फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: राजद्रोह कानून : तलाशना होगा आगे का रास्ता

By फिरदौस मिर्जा | Published: May 24, 2022 03:18 PM2022-05-24T15:18:28+5:302022-05-24T15:20:31+5:30

संसद को समय की आवश्यकता के अनुसार कानूनों को अद्यतन करने और भविष्य की आवश्यकताओं पर विचार करने के लिए भी कार्य करना होता है। संसद और राज्य विधानमंडलों का यह कर्तव्य है कि वे कानूनों की नियमित रूप से समीक्षा करें, उन्हें अद्यतन या निरस्त करें।

Sedition law way forward will have to be found | फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: राजद्रोह कानून : तलाशना होगा आगे का रास्ता

फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: राजद्रोह कानून : तलाशना होगा आगे का रास्ता

Highlightsसंसद को अनुच्छेद 19 की आड़ में अपने नागरिकों को स्वतंत्रता के दुरुपयोग से बचाने के लिए कानून बनाना होगा।कानून का नहीं होना किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है, इसलिए संसद को इस स्थान को भरने के लिए तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के अपराध के लिए अभियोजन के प्रावधान को तब तक के लिए रोक दिया है जब तक कि संसद इस पर विचार नहीं कर लेती कि उस प्रावधान को बरकरार रखा जाना है या निरस्त किया जाना है। यह आदेश असहमति की आवाज को दबाने के लिए आईपीसी की धारा 124ए के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग के आरोपों के मद्देनजर आया है। आदेश ने नागरिकों को बहुप्रतीक्षित राहत दी और देश में लोकतंत्र को मजबूत किया। 

यह कानून स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के एकमात्र इरादे से लाया गया था और लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी व अन्य के खिलाफ लगाया गया था। आजादी के बाद से ही इसे खत्म करने की मांग की जा रही थी लेकिन सत्तारूढ़ सरकारों ने अपने लिए इसके फायदों को देखते हुए इस मांग को लगातार नजरअंदाज कर दिया और आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कदम उठाना पड़ा। संविधान ने लोकतंत्र के तीन अलग-अलग स्तंभ बनाए हैं। 

कानून बनाने के लिए संसद है, उक्त कानूनों को लागू करने के लिए कार्यपालिका है और उन कानूनों के अंतर्गत कामकाज की समीक्षा करने के लिए न्यायपालिका है जो देखती है कि अन्य दो अंग संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम कर रहे हैं या नहीं। हाल ही में कानून मंत्री ने इन संस्थाओं की लक्ष्मण रेखा के बारे में याद दिलाया, जबकि राजद्रोह कानून को निलंबित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खुद को कानून बनाने की लक्ष्मण रेखा को पार करने से रोका और यह काम संसद पर छोड़ दिया।

राजद्रोह कानून के लिए मुख्य चुनौती अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ इसका विरोधाभास था। अब संसद को यह देखना होगा कि उसके द्वारा बनाया गया कानून उपरोक्त स्वतंत्रता का उल्लंघन तो नहीं करता है और साथ ही साथ अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी करता है या नहीं। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसका मतलब है कि आपको अपने बारे में अच्छा बोलने का अधिकार है लेकिन यह आपको दूसरों के बारे में बुरा बोलने की अनुमति नहीं देता है। 

संसद को अनुच्छेद 19 की आड़ में अपने नागरिकों को स्वतंत्रता के दुरुपयोग से बचाने के लिए कानून बनाना होगा। हाल के दिनों में धर्म, नस्ल आदि के आधार पर वैमनस्य को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है लेकिन कड़े कानूनों के अभाव में ऐसा लगता है कि राजद्रोह के कानून का दुरुपयोग किया गया है। कानून का नहीं होना किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है, इसलिए संसद को इस स्थान को भरने के लिए तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।

संसद को समय की आवश्यकता के अनुसार कानूनों को अद्यतन करने और भविष्य की आवश्यकताओं पर विचार करने के लिए भी कार्य करना होता है। संसद और राज्य विधानमंडलों का यह कर्तव्य है कि वे कानूनों की नियमित रूप से समीक्षा करें, उन्हें अद्यतन या निरस्त करें। दुर्भाग्य से, यह नहीं किया जा रहा है और नागरिकों को कार्यपालिका के भरोसे छोड़ दिया जा रहा है। 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक ओर संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है, लेकिन दूसरी ओर भारतीयों से यह अपेक्षा करता है कि वे भारत की अखंडता की रक्षा के साथ-साथ सद्भाव और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के अपने मौलिक कर्तव्यों को पूरा करें। राजद्रोह कानून को निरस्त करते हुए, संसद को संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों के उल्लंघन के लिए कड़ी सजा प्रदान करने वाला कानून बनाना चाहिए, खासकर जब कोई नफरत भरे भाषणों में लिप्त हो और भारत की अखंडता को नुकसान पहुंचाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपना कर्तव्य निभाया है, अब संसद के लिए अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करने का समय है।

Web Title: Sedition law way forward will have to be found

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