शरद जोशी का कॉलमः बड़े आदमी, बड़े अपरिचित

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 10, 2018 02:02 PM2018-11-10T14:02:32+5:302018-11-10T14:02:32+5:30

अमुक बड़े व्यक्ति को यदि हम नहीं जानते तो हम मूर्ख हैं और यदि कोई बड़ा व्यक्ति नहीं जानता तो वह बहुत बड़ा है। जैसे यदि मैं लेखक अगर यशपाल के नाम से अपरिचित हूं तो मैं मूर्ख हूं, साहित्य जगत में व्यर्थ ही एक कंबल मात्र हूं। पर यदि यशपाल मुझे नहीं जानता तो वह बड़ा आदमी है।

Sharad Joshi story, rich man and big stranger | शरद जोशी का कॉलमः बड़े आदमी, बड़े अपरिचित

शरद जोशी का कॉलमः बड़े आदमी, बड़े अपरिचित

शरद जोशी

यदि आपको सब जानते हैं तो आप वास्तव में बड़े आदमी हैं। और आप यदि बहुत ही कम को जानते हैं तो आप और भी बड़े आदमी हैं। सो बड़े बनने के लिए एक तरीका यह भी है कि आप किसी से अपने परिचित होने के तथ्य को खुलेआम अस्वीकार कर दें। कुछ जो वास्तव में बड़े हैं, वे बड़े नहीं रहेंगे यदि अपने-आपको सबसे परिचित बताएंगे! इसी से जनतंत्र और अपना बड़प्पन कई बार मेल नहीं खाते! नेता के लिए दोनों में संतुलन बनाए रखने के लिए कहना पड़ता है कि मुझे सब जानते हैं पर मेरा यह दुर्भाग्य है कि मैं बहुत कम को  जानता हूं।

अमुक बड़े व्यक्ति को यदि हम नहीं जानते तो हम मूर्ख हैं और यदि कोई बड़ा व्यक्ति नहीं जानता तो वह बहुत बड़ा है। जैसे यदि मैं लेखक अगर यशपाल के नाम से अपरिचित हूं तो मैं मूर्ख हूं, साहित्य जगत में व्यर्थ ही एक कंबल मात्र हूं। पर यदि यशपाल मुझे नहीं जानता तो वह बड़ा आदमी है।

और यदि कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी यशपाल को नहीं जानते तो वे भी बड़े आदमी हैं। और क.मा. मुंशी ने यह स्पष्ट लिखकर दे दिया है कि वे यशपाल नामक किसी साहित्यिक का नाम नहीं जानते। यशपाल लखनऊ में रहते हैं। शिवाजी मार्ग पर एक मकान है। सीढ़ी चढ़ते से ही टेबल दिखाई देती है। बाएं हाथ का कमरा बैठक का है। टेलीफोन रखा है। पड़ोस की महिलाएं प्राय: उपयोग करने आ जाती हैं। पर राजभवन में रहनेवाला कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी लखनऊ के उस मकान की सीढ़ी नहीं चढ़ा, और न ही कभी यशपाल ने गवर्नर मुंशी की सीढ़ी चढ़ी।

यशपाल उपन्यासकार, कहानीकार, क्रांतिकारी अथवा भले आदमी जैसे कई नातों से जानने योग्य व्यक्ति हैं। पर गवर्नर मुंशी यशपाल से अपरिचित हैं। कुछ लोगों ने इस पर बड़ा ही आश्चर्य प्रकट किया कि मुंशी यशपाल को क्यों नहीं जानते हैं। पर कहां गवर्नर और कहां उपन्यासकार गरीब! राजा भोज और गंगू तेली सी बात हुई! इसमें दुख और आश्चर्य की जरा भी बात नहीं है। गवर्नर साहित्यिक हो, असाहित्यिक हो या अंग्रेज- एक जैसा ही रहता है। गवर्नर यानी गवर्नर! 
(रचनाकाल: 1950 का दशक)

Web Title: Sharad Joshi story, rich man and big stranger

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