BLOG: भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंधती उम्मीदें वरना सरकार तो...
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 20, 2018 03:43 AM2018-07-20T03:43:24+5:302018-07-20T03:43:24+5:30
पुलिस और प्रशासन के जिम्मे सब कुछ छोड़कर समाज शांत बैठ जाए तो फिर इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. इसके लिए समाज के जागरुक लोगों को भी आगे आना होगा.
(अवधेश कुमार)
उच्चतम न्यायालय ने भीड़ द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई हत्याओं पर सरकारों के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां करते हुए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं वह बिल्कुल स्वाभाविक है. अगर सरकार भीड़ की हिंसा और हत्याओं पर रोक लगाने में पूरी तरह कामयाब होतीं तो न्यायालय को न ऐसी टिप्पणियों की आवश्यकता पड़ती न ही मार्गनिर्देश जारी करने की. इसलिए यह कहना काफी हद तक सही होगा कि न्यायालय का रुख सरकार द्वारा कानून और व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने की परिणति है.
न्यायालय ने जो आंकड़े दिए उनके अनुसार पिछले आठ वर्षो में गोरक्षा के नाम पर 33 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं तथा इस बीच 86 से ज्यादा हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं. इसका अर्थ यह है कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाएं केवल वर्तमान केंद्र सरकार के कार्यकाल की नहीं हैं. यह पूर्व से ही होता आ रहा है. किंतु भीड़ की हिंसा केवल गोरक्षा के नाम पर ही नहीं हो रही है. पिछले 20 मई से अब तक बच्चा चोरी की अफवाह में 15 लोगों की जानें जा चुकी हैं. ये संख्या देखने में ज्यादा नहीं लगती है, पर ऐसी एक भी हिंसा अस्वीकार्य होनी चाहिए. हालांकि यह भी सच है ऐसे जितने अपराध हुए हैं उनमें काफी संख्या में राज्यों ने आरोपियों को गिरफ्तार किया है, कुछ जगह तो उनको न्यायालयों द्वारा सजा भी दी जा चुकी है, पर भीड़ के उन्मादित चरित्र और हिंसा की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं. इसमें उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप अपरिहार्य हो गया था.
राज्यसभा 22 भाषाओं में लेकिन ये पहल तो पहले लोकसभा में होनी चाहिए
न्यायालय ने सरकारों से ऐसे अपराधों से निपटने के लिए चार सप्ताह में कदम उठाने को कहा है. यानी चार सप्ताह में उन्हें न्यायालय के सामने यह बताना होगा कि इस दिशा में क्या-क्या किया गया है. हालांकि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए ज्यादा जिम्मेवारी उन्हीं की आती है और न्यायालय का अधिकतर दिशानिर्देश उनके लिए ही है. चूंकि भीड़ की हिंसा देशव्यापी चरित्र ग्रहण कर चुका है इसलिए केंद्र की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो जाती है. न्यायालय ने साफ कहा है कि संसद भीड़ की हिंसा को अलग से अपराध घोषित कर उचित दंड निर्धारित करे.
किंतु पुलिस और प्रशासन के जिम्मे सब कुछ छोड़कर समाज शांत बैठ जाए तो फिर इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. इसके लिए समाज के जागरुक लोगों को भी आगे आना होगा. हमें भी समाज के प्रति अपनी भूमिका समझनी होगी. अफवाहों तथा ऐसे अपराधों के खिलाफ जनजागरण की व्यापक पैमाने की आवश्यकता है ताकि समाज स्वयं ऐसी घटनाओं के प्रति सतर्क और सचेत रहे.
लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर सब्सक्राइब करें!