संतोष देसाई का ब्लॉग: अपराजेयता का आभामंडल
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 29, 2019 05:32 AM2019-05-29T05:32:23+5:302019-05-29T05:32:23+5:30
लोगों ने वोट पार्टी की नीतियों के नाम पर नहीं बल्कि नेतृत्व के आभामंडल को देखते हुए दिया है. वे न केवल जाति और क्षेत्रीयता के विचार से ऊपर उठे, बल्कि अपने शब्दों और कार्यो से भी ऊपर उठ गए.
संतोष देसाई
लोकसभा चुनावों में भाजपा की भारी जीत के वास्तव में मायने क्या हैं? इस तथ्य के अलावा कि इस जीत ने अधिकांश विश्लेषकों को चकरा दिया है, हमारी वर्तमान राजनीति के बारे में यह जीत क्या संकेत देती है?
इस बारे में कई स्पष्टीकरण दिए जा सकते हैं. भाजपा की ग्राउंड लेवल पर की गई मेहनत, राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट की कार्रवाई, हिंदुत्व की बढ़ती अपील, विकास योजनाओं का प्रभाव, प्रभावी विकल्प का अभाव- इन सारी चीजों ने कम-अधिक मात्र में भाजपा को भारी जीत दिलाने में योगदान दिया है.
लेकिन इन सब चीजों से परे कुछ ऐसा है, जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती. इंदिरा गांधी के बाद, नरेंद्र मोदी ऐसे एकमात्र नेता हैं जिनके नेतृत्व गुणों को देखकर जनता ने वोट दिया है.
अन्य कारकों ने भी उनकी जीत में भूमिका निभाई है, लेकिन वे प्राथमिक नहीं हैं. लोगों ने वोट पार्टी की नीतियों के नाम पर नहीं बल्कि नेतृत्व के आभामंडल को देखते हुए दिया है. वे न केवल जाति और क्षेत्रीयता के विचार से ऊपर उठे, बल्कि अपने शब्दों और कार्यो से भी ऊपर उठ गए.
इस बार उन्होंने लोगों से कोई वादा नहीं किया. अच्छे दिन नहीं दिखाए, 15 लाख रु. देने की बात नहीं कही जो कि बाद में उन्हें तंग कर सके. उनकी जीत का प्राथमिक कारण यह नहीं था कि उन्होंने क्या किया है ( हालांकि उनके कार्यो ने निश्चित रूप से एक हद तक भूमिका निभाई है), न ही इसके लिए उन्हें वोट मिले हैं कि वे क्या करेंगे, बल्कि इसके लिए मिले हैं कि वे क्या हैं. उनकी असफलताएं पीछे रह गईं.
मायने यह रखता है कि उनके इरादे क्या हैं. यह एक प्रकार की प्रतिरक्षा है जो कि अभूतपूर्व है, और इसने उन्हें लगभग असीम शक्तियां प्रदान कर दी हैं.
बालाकोट उन गुणों को रेखांकित करने के लिए आदर्श मंच बन गया जो मोदी को मतदाताओं की नजर में अनूठा बनाते हैं. उसने मोदी की उस छवि को और चमकाया, जो उनकी पहले से बनी थी. किसी भी अन्य नेता के लिए वही परिस्थितियां एक अलग ही परिणाम ला सकती थीं. पुलवामा हमले में खुफिया विफलता का आरोप लगाया जा सकता था. लेकिन मोदी के बारे में ऐसा नहीं हुआ.