सकता है इसीलिए सूखे को इससे अलग रखा गया हो. बहरहाल, यह भी कम राहत की बात नहीं है कि बाढ़ और ओलावृष्टि जैसी आपदाओं से होने वाली क्षति में किसानों को इस तकनीक से नुकसान के अनुपात में वास्तविक मुआवजा मिल सकेगा. दरअसल पारंपरिक ऑनफील्ड सर्वेक्षण में कई दिक्कतें आती हैं. इसमें जहां समय अधिक लगता है, वहीं बड़े क्षेत्रों के सटीक मूल्यांकन में कठिनाई होती है और त्रुटियां होने की संभावना भी रहती है.
इसके अलावा सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों पर भी बहुत कुछ दारोमदार होता है, अगर वह ईमानदार हो तब तो ठीक है, अन्यथा घपले होने की गुंजाइश भी बनी रहती है, फिर चाहे वह सरकारी खजाने को चूना लगने की आशंका हो या प्रभावित किसानों को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिलने का डर. इसमें कोई शक नहीं कि प्रशासन से संबंधित बहुत सारी सेवाएं ऑनलाइन होने से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक रोक लगी है और फसल क्षति का सैटेलाइट तस्वीरों से आकलन होने पर इस क्षेत्र में भी पारदर्शिता बढ़ेगी. दरअसल अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का अगर समुचित इस्तेमाल किया जाए तो किसानों की दिक्कतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
ड्रोन और सेंसर तकनीक तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके जहां फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है, वहीं उत्पादन लागत में भी कमी लाई जा सकती है. अभी तो हालत यह है कि अधिकांश किसानों में मृदा परीक्षण तक कराने की जागरूकता नहीं है ताकि वे जान सकें कि उनके खेत की मिट्टी किस फसल की पैदावार के अनुकूल है.
भूजल के बेतहाशा दोहन, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के जरिये वे अधिकाधिक पैदावार लेने की कोशिश करते हैं लेकिन इस चक्कर में खेत धीरे-धीरे बंजर होते जाते हैं. जिस मोटे अनाज के उत्पादन में पहले ज्यादा पूंजी नहीं लगती थी, न फसल की ज्यादा देखभाल करनी पड़ती थी, गेेहूं-चावल को ज्यादा मूल्य मिलते देख किसानों ने उन ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, कोदो, सामा जैसी फसलों को उगाना ही छोड़ दिया था या बहुत कम कर दिया था.
अब स्वास्थ्यप्रद होने और सरकार द्वारा बढ़ावा दिए जाने के कारण आम लोगों ने मोटे अनाज का अधिकाधिक इस्तेमाल शुरू कर दिया है तो किसानों के लिए उनका उत्पादन काफी फायदेमंद हो गया है, फिर भी जागरूकता के अभाव में वे उस दिशा में अभी पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं. किसानों को अगर अत्याधुनिक तकनीकी का पर्याप्त फायदा दिलाने की व्यास्था की जाए और समुचित मार्गदर्शन किया जाए तो उनकी हालत में काफी सुधार लाया जा सकता है.