ब्लॉग: मीडिया की संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और जवाबदेही पर खड़े हो रहे हैं गंभीर सवाल, विश्वसनीयता भी दांव पर

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 7, 2022 02:17 PM2022-07-07T14:17:56+5:302022-07-07T14:23:08+5:30

हाल के वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में खबरों तथा सनसनीखेज सामग्री को लेकर होड़ सी मची हुई है. खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है. इसके कई उदाहरण मौजूद हैं.

Serious questions on sensitivity, responsibility and accountability of media, credibility is also at stake | ब्लॉग: मीडिया की संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और जवाबदेही पर खड़े हो रहे हैं गंभीर सवाल, विश्वसनीयता भी दांव पर

मीडिया की विश्वसनीयता दांव पर

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान को गलत संदर्भ में दिखाते हुए समाचार चलाने के आरोप में टीवी चैनल के एंकर रोहित रंजन की गिरफ्तारी और बाद में जमानत पर रिहाई ने मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की संवेदनशीलता, जिम्मेदारी एवं जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 

इस घटना ने मीडिया की विश्वसनीयता को भी दांव पर लगा दिया है. रंजन की गिरफ्तारी को लेकर उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की पुलिस में कानूनी टकराव भी हुआ था. यूपी पुलिस ने इस पत्रकार को नोएडा में हिरासत में ले लिया. हाथ मलती रह गई छत्तीसगढ़ पुलिस ने बुधवार को रंजन को फरार घोषित कर दिया. 

राहुल गांधी ने केरल में अपने निर्वाचन क्षेत्र वायनाड स्थित कार्यालय में तोड़फोड़ करने वालों को माफ करने की घोषणा की थी. छत्तीसगढ़ से प्रसारित होने वाले एक चैनल के एंकर रोहित रंजन पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की खबर तोड़-मरोड़कर पेश की और दिखाया कि राहुल गांधी ने उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या करने वालों को माफ कर दिया. 

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का युग शुरू होने के पहले से मीडिया को चौथे स्तंभ का दर्जा मिला हुआ है. इससे देश, समाज तथा आम नागरिक के प्रति मीडिया की जिम्मेदारी के महत्व को समझा जा सकता है. मीडिया से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बिना किसी छेड़छाड़ और भेदभाव के सही खबरें दे. 

देश दुनिया की ताजा खबरों के अलावा मीडिया ऐसी सामग्री भी दे जो ज्ञानवर्धक, रुचिकर तथा प्रेरक हो. आम आदमी का मीडिया पर अटूट विश्वास है. वह अखबारों में प्रकाशित तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिखाई जाने वाली सामग्री को अकाट्य सत्य मान लेता है. दुर्भाग्य से हाल के वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मीडिया में खबरों तथा सनसनीखेज सामग्री को लेकर होड़ सी मची हुई है. 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है. सुशांत सिंह राजपूत मृत्यु प्रकरण हो या शीना बोरा हत्याकांड या धर्म अथवा संप्रदाय से जुड़े विभिन्न मसले, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खुद ही फैसला सुना देता है. इससे न केवल आम आदमी एवं पूरा समाज गुमराह होता है, बल्कि जांच की दिशा भी प्रभावित हो सकती है. हाल ही में उदयपुर में नृशंस हत्याकांड हुआ. उसे लेकर जो सामग्री प्रसारित की जा रही है, वह विचलित कर देती है. 

खुद कोई निष्कर्ष निकाले बिना जांच एजेंसियों को अपना काम करने देना चाहिए. कुछ सामग्री ऐसी दिखाई जाती है जिससे सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है. अमूमन मीडिया अपने दायित्व का निर्वाह पूरी ईमानदारी तथा गंभीरता के साथ करता है और इसीलिए उसकी विश्वसनीयता आज भी बनी हुई है. 

मसलन महाराष्ट्र की ताजा राजनीतिक उथल-पुथल से जुड़े समाचारों को ही ले लें. मीडिया में उससे जुड़ी खबरों को लेकर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रही. जो भी खबरें सामने आईं, वे तथ्यपरक थीं और उनमें कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं थी. लेकिन यह स्थिति सभी खबरों को लेकर नहीं रहती. 

जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने की होड़ से ही विकृत, सनसनीखेज, अतिशयोक्तिपूर्ण तथा कई बार गलत खबरों को परोस दिया जाता है. ब्रेकिंग न्यूज की होड़ में मीडिया को अपनी भूमिका की संवेदनशीलता पर भी गौर करना चाहिए. देश तथा समाज के प्रति उसे अपनी जिम्मेदारी का रचनात्मक ढंग से निर्वाह करना होगा।

Web Title: Serious questions on sensitivity, responsibility and accountability of media, credibility is also at stake

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