Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: भारत का सरदार और सरदार का भारत

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: October 31, 2025 05:19 IST2025-10-31T05:19:09+5:302025-10-31T05:19:09+5:30

Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: राजाओं, रजवाड़ों और रियासतों वाला. अपने अथक प्रयास से सरदार पटेल ने 565 रियासतों का भारतीय संघ में शांतिपूर्ण विलय कराया.

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Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary

HighlightsSardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: देशभर में वे ‘सरदार’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए.Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: लोग उनके नेतृत्व और संगठन की सूझबूझ व क्षमता के कायल हो गए थे. Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: स्वतंत्रता के साथ हुए अखंड भारत के विभाजन के घाव से दुखी थे.

Sardar Vallabhbhai Patel 150th birth anniversary: सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत की मूर्त संकल्पना के अप्रतिम वास्तुकार थे. अंग्रेजी राज के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में देश के एक सच्चे सिपाही के रूप में वे समर्पित भाव से कार्य करते रहे. खेड़ा और बारडोली के सफल जन आंदोलनों का नेतृत्व करने के बाद देशभर में वे ‘सरदार’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए.

सभी लोग उनके नेतृत्व और संगठन की सूझबूझ व क्षमता के कायल हो गए थे. वे शीघ्र ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बने और आजाद भारत के आरंभिक वर्षों में देश के उपप्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री आदि के रूप में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. वे राजनीतिक स्वतंत्रता को पर्याप्त नहीं मानते थे. वे स्वतंत्रता के साथ हुए अखंड भारत के विभाजन के घाव से दुखी थे.

यह वह समय था जब भारत के दो खंड थे: एक अंग्रेजी राज वाला और दूसरा राजाओं, रजवाड़ों और रियासतों वाला. अपने अथक प्रयास से सरदार पटेल ने 565 रियासतों का भारतीय संघ में शांतिपूर्ण विलय कराया. भारत के राजनैतिक एकीकरण का यह अनोखा प्रयोग था. ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से आयु में 6 वर्ष छोटे और नेहरूजी से 14 वर्ष बड़े थे.

भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी मिली थी. पांच महीने बाद 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या हुई थी. उसके  बाद सरदार पटेल 15 दिसंबर 1950 को स्वर्गवासी हुए थे. आधुनिक भारत को गढ़ने में उनकी अविस्मरणीय भूमिका थी. उन्होंने देश की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए एक समर्थ भारत की नींव रखी.

देशभक्ति, संयम और दृढ़ता की मिसाल बने सरदार आधुनिक भारत के निर्माण की धुरी बन गए. गांधीजी ने यदि स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा दी तो सरदार पटेल ने स्वतंत्रता के परिणाम को भौतिक जामा पहनाया था. राष्ट्र निर्माण पर विचार करते हुए सरदार पटेल प्रत्येक नागरिक के लिए श्रम और समर्पण को आवश्यक मानते थे.

समाज की समावेशी दृष्टि रखते हुए वे अल्पमत और बहुमत की जगह सर्वमत पर बल देते थे. वे राष्ट्र के रूप में भारत और उसके नागरिकों के बीच परस्पर पोषक और पोषित होने के भाव की परिकल्पना करते थे. स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों के प्रति उनका अविचल समर्पण था.

उन्होंने पुरानी इंडियन सिविल सर्विसेज की जगह भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का गठन कर प्रशासन को एक सबल आधार दिया. वे कम खर्च, अधिक बचत और निवेश की नीति को भी प्रोत्साहित कर रहे थे और उदारतापूर्वक औद्योगीकरण का भी समर्थन कर रहे थे. देश के वे आर्थिक सुधार जो बाद में 1990 के दशक में देश में आए, वे सरदार पटेल की नजरों में 1950 में ही आ चुके थे.

अन्यान्य कारणों से तब वैसा न हो सका था. सरदार पटेल मानते थे कि राष्ट्र का स्वरूप उसके नागरिकों पर निर्भर करता है. इसी कारण भारत के नागरिकों को उनकी भूमिका के लिए सचेत करते हुए वे नागरिक कर्तव्यबोध को जगाने के लिए कहते थे कि हमें एक दुर्लभ अवसर मिला है कि हम अपने देश को अपनी रुचि और ढंग से बना सकें.

वे केवल यांत्रिक स्तर पर राष्ट्र-निर्माण का आह्वान नहीं कर रहे थे, बल्कि राष्ट्र को अपनी अस्मिता का अभिन्न अंग मानते हुए उसके समग्र विकास को सामने लाते हैं. इस समग्र विकास में उन्होंने देश की एकता को सर्वोपरि माना. वे मानते थे कि एक मजबूत भारत को बनाने के लिए एकता और शांति सबसे पहली जरूरत है. यदि देश में एकता न हो तो निश्चय ही उसका पतन होगा.

इसलिए हमें अपने मतभेदों को सुलझाना होगा और इस तरह बर्ताव करना होगा कि देश में पूरा सामंजस्य और अमन-चैन हो तथा शांति बनी रहे. सरदार पटेल ने देश के प्रत्येक समूह को राष्ट्रनिर्माण के लिए आमंत्रित किया. किसान, उद्योगपति, व्यापारी, विद्यार्थी सभी से वे खुला संवाद करते हुए उनके मन में भविष्य के भारत की कल्पना बिठाते थे.

वे तत्कालीन परिस्थितियों में आमजन की उदासीनता को दूर करने के लिए राज्य के उस स्वरूप को आगे रखते थे जहां राज्य शक्ति से संचालित न होकर नागरिकों के शक्तिपुंज से संचालित था. भारतीय लोक मानस में आज भी सरदार पटेल की दृढ़ता, देश के प्रति नि:स्वार्थ अनुराग और स्वतंत्रता के प्रति आग्रह की उज्ज्वल छवि एक मिसाल के रूप में अंकित हैं.

त्याग और समर्पण के साथ उनके द्वारा एक समर्थ भारत की आधारशिला रखी गई. समता, समानता और स्वतंत्रता इस अभिनव संकल्पना के मूल तत्व थे. यह स्वतंत्रता अक्षत बनी रहे इसके लिए सतर्कता, तैयारी और सामर्थ्य की सदैव अपेक्षा रहेगी. एक आदर्श नेतृत्व द्वारा सरदार पटेल ने दृढ़ता और समर्पण के साथ सक्रिय और संवेदनयुक्त शासन का उदाहरण प्रस्तुत किया था.

अमृत काल के संकल्पों लिए भी राष्ट्र की अखंडता को अपने छोटे स्वार्थों से ऊपर रखते हुए समर्पण और राष्ट्र जागरण आज आवश्यक है. आज सत्ता के प्रयोजन और देश के प्रति दायित्व प्रश्नांकित होने लगे हैं. एक आख्यान गढ़ने, सब्जबाग दिखा कर फौरी तौर पर जनता को रिझाने की कोशिश होती है.

आज पार्टी कोई भी हो, सत्ता हासिल करना और सत्ता पर काबिज होकर उस पर अधिकार जमाना ही राजनीति का अकेला प्रयोजन हो चुका है. नैतिकता और नियत कर्तव्य से मुंह मोड़ कर लोग स्वार्थ, लोभ और मुफ्तखोरी का आश्रय ले रहे हैं. स्वतंत्रता को स्वच्छंदता समझ कर अपने लिए अधिकाधिक छूट की गुंजाइश बनाने में लग रहे हैं. ऐसे में सरदार पटेल की स्मृति आश्वस्त करती है कि देश-निर्माण जैसे बड़े लक्ष्य धैर्य, संयम, दृढ़ता और साहस से ही साधे जा सकते हैं. इसके लिए सरदार जैसी देश के प्रति निष्ठा और संलग्नता जरूरी होगी.  

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