शक्तिनंदन भारती का ब्लॉग: प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण नगर रहा है प्रयागराज

By शक्तिनन्दन भारती | Published: October 9, 2021 01:49 PM2021-10-09T13:49:32+5:302021-10-09T13:52:24+5:30

प्रयागराज से पाषाण काल, नवपाषाण काल, ब्राह्मण काल, रामायण और महाभारत काल से लेकर मौर्य, गुप्त और मुगल काल तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए हैं। संगम तट पर स्थित इलाहाबाद का किला जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त और जहांगीर तक के सांस्कृतिक अवशेष शिलालेखों पर अंकित हैं और उपलब्ध भी हैं।

Shaktinandan Bharti Blog know the significance of Prayagraj | शक्तिनंदन भारती का ब्लॉग: प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण नगर रहा है प्रयागराज

संगम, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

Highlightsप्रयागराज को प्राचीन भारत में यज्ञों की भूमि कहा जाता था।प्राचीन काल से यह देश की सामरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक राजधानी रहा है।

प्राचीन भारत में इलाहाबाद को प्रयागराज ही कहा जाता था। प्रयागराज प्राचीन भारत में यज्ञों की भूमि कही जाती थी। वनवास के समय जब श्री राम लक्ष्मण प्रयागराज पहुंचने वाले थे उस समय दूर से उठते धुएँ को देखकर लक्ष्मण ने पूछा कि यह कैसा धुँआ है, तब भगवान राम ने उन्हें बताया कि वे दोनों प्रयागराज पहुंचने वाले हैं क्योंकि यहां निरंतर यज्ञ होते रहते हैं निरंतर यज्ञ होने के कारण ही इस भूमि को प्रयागराज कहा जाता है। तीन पवित्र नदियों का संगम होने के कारण प्रयागराज कालांतर में भारतीय संस्कृति में ज्ञान के संगम के केंद्र के रूप में भी उभरा। पवित्र गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर निरंतर ना जाने कब से ही ज्ञान का संगम कुंभ के रूप में अनवरत होता चला आ रहा है।

प्रयागराज की बेलन घाटी से पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां से थोड़ी दूर स्थित कोलडीहवा से चावल उगाने के विश्व के सर्वाधिक प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। प्रयागराज से पाषाण काल, नवपाषाण काल, ब्राह्मण काल, रामायण और महाभारत काल से लेकर मौर्य, गुप्त और मुगल काल तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

इलाहाबाद के संगम तट पर स्थित इलाहाबाद का किला जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त और जहांगीर तक के सांस्कृतिक अवशेष शिलालेखों पर अंकित हैं और उपलब्ध भी हैं। चित्रकूट जो प्रारंभ में प्रयागराज का ही एक सांस्कृतिक क्षेत्र था के अंतर्गत रामायण काल में उल्लिखित एक अत्यंत पुराने कुएँ का उल्लेख है जिसकी खोज भरत जी ने की थी ऐसा माना जाता है और उसको भरतकूप के नाम से जाना जाता है। 

तात्पर्य है कि प्रयागराज एक ऐसे सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में हमारे सम्मुख उपस्थित है जहां पर पाषाण काल से लेकर के आधुनिक भारत तक के सांस्कृतिक अवशेष हमारे सम्मुख एक निरंतरता का प्रदर्शन कर रहे हैं। ज्ञात इतिहास में उदयन वासवदत्ता की प्रेम कथा का सांस्कृतिक इतिहास तथा चंद्र वंश के इतिहास से प्रयागराज का पुराना संबंध तथा आधुनिक भारत के इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन के समय प्रयागराज की राजनीतिक भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

प्रयागराज की सामरिक स्थिति को देखते हुए वहां प्रयागराज के किले के निर्माण की नींव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी थी जिस पर कुछ कार्य सम्राट अशोक ने करवाया और उसके बाद उसके सामरिक स्थिति को देखते हुए अकबर ने वहां एक किले का निर्माण करवाया। उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण खेती के साक्ष्य के रूप में चावल उगाने का साक्ष्य लगभग 7000 साल से भी पुराना है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रयागराज भारत की प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक अब तक भारत की सामरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कृषक वैज्ञानिक राजधानी रहा है। गंगा जमुनी तहजीब के संस्कृति का स्रोत प्रयागराज ही है और इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि गंगा जमुनी तहजीब की तरह प्रयागराज की सांस्कृतिक अस्मिता अक्षुण्ण रहे।
 

Web Title: Shaktinandan Bharti Blog know the significance of Prayagraj

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