कृपाशंकर चौबे का ब्लॉग: सामाजिक जिम्मेदारी और देश सेवा का अवसर
By कृपाशंकर चौबे | Published: March 26, 2020 04:57 PM2020-03-26T16:57:19+5:302020-03-26T16:57:19+5:30
कोरोना घोषणा पत्न में भारत के सभी नागरिकों द्वारा यह शपथ लेनी चाहिए कि वे व्यक्तिगत स्वच्छता और शारीरिक दूरी बनाए रखेंगे. बार-बार हाथ धोने की आदत डालेंगे. साबुन और पानी से हाथ धोएंगे. साफ दिखने वाले हाथों को भी निरंतर धोएंगे.
आज जब दुनिया कोरोना वायरस कोविड-19 की बड़ी और कड़ी चुनौती से जूझ रही है, तब स्वामी विवेकानंद के 1899 के प्लेग घोषणा पत्न से प्रेरणा लेते हुए हमें कोरोना घोषणा पत्न के निर्माण के प्रयोजन पर विचार करना चाहिए. जनता ही कोरोना घोषणा पत्न का निर्माण करे और वही उसे लागू करे.
मार्च 1899 में कलकत्ता में प्लेग फैला था तो स्वामी विवेकानंद ने प्लेग पीड़ितों की सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन की एक समिति बनाई थी जिसमें भगिनी निवेदिता को सचिव, स्वामी सदानंद को पर्यवेक्षक और स्वामी शिवानंद, नित्यानंद और आत्मानंद को सदस्य बनाया गया था. भगिनी निवेदिता और उनकी टीम ने प्लेग प्रभावित इलाकों में एक महीने से ज्यादा समय तक दिन-रात सेवा कार्य किया.
कलकत्ता में प्लेग से बचने के लिए जनजागृति लाने के लिए तब यानी 1899 में स्वामी विवेकानंद ने स्वयं प्लेग मैनिफेस्टो बांग्ला भाषा में तैयार किया था. उसे उन्होंने हिंदी में भी तैयार कराया. उसे छपवाकर उन्होंने स्वामी सदानंद और भगिनी निवेदिता की कड़ी मेहनत से आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचवाया.
प्लेग मैनिफेस्टो में विवेकानंद ने कहा था, ‘‘भय से मुक्त रहें क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है. मन को हमेशा प्रसन्न रखें. मृत्यु तो अपरिहार्य है, उससे भय कैसा. कायरों को मृत्यु का भय सदैव द्रवित करता है.’’ उन्होंने इस डर को दूर करने का आग्रह किया और कहा, ‘‘आइए, हम इस झूठे भय को छोड़ दें और भगवान की असीम करुणा पर विश्वास रखें. अपनी कमर कस लें और सेवा कार्य के क्षेत्न में प्रवेश करें. हमें शुद्ध और स्वच्छ जीवन जीना चाहिए. रोग, महामारी का डर आदि ईश्वर की कृपा से विलुप्त हो जाएगा.’’
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली आदि को हमेशा स्वच्छ बनाए रखें. बासी, खराब भोजन न करें, इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें. कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है. महामारी की अवधि के दौरान क्रोध से और वासना से दूर रहें. भले ही आप गृहस्थ हों.’’ उन्होंने अफवाहों से नहीं घबराने और उन पर ध्यान नहीं देने को भी कहा था.
स्वामी विवेकानंद ने प्लेग घोषणा पत्न में घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली आदि को हमेशा स्वच्छ बनाए रखने की जो बात कही थी, वह आज के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है. अफवाहों से नहीं घबराने और उस पर ध्यान नहीं देने की उनकी अपील भी बेहद तात्पर्यपूर्ण है.
वर्तमान परिवेश में जहां कोरोना वायरस के बारे में डर, भय और अफवाह फैलाई जा रही है, स्वामीजी से प्रेरणा लेते हुए उससे हमें बचना चाहिए और स्वामी विवेकानंद व भगिनी निवेदिता के कार्य को ध्यान में रखते हुए वे सावधानियां बरतनी चाहिए जिनकी सलाह केंद्र व राज्य सरकारें लगातार दे रही हैं.
स्वामी विवेकानंद का प्लेग घोषणा पत्न कोरोना महामारी जैसी समस्या से मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से लड़ने की सामर्थ्य दे सकता है. इसलिए विवेकानंद के प्लेग घोषणा पत्न से प्रेरणा लेते हुए कोरोना घोषणा पत्न का निर्माण इस समय की सबसे बड़ी मांग है.
कोरोना घोषणा पत्न में भारत के सभी नागरिकों द्वारा यह शपथ लेनी चाहिए कि वे व्यक्तिगत स्वच्छता और शारीरिक दूरी बनाए रखेंगे. बार-बार हाथ धोने की आदत डालेंगे. साबुन और पानी से हाथ धोएंगे. साफ दिखने वाले हाथों को भी निरंतर धोएंगे. छींकते और खांसते समय अपनी नाक और मुंह को रूमाल या टिश्यू पेपर से ढंकेंगे. उपयोग किए गए टिश्यू पेपर को उपयोग के तुरंत बाद बंद डिब्बे में फेंकेंगे. बातचीत के दौरान व्यक्तियों से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखेंगे.
अपने तापमान और श्वसन लक्षणों की जांच नियमित रूप से करेंगे. बुखार, सांस लेने में कठिनाई और खांसी आने पर डॉक्टर से मिलने के दौरान, अपने मुंह और नाक को ढंकने के लिए मास्क का प्रयोग करेंगे. खांसने या छींकने वालों से कम से कम एक मीटर दूर ही रहेंगे. किसी से हाथ नहीं मिलाएंगे. अपनी आंख, नाक और मुंह को नहीं छुएंगे. अनावश्यक यात्ना नहीं करेंगे. समूह में नहीं बैठेंगे, बड़े समारोहों में भाग नहीं लेंगे, जिम, क्लब और भीड़भाड़वाली जगहों पर नहीं जाएंगे. अफवाह और दहशत नहीं फैलाएंगे.
इसके अलावा भारतवासियों को आने वाले दिनों में कुछ दिनों तक सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बनाने का संकल्प भी करना चाहिए. भारत में सोशल डिस्टेंसिंग यानी स्वयं को समाज से दूर कर लेने की अवधारणा नहीं रही है. भारत तो समूची दुनिया को कुटुंब मानता रहा है. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग करने का अभिप्राय सदियों के आजमाए सामाजिक व्यवहार को फिलहाल छोड़ना है.
एक तरह से भारत की यह लड़ाई उसकी जीवनशैली से है. भारत में बीमार व्यक्ति को भी अकेला नहीं छोड़ा जाता. परिजन उसे घेरे रहते हैं, सेवा-शुश्रूषा करते हैं किंतु विकसित देशों में बीमार व्यक्ति किसी से नहीं मिलता. यदि वह घर पर है तो घर के बाहर बोर्ड लगा रहता है बीमार हैं, न मिलें.
विकसित देशों में सोशल डिस्टेंसिंग की अवधारणा रही है इसलिए वहां समस्या नहीं है. समस्या भारत में है क्योंकि यहां लोग परिचित बीमार से न सिर्फ मिलते हैं, कुशलक्षेम पूछते हैं बल्कि मदद के लिए आकुल रहते हैं. इस आदत को फिलवक्त बदलना होगा. मेलजोल से बचने का संयम दिखाना होगा.